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8 या 18 हर साल कितने भक्तों की होती है मौत ? जब हम हर साल गणेश विसर्जन या दुर्गा विसर्जन की तस्वीरें देखते हैं। तो एक तरफ खुशी और भक्ति का माहौल होता है। वहीं दूसरी तरफ कुछ दुखद खबरें भी आती हैं। विसर्जन के दौरान डूबने से या अन्य हादसों में लोगों की मौत की खबरें अब आम हो गई हैं। यह एक गंभीर समस्या है जिसके कई कारण हैं।

  • भारी भीड़ और अव्यवस्था: विसर्जन घाटों पर अत्यधिक भीड़ जमा हो जाती है, जिससे धक्का-मुक्की और अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है।
  • नशे की हालत: कई लोग इस मौके पर शराब या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, जिससे उनका संतुलन बिगड़ जाता है और दुर्घटनाएँ होती हैं।
  • तैराकी का ज्ञान न होना: कई लोगों को नदी या समुद्र की गहराई का सही अंदाजा नहीं होता और वे पानी में डूब जाते हैं, खासकर जब वे उत्साहित होते हैं।

यह कब तक चलेगा?

यह कहना मुश्किल है कि ऐसी घटनाएँ कब तक चलेंगी, लेकिन समाज में बदलाव धीरे-धीरे आ रहा है। यह पूरी तरह से लोगों की जागरूकता, सरकारी प्रयासों और सामाजिक संगठनों की पहल पर निर्भर करता है।

  • जागरूकता बढ़ाना: लोगों को यह समझाना होगा कि विसर्जन एक धार्मिक प्रक्रिया है, न कि जश्न मनाने का मौका जिसमें जान का जोखिम हो।
  • सुरक्षा के कड़े नियम: प्रशासन को विसर्जन घाटों पर सुरक्षा के सख्त नियम लागू करने चाहिए, जैसे लाइफगार्ड्स की तैनाती, पुलिस बल, और इमरजेंसी सेवाओं की उपलब्धता।
  • कृत्रिम विसर्जन कुंड: प्राकृतिक जल निकायों के बजाय, सरकार को शहरों में कृत्रिम तालाबों का निर्माण करना चाहिए जहाँ लोग सुरक्षित रूप से विसर्जन कर सकें।
  • वॉलंटियर्स और स्वयंसेवक: स्थानीय संगठनों को सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन में मदद के लिए स्वयंसेवकों को तैनात करना चाहिए।
  • रात में विसर्जन पर प्रतिबंध: कुछ शहरों में रात के समय विसर्जन पर प्रतिबंध लगाना भी एक अच्छा कदम हो सकता है ताकि दृश्यता अच्छी रहे।
  • पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियाँ: लोगों को मिट्टी और पानी में घुलनशील सामग्री से बनी मूर्तियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे विसर्जन का जोखिम कम हो। यह एक सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती है। जब तक लोग खुद जिम्मेदार नहीं बनेंगे और सरकारें प्रभावी कदम नहीं उठाएंगी, तब तक ऐसी दुखद घटनाएँ होती रहेंगी।

क्या समुद्र में विसर्जन करना सही है ?

परंपरागत रूप से, विसर्जन जल निकायों जैसे नदियों, झीलों और समुद्र में किया जाता रहा है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि भगवान गणेश अपनी पृथ्वी यात्रा समाप्त करके जल तत्व में वापस लौट जाते हैं। जल को जीवन का स्रोत और पवित्र माना जाता है। लेकिन, आधुनिक युग में जब जनसंख्या और प्रदूषण दोनों बढ़ रहे हैं, यह तरीका पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक साबित हो रहा है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP), रासायनिक रंगों और प्लास्टिक से बनी मूर्तियों के कारण जल प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। इससे न सिर्फ जलीय जीवन को खतरा होता है, बल्कि पानी का उपयोग करने वाले मनुष्यों और जानवरों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है।

हर साल कितने भक्त होते है शिकार?

हर साल, देश भर में गणेश विसर्जन और दुर्गा विसर्जन जैसे आयोजनों के दौरान औसतन 10 से 30 लोगों की मौत होती है। यह संख्या साल-दर-साल बदलती रहती है और यह आँकड़ा पूरे भारत का मिलाकर होता है। यह सिर्फ एक अनुमान है और अलग-अलग जगहों पर कम या ज़्यादा हो सकता है। इनमें से ज़्यादातर मौतें डूबने के कारण होती हैं, लेकिन भगदड़, बिजली का करंट, और सड़क दुर्घटनाएँ भी इसका हिस्सा होती हैं। यह दुखद है कि उत्सव के दौरान इतने लोगों की जान चली जाती है, और इसी वजह से सुरक्षा के नियमों का पालन करना बहुत ज़रूरी है।

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