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हाल ही में रोश द्वारा विकसित एंटीबॉडी-ड्रग कॉकटेल, कासिरिविम्ब और इमदेवमब के आपातकालीन इस्‍तेमाल को दवा नियामक सीडीएससीओ, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने मंजूरी दे दी है। इस ड्रग के अंदर एंटीबॉडी कि मात्रा एक हज़ार गुना ज्यादा है। ख़ास बात यह है की इस दवा को लेने के बाद कोविड़ के मरीज़ सीधे घर जा सकते है।

रोश फार्मा भारत में सिप्ला के साथ कॉकटेल दवा का वितरण करेगी। यह दवा कुछ ही निजी मेडिकल संस्थाओं में उपलब्ध कराई जा रही है जिससे इसकी कालाबाजारी पर निगरानी रखी जा सके। एक समय रोश फार्मा और सिप्ला भारत के बीच कि कानूनी लड़ाई विश्व भर में फैले चिकित्सा बाजार के बीच चर्चा का विषय थी। 

वर्ष 2007, फरवरी में रोश और फाइजर (अमेरिका कि फार्मा कंपनी) ने संयुक्त रूप से Erlotinib नामक ड्रग को पेटेंट (लाइसेंस) करा। यह ड्रग फेफड़ों के कैंसर के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। भारत में यह ड्रग 'Tarceva 'के नाम से बाज़ार में उतारी गई। 2007 के दिसंबर माह तक सिप्ला ने भी इसी दवा को सस्ती दर पर बनना शुरू कर दिया।

जहा Tarceva के दाम प्रति कैप्सूल 4800 रुपये थे वही सिप्ला कि यही दवा 1600 रुपये में बाज़ार में बिक रही थी। 2008 में रोश फार्मा ने कानूनी कार्रवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में 'Erlotinib' ड्रग के लाइसेंस चोरी का इलज़ाम सिप्ला इंडिया पर लगाया। सिप्ला ने अपने बचाव में पब्लिक इंटरेस्ट, स्वास्थ का हवाला दिया साथ ही यह पक्ष रखा कि भारत में निर्यात करी जानी वाली दवाएं एक गंभीर और जटिल प्रक्रिया है। 

उन हालातो में भारत के पास अपनी दवा होना अनिवार्य है। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस बात पर भी संज्ञान लिया कि जिस ड्रग के लाइसेंस का हवाला रोश फार्मा ने दिया है वो कोई आविष्कार किया हुआ नही पर पहले से ही मौजूद हैं। और 'इंडियन पेटेंट्स एक्ट' के अनुरूप किसी मौजूदा ड्रग का इस्तेमाल गैर कानूनी नही है। फैसला सिप्ला के हक में हुआ था।

वक्त दर वक्त बड़ी बड़ी फार्मा कंपनी एक दूसरे पर केस कर के अपने शेयरहोल्डर्स को फायदा पहुंचाती आई है। यह भी एक तरह का ड्रग माफिया का ही असर है। हालाकि यह एक रोचक बात है कि जो दो कंपनिया कभी आपस में भिड़ रही थी वो आज एक साथ व्यापार में उतर आई है।

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