उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित विश्वप्रसिद्ध केदारनाथ भगवान भोलेनाथ का मंदिर है. यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो कि सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचाई पर स्थित है. साल 2013 में आई भीषण आपदा ने उत्तराखंड की केदारघाटी को तबाह कर पूरे दुनिया को झकझोर कर रख दिया था. उत्तराखंड के इतिहास के इस भयानक सैलाब को हिमालयन सुनामी (Himalayan T-Sunami) का नाम दिया गया. 

इस साल 16 जून को इस घटना के 8 साल हो पूरे हो जाएंगे, लेकिन इसके ज़ख्म इतने गहरे हैं कि वो कभी नहीं भरेंगे. देश-विदेश के हजारों श्रद्धालुओं को इस आपदा में अपनी जान गंवानी पड़ी थीं. उन अपनों की यादें, जो इस आपदा में सदा के लिए बिछुड़ गए. भुलाई नहीं जा सकती हैं.

प्रलय के वो 5 मिनट

15 जून के दोपहर से बारिश का कहर लगातार जारी था. इससे बादल फटने व लैंडस्लाइड शुरू हो गए. चश्मदीदों के अनुसार यह बारिश असामान्य रूप से काफी ज्यादा थी. पहले कभी इतनी बारिश नहीं हुई थी. तेज बारिश के कारण मंदाकिनी नदी जबरदस्त उफान पर आ गई. 16 जून की रात 8 बजे तक केदारपुरी में मंदाकिनी के किनारे स्थित मकान, होटल, लॉज, दुकान और गाडियां ताश के पत्तों की तरह इस उफान में बह गए थे. 

जैसे तैसे करके 16 जून की रात, बारिश और डर के साए में गुजर गई. लेकिन लेकिन लोगों को अभी तक आने वाली बड़ी आपदा का अहसास नहीं था. 17 जून की सुबह 7 बजे केदारनाथ घाटी में स्थित चौराबाड़ी ताल में अचानक एक ज़ोरदार विस्फोटक आवाज़ हुई. चोराबारी लेक कुदरती पानी की एक झील है, जिसमे बर्फ के पिघलने और बारिश से पानी जमा होता है. पिछले 2 दिन से हो रही लगातार बारिश से इसका जलस्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था. जिस से इसका तटबंध टूट गया और सारा पानी नीचे की और बहने लगा. 

चट्टानों से टकराते हुए ये अपने साथ बड़े बड़े पत्थरों का जानलेवा मलबा लेकर केदारनाथ मंदिर की तरफ बढ़ रहा था. यही वो महाप्रलय था जो इतनी तेजी से हुआ कि किसी को भी संभलने का मौका नहीं मिला. पानी इतनी तेज रफ्तार से आया कि रास्ते में आई हर चीज को अपने साथ बहा ले गया. मौत और तबाही का ये भयानक तांडव पूरी केदार घाटी में जारी था. सब कुछ तहस नहस हो गया था.

5 मिनट से भी कम समय में ये सैलाब अपने पीछे जगह जगह कीचड़, मलबा और हजारों लाशों के ढेर छोड़ गया. केदारनाथ मंदिर लाशों से भरा पड़ा था. चारो तरफ बस मौत का तांडव था. सिर्फ केदारनाथ ही नहीं अपितु बदरीनाथ; गंगोत्तरी; हेमकुंड साहिब सहित उत्तराखंड के अनेक स्थानों पर भारी तबाही हुई थी. सबसे ज्यादा जान माल का नुकसान केदारनाथ और रामबाड़ा में हुआ. दोनों जगहों पर सिर्फ लाशें और मलबा था. केदारनाथ मंदिर के अलावा सब कुछ पानी में बह गया था. मंदिर को बाल न बांका होने के पीछे भी एक चमत्कार है.

जब ये महाप्रलय हो रहा था, उसी दौरान एक शिलाखंड (चट्टान) ने मंदिर की तरफ बढ़ रहे सैलाब का रास्ता ब्लॉक कर दिया. इससे बाढ़ का पानी दो धाराओं में बंटकर मंदिर के दोनों ओर से निकल गया. इस तरह भगवान शिव का ये मंदिर सुरक्षित रह गया. बाद में इसे भीमशिला का नाम देकर इसकी पूजा होने लगी.


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