पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमूख नेता और सच्चे गांधीवादी थें. बीसवीं सदी के दुसरे दशक से लेकर छठे दशक तक वे कांग्रेस के एक सक्रिय नेता रहें. उनका कार्यक्षेत्र बिहार का शाहाबाद जिला रहा. उन्होंने 1937 के बिहार विधानसभा के चुनाव में तत्कालीन शाहाबाद जिले के भभुआ विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. स्वतंन्त्रता की लड़ाई में वे राजेंद्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिंह के निकटतम सहयोगी रहें.

पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय का जन्म बिहार के शाहाबाद जिले के भभुआ सबडिविजन के रतवार गांव में 1899 के दिसम्बर माह में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित सुखदेव पाण्डेय था. उनकी शिक्षा –दीक्षा का प्रारम्भ गावं के नजदीक मोहनिया के गुरु ट्रेनिंग स्कूल से हुआ. उसके बाद भभुआ के मॉडल स्कूल और उच्च विद्यालय , सासाराम से शिक्षा ग्रहण करने के बाद आरा टाउन स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास हुए. जब मोहनदास करमचंद गांधी ने 1921 में असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात किया तब गुप्तेश्वर पाण्डेय जैन कॉलेज, आरा में इंटर के छात्र थे ,साथ ही जैन कॉलेज के प्रमूख छात्र नेता थें. महात्मा गांधी के आह्वान पर इंटर की पढाई बीच में ही छोड़कर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े. 1921 में बिहार के छात्रों ने बिहारी स्टूडेंट्स कांफ्रेस नामक संगठन बनाया ,जिसमे गुप्तेश्वर पाण्डेय की महत्वपूर्ण भूमिका रही. इस संगठन का उद्देश्य सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों और कॉलेजों की शिक्षा का बहिष्कार करना था. यह संगठन मुख्यतः गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रेरित था. जिसमे मुख्यरूप से सफ्रुद्दीन ,दीप नारायण सिंह ,सचिदानंद सिन्हा और बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद आदि प्रमुख थे. गुप्तेश्वर पाण्डेय ने असहयोग आन्दोलन के सन्दर्भ में छात्र नेता के रूप में आरा के हरिहर सिंह और हरिनंदन सिंह के साथ भभुआ में 11 -12 अप्रैल 1921 को दो बड़े मीटिंग का आयोजन किया. इस आयोजन की चर्चा इतिहासकार जे एल वर्मा ने 1995 में जर्नल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च में प्रकाशित अपने लेख में किया है. बाबू हर्रिहार सिंह स्वतंत्र भारत में बिहार के मुख्यमंत्री बने. 1921 में असहयोग आन्दोलन के संबंध में 11 अगस्त 1921 को गांधी जी बक्सर पहुंचे. उनके साथ मोहमद अली व् जमुना लाल बजाज भी थे. गांधी जी के द्वारा असहयोग आन्दोलन की आधारशिला रखने बक्सर पहुँचाने की खबर पूरे शाहाबाद जिले में फ़ैल गयी. गुप्तेश्वर पाण्डेय की पत्नी रामदुलारी देवी अपने पति के नक़्शे कदम पर चलते हुए अपने गावं रतवार से गावं की बासमती देवी ,उद्वान्ति देवी ,रामदयी देवी आदि महिलाओं को साथ लेकर पैदल हीं तिरंगा झंडा लेकर गांधी जी का भाषण सुनने निकल पड़ी. शाहाबाद में गांधीजी के इस आगमन के बाद गुप्तेश्वर पाण्डेय, हरगोविंद मिश्रा, सरयू सिंह, रघुबंश नारायण सिंह आदि युवाओं ने स्वदेशी भावनाओं का प्रचार –प्रसार किया. इसी बीच असहयोग आन्दोलन में कुछ शिथिलता आ जाने पर भी गुप्तेश्वर पाण्डेय के सेवाव्रत में कोई कमी नही आई, और गुप्तेश्वर पाण्डेय गांधीजी के सिधान्तों के प्रचार–प्रसार में सतत संलग्न रहें. महात्मा गांधी के सहयोगी श्री यमुनालाल बजाज द्वारा स्थापित गाँधी सेवा संघ और चरखा संघ के संचालन में भी सहयोग करते रहें.

बिहार खिलाफत कॉन्फ्रेंस का पहला सत्र 5 अक्टूबर 1921 को आरा में आयोजित हुआ. जिसकी अध्यक्षता मौलवी मुहम्मद सफी ने किया. इस अधिवेशन में बड़ी संख्या में हिन्दू और मुसलमानों ने शिरकत किया. बिहार के अन्य नेताओं के साथ स्थानीय नेता हरिहर सिंह और गुप्तेश्वर पाण्डेय भी शामिल हुए. अगले वर्ष 1922 के दिसम्बर महीने में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन बिहार के गया शहर में आयोजित किया गया. जिसके अध्यक्ष देशबंधु चितरंजन दास बने. बिहार में कांग्रेस का अधिवेशन होने के कारण बिहार के युवाओं पर इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी डाली गयी. अधिवेशन के विभिन्न समितियों में बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद के नेतृत्व में युवकों ने योगदान किया, जिसमे गुप्तेश्वर पाण्डेय को भी जिम्मेदारी मिली.

1929 में कोंग्रेस का 44 वां अधिवेशन लाहौर में हुआ. वह अधिवेशन कई दृष्टी से ऐतिहासिक साबित हुआ. कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास हुआ. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस अधिवेशन में बिहार के शाहाबाद जिले से पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय के नेतृत्व में नौजवानों ने भाग लिया. गुप्तेश्वर पाण्डेय के साथ शाहाबाद से ठाकुर अयोध्या सिंह ,सचिदानंद साह आदि भी शामिल थें. इसी अधिवेशन में प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया. जवाहरलाल नेहरु के आह्वान पर 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस मनाने के संकल्प के साथ ही शाहाबाद जिले के भभुआ में रविवार 26 जनवरी 1930 को पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय के संयोजन में कार्यक्रम आयोजित किया गया. उनके साथ उक्त कार्यक्रम में बाबू राजेश्वरी प्रसाद सिंह ,राजकुमार लाल, बाबू चूरन सिंह ,लक्ष्मण सिंह और मौलाना मुइजुदीन आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.

6 अप्रैल 1930 को गांधीजी ने दांडी में नमक बनाकर सरकार के नमक बनाने के एकाधिकार को तोड़ा तो भभुआ में भी नमक सत्याग्रह केंद्र पर गुप्तेश्वर पाण्डेय ,रामनारायण सिंह, मानिकचंद और बद्री सिंह के नेतृत्व में नमक बनाया गया. 1930 के नमक सत्याग्रह का नेतृत्व पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय ने किया.

इस तरह राष्ट्रीय आन्दोलन में गुप्तेश्वर पाण्डेय की राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने उन्हें शाहाबाद जिला कांग्रेस कमिटी के सचिव की जिम्मेदारी सौंपी. शाहाबाद जिले का मुख्यालय आरा में था ,और गुप्तेश्वर पाण्डेय ने एक कुशल संगठन कर्ता के रूप में भभुआ से आरा तक स्वतंत्रता आन्दोलन के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कराने में महती भूमिका निभायी.

1930 के मई में शाहाबाद जिले में मादक द्रव्य निषेध आन्दोलन हुआ. इस आन्दोलन के नेतृत्व कर्ता में पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय ,बाबू विन्ध्याचल प्रसाद ,श्री इन्द्र देव शर्मा ,हरिनंदन पाठक ,प्रदुमन मिश्र आदि थे. नशीली पदार्थों की दुकानों पर कड़ी पिकेटिंग हुई. इस आन्दोलन में गाड़ीवानों तक ने निश्चय किया कि वे कोई सामान नही उठाएंगे. सभी गाड़ीवान अपनी गाडियों में तिरंगा झंडा लगाकर राष्ट्रीयता का नारा लगाते हुए गाड़ियाँ हांकने लगे. अंत में अंग्रेजी सरकार ने लाचार होकर लारियों का प्रबंध किया, और अंततः सभी नेता गिरफ्तार किये गए.

कांग्रेस की आज्ञानुसार सारे देशभर के जिलों में राष्ट्रीय जागृति लाने हेतु बड़े समारोह के साथ नवंबर 1930 को जवाहर दिवस मनाया गया और बड़ी सभाएं आयोजित हुई. शाहाबाद जिला मुख्यालय आरा में कांग्रेस अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरु का भाषण पढ़ते हुए गुप्तेश्वर पाण्डेय गिरफ्तार कर लिए गए. इसमें गुप्तेश्वर पाण्डेय को छः महीने की सजा हुई.

इन दिनों शाहाबाद जिले के किसानों में नहर शुल्क के विरुद्ध बहुत आक्रोश था. किसानों की शिकायत की जाँच करने हेतु बिहार कांग्रेस द्वारा नियुक्त जाँच समिति का ध्यान इस ओर आकृष्ट हो रहा था. शाहाबाद जिला कांग्रेस कमिटी ने नहर के मसुली की जाँच शीर्षक से एक अधिसूचना जारी किया, जिस पर श्रीकृष्ण सिंह, प्रो. अब्बुल बारी और बलदेव सहाय के हस्ताक्षर थे. सभी प्रमुख कांग्रेसी नेता 29 नवंबर 1931 को शाहाबाद पहुंचे. शाहाबाद के दो कांग्रेसी नेताओं श्री गुप्तेश्वर पाण्डेय और विन्ध्याचल प्रसाद के साथ जिले का दौरा करते हुए उन लोगों ने बिक्रमगंज, डुमराव ,चौसा में सभाएं की.

बिहारी स्टूडेंट्स कांफेरेंस का 24 वां सम्मेलन 1931 में हुआ. इसमें मुंशी ईश्वर शरण को अध्यक्ष चुना गया. शाहाबाद जिले के प्रमुख कांग्रेस-जन ने भाग लिया. गुप्तेश्वर पाण्डेय ने शाहाबाद जिला कांग्रेस कमिटी के सचिव के रूप में इस सम्मेलन में हिस्सा लिया. वहीं जब बिहार में वर्ष 1934 के भयंकर भूकम्प के बाद उत्पन्न संकटकाल में श्री गुप्तेश्वर पाण्डेय को बिहार प्रदेश कांग्रेस द्वारा मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत सकरा थाना में राहत कार्य के लिए भेजा गया. वहाँ गुप्तेश्वर पाण्डेय के प्रसास से सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ता तैयार किये गए.

1937 में कांग्रेस ने प्रान्तों के विधानसभा चुनाव लड़ने का निश्चय किया. उनमे से एक प्रान्त बिहार भी था. बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने शाहाबाद जिले के भभुआ विधानसभा से पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय को चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया. गुप्तेश्वर पाण्डेय की राजनीतिक सक्रियता और गांधीवादी कार्यक्रमों को कुशलता के साथ भारतीय जनमानस में लोकप्रिय बनाने के कारण डा राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें विधानसभा में पहुँचने का आग्रह किया. बिहार विधानसभा हेतु 22 से 27 जनवरी 1937 के मध्य विभिन्न स्थानों पर मतदान संपन्न हुआ. अपनी निरंतर कर्मठता और सेवासदाशयता के फलस्वरुप पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय भभुआ विधानसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाये गए. 13 फ़रवरी 1937 को चुनाव परिणाम के बाद पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय को भभुआ विधानसभा से प्रथम विधायक होने का गौरव प्राप्त हुआ. गुप्तेश्वर पाण्डेय को जहाँ 18904 मत मिले वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रायबहादुर शारदा प्रसाद को 4660 मत प्राप्त हुआ. पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय विधनासभा के भीतर बहुत हीं मुखर रहें. भभुआ में सिचाई की समस्या हो या सासाराम में साम्प्रदायिक दंगे की समस्या या दुर्गावती में पुल निर्माण को लेकर गुप्तेश्वर पाण्डेय ने सदन के भीतर जोरदार आवाज़ उठायी.

गांधीजी ने 9 नवंबर 1940 को प्रांतीय कमिटियों को व्यक्तिगत सत्याग्रह का आदेश भेजा. शाहाबाद में व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू हुआ. सत्याग्रह करने वालों में मोहनिया में पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय ,दुर्गावती में दिनेश दत्त गिरी ,रामगढ में सरयू प्रसाद ,कुदरा में रामनगीना सिंह प्रमुख थें. इन सत्याग्रहियों को अंग्रेजी सरकार के द्वारा गिरफ्तार किया गया और एक वर्ष तक कारावास का दंड दिया गया. इन एक वर्षो में पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय को हजारीबाग जेल में बिहार के प्राय सभी प्रमुख कांग्रेसजनों का सौभाग्यपूर्ण सह्चर्य प्राप्त हुआ. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय ने अपनी अद्भुत संघर्षशीलता का परिचय दिया. 16 अगस्त 1942 को गुप्तेश्वर पाण्डेय के गावं रतवार में दुर्गावती नदी पर निर्मित पुल क्रांतिकारियों द्वारा उड़ा दिया गया. भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रियता के कारण गुप्तेश्वर पाण्डेय के घर को अंग्रेजी सरकार द्वारा ढहा दिया गया तथा गाय-बछड़ा आदि मवेशी खोल दिया गया. उनके घर के सभी प्रकार के अनाजों को एक में मिला दिया गया ताकि सभी भूखे रहें. पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय अपनी पत्नी के साथ कथा पर बैठे थें ,वहीँ उनको गिरफ्तार कर लिया गया.

पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय 1948 से 1953 तक शाहाबाद जिला परिषद के अध्यक्ष रहें. आजाद भारत में उन्हें शाहाबाद डिस्ट्रिक बोर्ड के प्रथम चेयरमैन बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. इस दौरान पद पर रहते हुये उन्होंने सैकड़ो लोगों को रोजगार दिलाया तथा स्वालंबी बनाया. उनके ही कार्यकाल में दुर्गावती नदी पर पुल निर्माण का कार्य संपन्न हुआ. स्वतंत्र भारत में गांधी के विचारों के प्रचार –प्रसार हेतु पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय ने “गांधी मार्ग दर्शन” शीर्षक से एक महत्वपूर्ण रचनात्मक योजना का निर्माण किया था ,और उसके माध्यम से देश की बिभिन्न जटिल एवं ज्वलंत समस्यायों के समाधान खोजने में सफलता प्राप्त की. इस योजना के सन्दर्भ में पंडित गुप्तेश्वर पाण्डेय अनेक बार श्रीमती इंदिरा गाँधी, मोरारजी देसाई तथा अशोक मेहता सदृश्य महान विभूतियों से भी विचार –विमर्श कियें लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ पटना कॉलेज में एक सहपाठी से लेकर हजारीबाग जेल में साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त किया. स्वतंत्र भारत में आर्यावर्त सहित कई पत्र –पत्रिकाओं में अपने लेखन से देश की सेवा की.उनका देहावसान जयेष्ट शुक्लपक्ष एकादशी ,8 जून 1987 को हुआ.

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