हिंदू सनातन धर्म में दीपावली एक अहम पर्व है. यूं तो इसे रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है. पर, इस पर्व का एक विशेष आध्यात्मिक एवं धार्मिक आधार है. ये पर्व प्रतीक है अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, बुराई पर अच्छाई और निराशा पर आशा की. ऐसी ही आशा की एक किरण प्रज्ज्वलित करने का काम करता है देवापुर.

आपको बता दें कि देवापुर बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के पताही ब्लॉक में है. इस दौरान सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. गांव में दीपोत्सव मनाने से पहले महाबली हनुमान जी की पूजा की जाती है. इसके लिए विशेष तौर पर एक टीम बनाई जाती है. पूराने ध्वज को निकालने से लेकर नये ध्वज स्थापित करने तक की पद्धति को शास्त्र सम्मत तरीके से किया जाता है.

इसके तहत गांव के लोग सहयोग के तौर पर एक ध्वज लेकर पूजा स्थल जाते हैं. इससे सामुदायिक विकास का बीजारोपण तो होता ही है, साथ ही साथ ये संदेश भी प्रसारित होता है कि अगर एक-एक लोग एक-एक ध्वज का सहयोग देते है जिससे ध्वज का एक समूह बन जाता जो किसी भी परिस्थिति में अपने जड़ से अलग नहीं होता. अर्थात इससे गांव, समाज एवं राष्ट्र में एकता के संदेश के साथ-साथ प्रकृति पूजा के महत्व को भी प्रसारित किया जाता है. महिलाएं व बच्चे इस आयोजन में दर्शक होते हैं. पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही इस परंपरा के माध्यम से ग्रामीण भारत की मूल भावना सेवा, सहयोग एवं भाईचारे का मिसाल कायम करते हैं.


पूजा में गांव वाले हनुमान जी का प्रिय भोग लाल व ताजे फल और गुड़ व आटे से बने लड्डू अर्पित करते हैं. पूजा उपरांत इसी भोग को गांव वालों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. पवनसुत हनुमान जी के प्रतिक ध्वज को स्थापित कर हिंदू सनातन पद्धति से पूजा किया जाता है. पूजा में गांव भर के लोग शामिल होते है, जो ये दर्शाता हैं कि देश की संस्कृति के प्रति शहरों से कही ज्यादा गांवों के लोगों में आस्था और निष्ठा है. गांव के लोगों का यूं इकठ्ठे होना सद्भाव एवं भाईचारे की भावना को उजागर करता है. इससे वर्तमान पीढ़ी यह प्रेरणा ग्रहण कर सकती है कि वो देश की सांस्कृतिक विरासत को कैसे सहेज सकते है.

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