बन्दिशों की कैद से मैं अब उभ चुकी थी| मुझे आज़ाद होना था| मेरे ख़ामोशी केे शोर ने मुझे बेहरा बना दिया था| मुझे किसी से कुछ कहना था, उसे कुछ सुनना था| मुझे समझने वाला एक दोस्त चाहिए था| मैं खुद से खुद को खो रही थी| सोचा सब कुछ ख़त्म हो इससे पहले मुझे कुछ वक़्त अपने लिए समेटना है| मैं चली गई अपने रूम में वहाँ बिस्तर पर रखे मेरे मेक-अप किट को मैंने उठाया और आईने के सामने जा खड़ी हुई| मेरी हिम्मत न थी आईने में खुदको नीहारने की| मैं ख़ामोश थी, इतने में आवाज़ आई "कहाँ गुम हो" मैं ने कहा तुम कौन हो और यहाँ इस वक़्त क्या कर रहे हो| उसने जवाब दिया 'मैं वो हूँ जिसकी तुम्हें *तलाश* है| मैं हक़्क़ा-बक्का रह गयी यह कौन है, मुझे जिसकी तलाश है वो बन केे आया था| मैंने अपने कदम पीछे हटा लिए| उसने कहा घबराओ नहीं मैं तुम्हारा वही दोस्त बनने आया हूँ, जिसको तुम दिलफरेब बातें करना चाहती हो| यह सुनते ही मानो किसी गुंगे मुंह में जबान आ गई हो| मेरे चेहरे पर अब हल्की ही सही पर मुस्कान थी|
अब हम दोनो ही बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे| जो वक़्त मैं मेरे खालीपन के साथ काटती थी| अब यह वक़्त उसके नाम होगया था| हम घंटों अपने जजबातों की महफ़िल में मसरूफ रहते| वक़्त का होश न रहता, हम हमारी अलग और अनमोल सी एहसास की दुनिया में खुश बहुत थे| ज़िन्दगी से अब सुकून जुड़ने लागा| मेरा यह दोस्त बहुत अलग था सबसे, उसकी सोच, उसकी बातें, उसकी बातें, उसकी आँखें, उसकी आदते मुझे सब कुछ अपनी तरह लगने लगी शायद यही वजह थी के हम इतने अच्छे दोस्त बने थे|
शाम को मम्मी से बहस हुई और मैं गुस्से से अपने रूम में वापस आगयी| कोई मुझे समझता ही नहीं इस तनहाई से मेरी आँखें नम थी| उसी वक़्त पीछे से आवाज़ आई 'क्यों रोती हो? कोई दर्द है क्या?' मैंने आँसू साफ करते हुए कहाँ जख्म होते तो दिखा भी देती... खाली दिल में जज्बातो का सैलाब उमड आया था| मैं खुदको रोक न पाई और उस से कहा सुनोगे मेरे ज़िन्दगी की दास्तान? उसने कहा क्यों नहीं. मैं कुछ कहती इससे पहले पापा ने आवाज़ लगाई *रिया बेटा दवाई का वक़्त होगया है खाना खाने आजाओ* | मैं चली गयी| वापस आकर देखती हूँ तो यह पागल दोस्त मेरे ही इंतजार में बैठा था| यूँ तो मुझे अपने राज़ किसी से कहने में बड़ी तकलीफ सी होती थी| न जाने क्यों अब मेरे अकेले काफ़ीले में यह हमदर्दी मुझे भा रही थी| मैं सिर्फ उसकी आँखें पढ़ रही थी| और उसने मेरे एहसासों की तफसील याद कर ली| हम दोनो ही हर बिन कही बात को सुनने की कोशिश में लगे थे| मेरे सब्र की इंतेहा ने उससे कहा अब कुछ कह भी दो| यूँ ख़ामोश क्यों बेठे हो| उसने कहा मैं तो तुम्हारे ख़ामोशी से गुफ्तगु कर रहा था, तुम ही ख़ामोश हो| चलो अब तुम ही कुछ कहो|
मैं उसके सामने जा बैठी और शुरू हुई मेरे दर्द, तकलीफ की अनसही दास्तान|
एक लड़की का जिस्म ले कर मैं इस दुनिया में आई| बात सिर्फ जिस्म की होती तो मंजूर होता लेकिन वक़्त केे साथ हालात, हालात के साथ इन्सान और इन्सान के साथ उनके नज़रीये बदलते गये और मेरे इसी एक सवाल पे आकर मैं ठहर जाती "मैं सिर्फ लड़की क्यों हूँ?"
मुझे लड़कियोंवाली ज़िन्दगी जीना था, सजना था, संवारना था, गुड्डे गुड्डीयों को तैयार कर उनकी शादी करवाने वाला खेल मुझे भी पसंद था| मैं अक्सर अपनी गुड़िया को खूब तैयार करती ख़ुशी ख़ुशी उसकी शादी मे झूमती और उसकी बिदाई मे फुट-फुट कर रोती|
एक दिन मैं ने अपनी दादी से कहा दादी मुझे भी शादी करनी है मुझे भी तैयार होना है| मेक अप करना है| किसी केे सपनो की राजकुमारी बनके इतराना है| क्या मेरी भी बिदाई में आप सब लोग इतना ही रोने वाले हो? दादी हस के बोली पहले ठीक से बड़ी तो होजाओ फिर कर लेना शादी|
वक़्त के साथ इस जिस्म की बनावट बदल गई| यूँ समझो समाज के दायरों की बेडीयों में जकडने की तैयारी हो रही थी| जो दादी कहती थी ठीक से बड़ी होजाओ, वो अाज कहती है केे अब तुम बड़ी होगई हो. बच्चों जैसी बातें और हरकते बंद करो| ससुराल में जाकर नाक कटाओगी "यह लड़की"|
मैं अब 'यह लड़की' बन के रह गई|
"यहाँ मत जाओ, वहां मत जाओ, यह मत करो, वो मत करो, इससे मत मिलो, उससे मत मिलो, उसको बात मत करो, लड़कियों जैसे बैठना, ऊँची आवाज़ में बात मत करो, मुँह उठा के मत घुमो, सीने पर दुपट्टा ओढे रखना" के शोर ने मुझे अंदर ही अंदर खोकला कर दिया था|
मैं शाम को अपनी पढ़ाई ख़त्म कर दिशा के घर पार्टी के लिए तैयार होके निकली थी अभी घर की दहलीज भी पार न की थी के पीछे से आवाज़ आई 'अंदर आजाओ तुम इस वक़्त घर से बाहर नहीं जाओगी, कितनी बार कहा है'| मेरे ही घर केे दरवाजे मेरे लिए शाम 6 बजे के बाद बंद हो जाते थे लेकिन यही दरवाज़े मेरे भाई के खेल के लिए बेशक खुले रहते| मैंने कहा जब भाई घर से बाहर देर रात रह सकता है तो मैं क्यूँ नहीं? मम्मी के जवाब ने मुझे खामोश कर दिया उन्होंने कहा 'तुम एक लड़की हो'|
आँखों में हज़ारो सवाल लेकर आइने के सामने जा खड़ी हुई और यह सवाल किया केे "काश मैं एक लड़का होती? "उस रात से अाज की रात तक मैं ने खुदको आइने में नहीं देखा|
पाठशाला में टॉप करने वाली लड़की अब ज़िन्दगी से हारने लगी थी| न किसी से बात न किसी से कोई शिकायत न किसी का कोई नजरीया अब मेरे लिए सब बे माइनी से थे|
अगली सुबह मेरा वॉशरूम मे चक्कर आकर गिरना हॉस्पिटल केे बेड से मेरी पहली मुलाक़ात ने मुझे एक नए सच से रुबरू करवा दिया था| और वो सच था केे मैं अब blood cancer की शिकार हो गई हूँ| पहले सिर्फ घर ही मेरी दुनिया थी| अब मेरे कमरे की दिवारें मुझे काटने को दौडती है| मम्मी, पप्पा, फ्रेंड्स सब कहते है केे चलो बाहर घूमने चलते हैं| मन बहल जाएगा| कितना अजीब नजरीया है न इन सबका एक परिंदे को पिंजरे से आज़ाद तो कर रहे हैं लेकिन तब जब हालतों ने 'पर' नोंच नोंच केे उखाडे हो| अब उड़ती भी तो कैसे?
तड़पती, फडफडाती फिर मायूस होकर खुद से खुद की जंग में हार कर ज़मीन पे बिखर जाती| अब तो मेरे बाल भी इस तरह झडने लगे थे मानो जैसे कोई सुखा नारीयल छील रहा हो| अब आँसू भी सुख चुके थे रोती भी तो कैसे?
मुझे लगने लगा काश मैं लड़का होती? शायद मेरा खयाल ज़्यादा रखा जाता| और आज जो मैं बन गई हूँ वो न बनती| मैंने खुदको हरा दिया था पहले हालात से और अब बीमारी से| मैंने ख़ुदकुशी करने का सोच लिया| जी कर भी तो क्या करती बोझ ही तो थी मेरे जिस्म से रूह केे बिछड़ने से शायद किसिको उतना अफ़सोस होता जितना एक बेटे को खोने के बाद महसूस करते| लेकिन अफ़सोस,
मैं ने हाथ में ब्लेड ली आँखें बंद की तो मेरी तन्हाई ने मुझे आवाज़ दी मैं रुक गयी| जब फंसी का फंदा लगाना चाहा तो मेरी ज़िन्दगी ने मुझे सीने से लगा लिया और मैं फिर रुक गई|
मैं अपने बंद कमरे की दीवार में लगी हर इंट से उसकी एजाद से दफनाने तक केे सफर की गुफ्तगु में मसरूफ थी के उस वक़्त मेरा छोटा भाई मेरे पास आकर बैठा और कहा दीदी तुम्हे क्या हुआ है? तुम मेरे साथ खेल भी नहीं सकती? सब कहते है के तुम बीमार हो| छोटू ने उसकी ज़िन्दगी केे पिछले 10 सालो में मुझसे इतने प्यार से कभी बात न की थी| मुझ से रहा न गया मैंने कहा हाँ पगले किसने कहा केे मैं तेरे साथ खेल नहीं सकती ला निकाल तेरी जेब से एक सिक्का तुझे एक जादू दिखाना है, देखेगा न अपने दीदी का जादू| उसने फट से अपनी जेब में हाथ डालते हुए सर हिलाया और कहा 'हाँ दीदी'| उसने एक सिक्का मेरे हाथ में रखना मै ने उसकी नज़रों से ओझल कर उसे ग़ायब कर दिया| उसे लगने लगा के उसकी दीदी बहुत बड़ी जादुगर है| उसने कहा दीदी तुम मुझे भी इस सीक्के की तरह गायब कर दो न| मैंने कहा नहीं छोटू तुम इस घर केे चिराग हो 'सब कहते है' तुम नहीं बुझ सकते| मेरे यह कहते ही उसने कहा दीदी अगर तुम्हे कोई स्पेशल पावर दी और कहें केे तुम कुछ भी गायब कर सकती हो तो तुम क्या ग़ायब करोगी? मैंने मुस्कुरा कर कहा "मैं अपने आपको ग़ायब कर दूंगी"| छोटु ने मुझे झपट केे अपने गले लगा लिया| इतने में मेरे सर पर बंधा हुआ रुमाल निचे गिर गया और उसने मुझे बगैर बालों केे देख लिया| वो डर केे चल्लाते हुए रूम से भाग गया| बच्चा था डर गया होगा| मैं सिर्फ इस बार हस रही थी ज़ोर ज़ोर से और इतने ज़ोर से केे मेरे नाक से बेहते खून की मुझे खबर भी न थी| जब होश आया तो मेरी आँखें एक छत को देख रही थी| कुछ दिन मेरी हालत में सुधार न पाकर मुझे घर लाया गया| शायद अब मैं आखरी स्टेज पर थी|
अाज यह दिन है मैं तुम्हारे सामने बैठ कर अपनी अनसुनी दास्तान सुना बैठी| मैंने मेरे दोस्त की तरफ नज़र उठा कर देखा उसकी आँखों मे भी उतने ही आँसू झलक रहे थे जितने मेरी आँखों मे थे|
एक पल की ख़ामोशी के बाद उसने कहा उठो और ले लो अपनी मेक-अप किट जो तुमने फेंक दी थी| मैंने कहा क्या मज़ाक कर रहे हो| मुझसे सब डरते है मैं बहुत गन्दी लगती हूँ मुझे खुदसे नफरत होने लगी है| उसने कहा यह मज़ाक नहीं सच है मान लो|
मैं ने कहा मैं ने तो तुम्हे अपनी ज़िन्दगी से रूबरु करवा दिया| लेकिन तुमने अपनी पहचान मुझसे छुपाये रखी अब तो बता दो तुम कौन हो? और क्यूँ मेरे इतने करीब आगये और अपनेपन का अहसास दिलाया|
उसके कहा पहले तुम खुद को एक दुल्हन की तरह सजाओ, संवारो और फिर मेरी आँखों में देखना तुम्हे अपने सभी जवाब मिल जायेंगे|
दर्द की सिसक ने मेरी आँखों में काजल लगा दिया| जो होंठ कुछ कहने को कांपते थे अब सुर्ख होकर इतराने को बेताब थे| मेरे माथे पे सजी बिंदि मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत राजकुमारी होने का एहसास दिला रही थी| मैं ने खुदको मानो जैसे दुल्हन बना लिया हो| इसी नजाकत से मैं ने जब अपनी पलकें अपने दोस्त की ओर कर दी तब उसने कहा और पास आओ रिया और जी लो इस पल को जी भर केे| देखो मेरी आँखों में|
अब मेरी आँखें सच जान चुकी थी यह दोस्त और कोई नहीं बल्कि वो लड़का है जिस रात मैं ने आइने में देख कर कहा था "काश मैं एक लड़का होती? "
अब मेरी तलाश मुकम्मल थी