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वर्तमान की सबसे बडी ग़लतफ़हमी ये ही है कि आयुर्वेद सामान्य स्थिति के लिये आच्छा है लेकिन आपातस्थिति के लिये नहीं। जबकि एलोपैथी आपातस्थिति के लिये बहुत उपयोगी, तत्काल राहत देता है आदि। ये विषय गहन है इसलिये आइए तार्किक तरीके से तथ्यों के द्वारा समझते हैं पूरे मामले को जिससे यह साबित हो जाएगा कि आयुर्वेद vs एलोपैथी की लड़ाई महज नूरा-कुश्ती है. असल मुद्दें कुछ और ही हैं.

पहली चीज प्राकृतिक औषधियों का प्रयोग आयुर्वेद का मुख्य भाग है किन्तु वह ही आयुर्वेद है ऐसा नहीं है। दूसरी चीज आयुर्वेद में भी तीव्र प्रभाव करने वाले रसायनों का विस्तार से वर्णन किया गया है। अब प्रश्न ये उत्पन्न होता है कि जब ऐसा है तो फिर आयुर्वेद आपातस्थिति में काम क्यों नहीं करता तो इसका उत्तर है–

पहला एलोपैथी तेजी से इसलिये काम करता है क्योंकि उसके पास पूरा हासपिटल सेटअप है जो कि आयुर्वेद के पास नहीं है। एलोपैथी के तेजी से आपातस्थिति में उपयोगी होने का कारण ये सेटअप है जो कि उपकरणों से सदा सज्जित रहता है उपचार के लिये।

दूसरा जबकि आयुर्वेद आज भी वैद्य जी के कमरे तक सीमित रहता है अधिकांशतः आयुर्वेद चिकित्सा आज भी इसी भांति होती है जहां एक पुराना सा कमरा है और उसमें एक वैद्य जी बैठे हैं। इस तरह किसी एलोपैथी डाक्टर को बिठा के देखिये। आपात स्थिति क्या होती उसको पता चल जायेगा।

तीसरी वास्तविकाता तो ये है कि मुगलकाल के समय से आयुर्वेद का राजकीय संरक्षण समाप्त हो गया। आयु्वेद किसी तरह गृहवैद्यों के द्वारा परम्परागत रूप से चलता रहा। आजादी के बाद उसके अवशिष्ट स्वरूप को ही उसका सबकुछ समझ कर व्यवहार किया जिसके कारण वो नवशोधों से परिपूर्ण नहीं हो सका। 

चौथी चीज चिकित्सा जैसे विषय में निरन्तरता की बहुत आवश्यकता होती है उसके बिना उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। और वही आयुर्वेद के साथ हुआ। पांचवीं और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य चिकित्सा उपकरण बनाना तो चिकित्सक का काम नहीं है। एलोपैथी में भी चिकिर्सकों नें उपकरण नहीं बनाये। वो तो बस उन आधुनिक विधियों के उपयोगकर्ता हैं। आुयुर्वेद में बहुत पहले ही सुश्रुत ने चिकित्सा उपकरणों का निर्देश किया है जिनका समय के साथ परिषकरण करने की आवश्यकता है।

वास्तव में आपातस्थिति में आयुर्वेद का उपयोगी न होना आयुर्वेद की कमी नहीं है बल्कि हमारी कमी है कि हमने उसके स्वरुप को ठीक से समझा नहीं और उसे आपातस्थिति के लिये तैयार नहीं किया। बाकि यदि इसके बाद भी किसी को ग़लतफ़हमी हो की आयुर्वेद की औषधि तीव्रता से काम नहीं करती है तो चार बीज धतूरे के खाये और फिर जान ले कि कितन समय लगता है आयुर्वेद की औषधि के असर में।

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