प्रेम का उसूल परकाया प्रवेश, Image Source: lifehack

प्रेम का पहला उसूल होता है परकाया प्रवेश। कोई भी रचनात्मक कार्य या बड़े स्तर का ध्यानगमन बिना उस व्यक्ति या विधि की आत्मा को जाने बिना नहीं हो सकता। नाथ सम्प्रदाय के आदि गुरु मुनिराज 'मछन्दरनाथ' के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी। सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे। अक्सर अध्ययन करते हुए ख़ुद को या दूसरे को उस विषय को समझाना खुद विशेषज्ञ मान कर एक जटिल प्रक्रिया को भी आसान बना देता है। बहुत से वैज्ञानिक ने इसी आधार पर कई अनसुलझे रहस्य आविष्कारों की खोज करी है। मनुष्य अपने दिमाग का सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा उपयोग करता है। उस बचे विशाल हिस्से से तो अभी भी सामान्य मनुष्य अज्ञानी है।

कभी सोचा होगा आपने की क्यो एक कलाकार इस हद तक अपने किरदार में खो जाता है कि उसमें मानसिक विकार के लक्षण दिखाई देने लगते है। पर क्या सचमुच वो पागल है? क्या सच में उसमे निराशा के कण है? बस वो खुद को उस शख्स से जुदा नहीं कर पाता। बहुत बार चाहत इस कद्र हावी हो जाती है की हम उस इंसान की कमियां खूबियां भी अपने ऊपर ले लेते है। ना जाने, कुछ लोगो के साथ हम अलग होते है और कुछ के साथ कुछ और। अकेले में शांत, मंच पर विद्रोही। एक लेखक लिखते हुए खुद को उसी हालात , उसी इंसान को अपने सामने पाता है जिसके लिए वो लिखता है। पर क्या यह समझा जाए की हम सब एक ब्रह्मांड में तैरती हुई आत्माए है जो जाने अनजाने एक दूसरे में संलग्न होते रहते है?

"हर लड़की के सपने होते है की उसका घर बसे। उसके बच्चे हो। आपने यह प्रचार कर के कि मैं अपने मासिक का खून तंत्र में ले कर आती हूं आपने मुझे एक चुड़ैल साबित कर दिया। वो सपना भी आपने खत्म कर दिया। फिर, मैने अपनी मेहनत से कुछ थोड़े बहुत विज्ञापन कमाए थे। आपने मेरे पर कोर्ट केस कर कर के मेरी छवि एक दम धूमिल कर दी। मेरे को सारे ब्रैंड एंड्रोसमेंट से हाथ धोना पड़ा। मैंने अपनी कमाई से मुंबई में एक ऑफिस बनाया था जिसे बीएमसी के बुलडोजर चला कर गिरा दिया। आपने तो कोई कसर नहीं छोड़ी मुझे तोड़ने की"

यह वाक्य कंगना रनौत के थे। जब भी कंगना रनौत को देखती हूं मुझे एक ऐसी स्त्री दिखती है जो दुश्मन पर घात लगाए बैठी है और मौका मिलने पर वार कर देती है। कंगना के अंदर एक ऐसी स्त्री की परछाई मालूम देती है जो अकेली ही उस समाज से जूझ रही है जिसका भविष्य लोभ, काम और सिक्को में डूबे हुए मर्द निर्धारित करते है। कंगना भावुक है। इसका प्रमाण है उनका हर बात बेबाकी से बोलना और निडर होकर कहना। अकेला इंसान आंख कम झपकाता है। उम्र के उस पड़ाव पर हर कोई महत्वकांक्षी और जुझारू होता है। कंगना भी थी। साम दाम दण्ड भेद और जिस्म की तर्ज पर वो आगे बढ़ी और सफल हुई। लेकिन परिस्थिति कब किसी को बाध्य कर दे एक अलग लीक पर चलने को यह निर्धारित नहीं किया जा सकता। कुछ इसे समय कहते है,कुछ भाग्य तो कुछ कर्म पर मैं इसे यात्रा मानती हूं...

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