नहाय-खाय के साथ भगवान दिनकर यानी सूर्यदेव की उपासना और लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ आज बुधवार 18 नवंबर से शुरू हो गया. सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि देश एवं दुनिया भर में मनाये जाने वाला ये त्योहार प्रकृति पूजा का महापर्व भी है. आपको बता दें कि लोक संस्कृति के बहुरंगी कैनवास को उकरेती छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और इस बार षष्ठी तिथि 20 नवंबर को है.

छठ पूजा के दिन षष्ठी को व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है. ये व्रत नहाय-खाय के दिन से शुरू होकर पंचमी तिथि को खरना, फिर अगले दिन षष्ठी तिथि के दिन शाम को अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ देकर अगले दिन सप्तमी को सुबह उदीयमान अर्थात् उगते सूर्य को अर्घ देने के साथ पूरा होता है. इस दौरान व्रती को करीब 36 घंटे निर्जला रहना पड़ता है. छठ पूजा का व्रत करने वालों का मानना है कि पूरी श्रद्धा के साथ छठी मइया की पूजा-उपासना करने वालों की मनोकामना पूरी होती है.

आस्था प्रधान इस लोकपर्व में न कोई मंदिर की जरूरत पड़ती है, न मंत्र की, न पुजारी की, न जाप की न ही किसी कर्मकांड की. जरूरत पड़ती है तो सिर्फ पूर्ण समर्पण की, जहां छठ वही धाम और हर व्रत करने वाली महिला छठी मईया का रूप होती है. शुद्धता, स्वच्छता और श्रद्धा का इस पर्व में खास महत्व है. यह स्वच्छता निजी लेवल पर भी दिखती है और सार्वजनिक लेवल पर भी. इसमें घर से लेकर घाट तक की सफाई का ध्यान रखा जाता है.

सामूहिक तौर पर लोग इकट्ठे होकर लोग घाटों की सफाई करते है. इससे सामुदायिक विकास की भावना को बल मिलता है. छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक अथवा लोकजीवन तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह हमारे पर्यावरण और जीवनशैली के बीच के संबंधों को भी दर्शाता है. खाने-पीने से लेकर पहनने और सोने तक में सात्विकता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. दिखावे से परहेज करते हुए व्रती शृंगार-पटार से दूर नंगे पैर ही घाट पर जाते है.

इस व्रत में हर कुछ वही इस्तेमाल होता है जो प्रकृति के द्वारा छठ के समय उपलब्ध होता है. सूप दउरा डोम के यहां से आता है, फूल माली के यहां से, मिट्टी के चूल्हा से लेकर अन्य सामग्रियों के इस्तेमाल की अनूठी लोक परंपरा है. छठ पर्व का मुख्य प्रसाद ठेकुआ जिसके बिना यह त्योहार अधूरी मानी जाती है और खरना पर बनाई जाने वाली खीर को बाहर से नहीं लाकर घर में ही मिठे का इस्तेमाल करके बनाया जाता है. चीनी का प्रयोग वर्जित है. इसके अलावा गन्ना, नारियल और केला छठ की पूजा में काफी महत्वपूर्ण होता है. ये महत्वपूर्ण चीजें भी वो हैं जो बेहद साधारण हैं, जिन्हें हर कोई खरीद सकता है.

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