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गुजरात के सभी छह नगर निकायों में बीजेपी ने जबरदस्त जीत दर्ज की है. राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मिली इस जीत ने बीजेपी के आत्मविश्वास को और मजबूत किया है. इस चुनाव परिणाम से यह साफ जाहिर होता है कि गुजरात में बीजेपी की पकड़ कितनी मजबूत है. जबकि कांग्रेस का रहा-सहा जनाधार भी लगातार सिकुड़ता जा रहा है. आम आदमी पार्टी (AAP) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन (AIMIM) जैसी पार्टियां कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब होती दिख रही हैं.

गौरतलब है कि गुजरात में 6 महानगर पालिका (मनपा) की कुल 576 सीटों पर 21 फरवरी को वोट डाले गए थे. सभी 6 मनपा यानी अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, जामनगर और भावनगर में भाजपा को बहुमत मिल गया गया है. जहां एक तरफ बीजेपी को पिछली बार हुए निकाय चुनाव से 15.67 फीसदी ज्यादा सीटों पर जीत मिली हैं. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने बीते छह सालों में 21.05 फीसदी सीटें गंवा दीं.

आपको बता दें कि इन छह नगर निगमों में से गांधीनगर और जूनागढ़ को छोड़कर अन्य का कार्यकाल पिछले साल दिसंबर में ही पूरा हो गया था, लेकिन कोरोना की वजह से चुनाव नहीं हो पाए थे. इस वजह से निगम सरकार को भंग कर दिया गया था. म्युनिसिपल कमिश्नर ही निगम को चला रहे थे.

कांग्रेस पार्टी ने 2015 में कुल 30.6 फीसदी सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार यह घटकर सिर्फ 9.55 फीसदी रह गया. वहीं बीजेपी ने 2015 में हुए गुजरात निकाय चुनाव में 68.18 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार उसने 83.85 फीसदी सीटों पर सफलता प्राप्त किया हैं. 483 सीटें जीतकर बीजेपी ने एक तरह से एकतरफा जीत दर्ज की है. बीजेपी ने राज्य के सभी छह नगर निगमों- अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट, जामनगर और भावनगर में सत्ता बरकरार रखी. बीजेपी ने अहमदाबाद में 192 सीटों में से 159, राजकोट में 72 सीटों में से 68, जामनगर में 64 में से 50 सीटें, भावनगर में 52 सीटों में से 44, वडोदरा में 76 सीटों में से 69 और सूरत में 120 सीटों में से 93 सीटें जीतीं.

इस बार कांग्रेस को जो नुकसान उठाना पड़ा है. उसकी दो वजहें हैं. पहली- पाटीदार आरक्षण समिति (पास) ने कांग्रेस का विरोध किया था. दूसरी- आम आदमी पार्टी ने पाटीदार उम्मीदवारों को टिकट दिए और उसी क्षेत्र को केंद्र में रखकर प्रचार किया.कांग्रेस को एक ऐसे मोर्चे पर झटका लगा है जिसकी उम्मीद वो सपने में भी नहीं सोच सकता था. 

पाटीदार आंदोलन के बाद सक्रिय राजनीति में आए हार्दिक पटेल चुनावी अखाड़े में चारों खाने चित हो गए. कांग्रेस ने उन्हें बड़ी उम्मीद से अपनी गुजरात इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था, लेकिन अन्य इलाकों की बात ही क्या खुद पाटीदारों के इलाके में भी वो कांग्रेस की लुटिया डूबने से नहीं बचा पाये. पाटीदारों के गढ़ सूरत में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला और वहां आम आदमी पार्टी ने जबर्दस्त सेंध लगाते हुए 27 सीटें अपने नाम कर ली.

कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और वह केवल 55 सीटों पर सिमट कर रह गईं. कांग्रेस ने तीन नगर निगमों में केवल एक अंक में सीटें जीतीं और सूरत में तो उसे एक भी सीट नहीं मिली। कांग्रेस ने अहमदाबाद में 25, राजकोट में चार, जामनगर में 11, भावनगर में आठ और वडोदरा में सात सीटें जीतीं.

राज्य में नगर निकाय चुनावों में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी (आप) ने 27 सीटों पर जीत हासिल की और ये सभी सीटें उसने सूरत में जीतीं. वहीं आप की तरह पहली बार गुजरात में स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने वाली असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने अहमदाबाद के मुस्लिम बहुल जमालपुर और मकतामपुरा वार्ड में सात सीटें जीतने में सफलता पाईं. इन सीटों पर पारंपरिक तौर से कांग्रेस पार्टी का कब्जा हुआ करता था. जामनगर में बहुजन समाज पार्टी के तीन उम्मीदवारों ने जीत हासिल की जबकि एक निर्दलीय उम्मीदवार अहमदाबाद में जीता.

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