छठ पर्व है प्रकृति पूजा का, यह पर्व चार दिन तक मनाया जाता है. इस पर्व का दूसरा दिन खरना के रूप में प्रचलित है. खरना का मतलब शुद्धिकरण होता है. दरअसल, छठ करने वाले व्यक्ति को पहले दिन यानी नहाय-खाय से ठीक अगले पूरे दिन तक उपवास रखना होता है. आपको बता दें कि इस लोक परंपरा के मुताबिक इस दिन केवल एक ही समय भोजन करना होता है. यह शरीर से लेकर मन तक सभी को शुद्ध एवं सात्विक करने की तप का शुरुआत है, जिसकी पूर्णता अगले दिन यानी खरना वाले दिन होती है.

खरना के दिन व्रती अपने कुलदेवता और छठ मैय्या को नवैध अर्पण करते हैं. आपको बता दें कि ये नवैध गुड़ से बनी खीर होता है. खरना के दिन शाम के समय गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बनाया जाता है और इसे बांटा जाता है. इसी नवैध को खाने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास करती है.

खरना के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को स्नान करती हैं और विधि-विधान से पूरी और गुड़ की खीर का प्रसाद बनाती हैं. इसके अलावा प्रसाद में केला भी रखा जाता है. चूंकी छठ प्रकृति की महत्ता को मानव जीवन में स्थापित करने का त्योहार है. इसलिए इस पर्व में उन्हीं चीजों का इस्तेमाल किया जाता है जो प्राकृतिक होता है. जिसमें कोई कृत्रिम तत्व नहीं हो. इसलिए खासतौर पर इस पर्व में जो नवैध या प्रसाद बनता है उसे मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है.

छठी मैय्या जगत जननी मां भगवती के रूप में ही अवतरित हुई और सृष्टि की आधार रूपा मां भगवती को इस पर्व में पहले नवैध लगाया जाता है. मां भगवती तो संसार के कण-कण में वास करती है, इसलिए खरना के दिन पहले कूल देवी को प्रसाद अर्पण किया जाता है. फिर उसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करती हैं.

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