अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बीते कुछ दिनों में 34 लोगो कि मौत हो चुकी है। कुलपति तारिक मंसूर ने अपने लेटर में बताया कि पिछले 18 दिनों में यूनिवर्सिटी के 18 रिटायर्ड शिक्षक और 16 शिक्षकों की मौत कोविड-19 के कारण हुई हैं। इसके अलावा, AMU के कई दूसरे कर्मचारी भी इस वायरस के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं।
जान गंवाने वाले लोगों में रिटायर्ड शिक्षकों से लेकर स्टाफ तक के लोग शामिल हैं। यह बेहद दुखद है। लेकिन अगर आप इसको गहराई से समझ कर आंकलन करे तो पता चलता है कि आज भी एक समुदाय का नज़रिया वैक्सीन को लेकर काफी नाकारात्मक है।
बीते साल देवबंद के इमाम इश्क गोरा साहब ने मुस्लिम समुदाय से अपील करी कि वो वैक्सीन ज़रूर ले पर फतवे तक नही। उन्होंने कहा कि जबतक यह साबित नही हो जाता कि वैक्सीन में कोई ऐसा पदार्थ शामिल तो नही जो इस्लाम में हराम है तब तक वैक्सीन नही ली जा सकती। उनका इशारा था 'Gelatin' से।
जिलेटिन एक पारभासी, रंगहीन, स्वादहीन पदार्थ है। यह आमतौर पर गायों या सूअरों से प्राप्त किया जाता है। इस्लाम में सूअर का गोश्त प्रतिबंधित है तो बहुत से इस्लामिक बुद्धजीवी वैक्सीन के प्रती अपनी धार्मिक प्रतिबद्धता को लेकर संशय में है...
इस विषय में जब यूट्यूब के चैनल Let the Quran speak पर डॉक्टर शहबीर आली से यह पूछा कि क्या वैक्सीन हलाल है तो उन्होने बड़े तरकीब और अच्छे तर्क से अपनी बात रखी। डॉक्टर साहब ने कहा कि एक प्रतिबंधित गोश्त के टुकड़े को खाना और कोई ऐसी दवा लेना जिसमें उस गोश्त का हिस्सा है दोनो अलग अलग बात है।
उन्होंने कुछ इस्लामिक चिंतक और विद्वानों द्वारा लिखी हुई बातो का संदर्भ देते हुए कहा कि अगर एक गधा नमक में गिरता है तो स्वाभाविक रूप से उसका एक अंश नमक मे घुल जाता है, उस नजरिए से देखे तो नमक हलाल है। उन्होंने शराब का भी उदहारण दिया यह कहते हुए कि शराब भी हराम है पर उसी से सिरका (vinegar) बनता है जो मुस्लिम खाने में लेते हैं।
वो आगे कहते है कि हो सकता है लोगो को बुरा लगे इस बात को जानते हुए कि वैक्सीन हलाल नही है पर बुरा लगना और कोई चीज निषिद्ध है ऐसा नहीं है। डॉक्टर शाहबीर आली के मुताबिक वैक्सीन ज़रूर लेनी चाहिए क्योंकि यह मानव सभ्यता को बचाने के लिए आवश्यक है और इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है।