बिहार के सबसे प्रमुख त्योहार के रूप में मनाया जाने वाला छठ पूजा यूं तो राज्य, देश की सीमा को लांघकर दुनिया भर में लोकप्रिय हो चुका है. छठ की शुरुआत नहाए खाए के साथ होती है. यह पर्व लोक संस्कृति और लोक आस्था से जुड़ा हुआ है. इस पर्व में केवल उन्हीं चीजों का पूजा में इस्तेमाल होता है जो प्रकृति में उस समय उपलब्ध होती है. न कोई ताम-झाम, न कोई दिखावा और नहीं कोई कर्मकांड बल्कि विशुद्ध रूप से स्वच्छता और पवित्रता का ख़याल रखते हुए प्रकृति की पूजा की जाती है.

यह स्वच्छता निजी लेवल पर भी दिखती है और सार्वजनिक लेवल पर भी. इसमें घर से लेकर घाट तक की सफाई का ध्यान रखा जाता है. सामूहिक तौर पर लोग इकट्ठे होकर लोग घाटों की सफाई करते है. इससे सामुदायिक विकास की भावना को बल मिलता है. छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक अथवा लोकजीवन तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह हमारे पर्यावरण और जीवनशैली के बीच के संबंधों को भी दर्शाता है. खाने-पीने से लेकर पहनने और सोने तक में सात्विकता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है.

इस व्रत में व्रती बिना पानी के 36 घंटे तक उपवास करती हैं. कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठी मैया के रूप में मनाया जाने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है. पौराणिक मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली छठी मैया भगवान सूर्य की बहन हैं. इसीलिए लोग सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया को प्रसन्न करते हैं. छठ मैया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्त को खासकर वह लोग करते हैं जिन्हें संतान प्राप्ति नहीं होती है. इसके साथ-साथ लोग अपने बच्चों के बेहतर भविष्य और सुख समृद्धि के लिए छठ पर्व मनाते हैं.

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