लोक आस्था का महापर्व न केवल धार्मिक व आध्यात्मिक आधारों से जुड़ा है, बल्कि इस पर्व से समाज में सामुदायिक विकास की भावना बलबती होती है. इससे समाज में समरसता आती है. प्राचीन समय से ही सूर्योपासना का महापर्व छठ मनाया जाता है. सदियों से सनातन पर्व की ये पावन धारा प्रवाहित हो रही है जिसमें जाति व धर्म की दीवार टूटती नजर आती है और सामाजिक एकता का संदेश मिलता है.

इस त्योहार में सभी वर्ग और जाति-बिरादरी के लोग अपनी-अपनी सहभागिता निभाते चले आ रहे हैं. इससे ये साफ जाहिर होता है कि भगवान की नजर में सभी एकसमान हैं. बारीक तरीके से इस पर्व के तह में जाये तो समाज में सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों द्वारा तैयार सूप से भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. छठ मईया उन लोगों को भी सम्मान दिलवाती हैं जो समाज के सबसे हाशिये पर खड़े हैं. वहीं गांव के कुंभकारों के द्वारा मिटटी से तैयार किये गये चौमुख दीया, हाथी और घड़ा सहित अन्य सामानों को खरीदा जाता है. 

यहां तक कि मुस्लिम समाज के लोग भी इस पर्व पर पूरी निष्ठा के साथ छठ मनाने वाले लोगों का सहयोग करते हैं. सचमुच लोक आस्था के इस पावन पर्व में जाति व मजहब की दीवार टूटकर बिखर जाती है और सभी को एकसूत्र में जोड़ने का काम करती है. यहीं तो छठ पर्व की खासियत है जो सामाजिक समरसता का, एकता व बंधुत्व का मैसेज देने का काम करती है. इससे लोगों में समझ विकसित होती है कि एक-दूसरे के बिना वे कितने अधूरे हैं. वे एक-दूसरे का महत्त्व समझते हुए समाज में समरस हो कर रहना है ये संदेश सीखते है.

आज जब देश में सामाजिक एकता के ताने बाने को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश चल रही है, जातिवाद, सांप्रदायिकता के नाम पर एक समुदाय को दूसरे से लड़ाने के लिए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं तो समरस, सरस और सर्वसमाज समभाव का संदेश लेकर आती है 'छठ पर्व'. इस दौरान आपसी सौहार्द की मिसाल भी देखने को मिली देवापुर ग्राम पंचायत में, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग भी श्रद्धालुओं को सहयोग एवं शुभकामना देने आये.

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