Coronavirus crisis and the role of government

देश में कोरोना महामारी से उपजी स्थितियां जिसमें ऑक्सीजन की कमी, अस्पतालों में बेड की कमी, जीवनरक्षक दवाओं की उपलब्धता को लेकर सरकारी-तंत्र की विफलता को उजागर किया है. अब जब देश में कोरोना के नए मामले रिकॉर्ड बना रहे हैं. अस्पताल में बिस्तर और ऑक्सीजन का इंतज़ार कर रहे लोगों की सांसे टूट रही हैं. परेशान परिवार इलाज कराने के लिए हर तरकीब और संसाधन झोंक रहे हैं. लोगों को अस्पताल के बेड से लेकर ऑक्सीजन सिलिंडर तक के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है.

सरकारी-तंत्र की नाकामी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने कंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाया और कहा कि ऑक्सीजन की आपूर्ति ना होने और इससे हो रही मौतों के लिए सरकार जिम्मेदार है. ऐसे में कोविड-19 महामारी से लड़ने के अभूतपूर्व प्रयासों की आवश्यकता है जो प्रत्येक स्तर पर देश को इस संकट से बचाने के लिये सरकार की जिम्मेदारी है. केंद्र ने महामारी से निपटने के लिये शक्तियों को केंद्रीकृत करते हुए महामारी रोग अधिनियम 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लागू किया था.

क्या है महामारी रोग अधिनियम 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005?

महामारी रोग अधिनियम 123 साल पहले 4 फरवरी, 1897 में बॉम्बे (अब मुंबई) में भयंकर रूप से ‘प्लेग’ नामक रोग के फैलने से अस्तित्व में आया था, यह चूहे से होने वाली बीमारी थी एवं मनुष्यों में बड़ी तेजी से फ़ैल रही थी. इसका मूल उद्देशय महामारी वाली बीमारी को फैलने के खतरे से बचाव करना था. यह ब्रिटिश सरकार को लोगो को जमा होने तथा इधर उधर जाने पर प्रतिबन्ध लगाने की शक्ति देता था. यह अधिनियम भारत में तब से लागु है एवं समय समय पर देश के अलग अलग भागों में महामारी जैसी बीमारी फैलने पर इसका उपयोग किया जाता रहा है.

कोरोना जैसे पेंडेमिक से निपटने के लिए एक और कानून, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 है जो केंद्र सरकार को पूरी शक्ति देता है. 24 मार्च को देश में पहली बार कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ने के लिए इसका उपयोग किया गया, जिसके तहत 21 दिन तक पुरे देश को लोकडाउन करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लिया. अब इस महामारी के खिलाफ जंग को केंद्र ने राज्यों से अपने हाथो में ले लिया.

आपको बता दें कि आपको बता दें कि भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर की परेशान कर देने वाली परिस्थितियां दुनिया भर के मीडिया और सोशल मीडिया फीड पर छाई हुई हैं और इस संकटपूर्ण हालात के लिए सरकार को कोसा जा रहा है. एक तरफ केंद्र-राज्य संबंध बेहतर नहीं हैं. भारतीय संघवाद सहयोगी के बजाय परस्पर विरोधी की भावना में काम किया है, जिसे केंद्र सरकार के विपक्षी राजनीतिक एंगल से देखा जा सकता है. कोविड-19 संकट में वैक्सीन वितरण, ऑक्सीजन की सप्लाई, जीवनरक्षक दवाओं की उपलब्धता को लेकर संघ और राज्यों के बीच के संघर्ष न केवल सहकारी संघवाद के विचार को प्रभावित किया है, बल्कि देश में लोगों के मौत का कारण भी बना है.

केंद्र सरकार कोरोना वैक्सीन और ऑक्सीजन के उत्पादन तथा वितरण का प्रबंध करने के लिये एकमात्र एजेंसी होने के नाते ज़िम्मेदारी थी कि वह वैक्सीन और ऑक्सीजन का पर्याप्त एवं विवेकपूर्ण वितरण निश्चित करे. हालांकि वैक्सीन के वितरण, दवाओं की आपूर्ति, ऑक्सीजन की उपलब्धता आदि के भेदभाव को लेकर कई राज्यों की शिकायतें सामने आ रही हैं. उसमें से एक बड़ी शिकायत यह है कि वैक्सीन पर लगने वाला 5 फीसदी का जीएसटी खत्म हो.

यदि राज्यों को वैक्सीन पर जएसटी की राहत नहीं मिलती हैं तो इससे न केवल उनके आर्थिक बोझों में इजाफा होगा, जो पहले से ही वित्तीय बोझ के तले तबे हुए हैं. ऐसे में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो इन शिकायतों को दूर करें. इसके अलावा, केंद्र सरकार राज्यों को धन मुहैया करा सकती है ताकि वे राज्य स्तर पर संकट से निपटने के लिये आवश्यक कदम उठा सकें.

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