Israel Palestinian conflict: How Israel became a country

चारों तरफ से इस्लामिक देशों से घिरा इसराइल 1948 में फिलीस्तीन के दो हिस्से कर बना था. परंतु ये तो उसका पुनर्निर्माण था. दरअसल, इसराइल के निर्माण, फिर पतन और उसके बाद पुनर्निर्माण के पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी है. आइए जानते हैं क्या है वह किस्सा. दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक यहूदी धर्म आज से तकरीबन 3,000 साल पहले पैगंबर अब्राहम द्वारा येरूशलम में अस्तित्व में आया. लेकिन यहां भी एक दिलचस्प तथ्य है और वो ये कि पैगंबर अब्राहम को यहूदी, ईसाई और मुसलमान तीनों ही अपना दूत मानते हैं. और इससे भी रहस्यमयी बात ये है कि हिन्दू मान्यताओं में उन्हें प्राजापति ब्रह्मा से जोड़कर देखा जाता है. 

खैर ये एक अलग रिसर्च का विषय है. उसपर चर्चा कभी बाद में करेंगे. फिलहाल यहां आप ये जान लीजिये कि अब्राहम के बेटे का नाम आईजैक और एक पोते का नाम याकूब (जैकब) था. याकूब का दूसरा नाम इसराइल था. उनके 12 बेटे और एक बेटी थी. इन 12 बेटों ने 12 यहूदी कबीले बनाए और उनको एकजूट कर इसराइल नाम का एक राज्य बनाया. इनकी भाषा हिब्रू थी और धर्मग्रंथ तनख.

इतिहास में जिन साउल, इशबाल, डेविड और सोलोमन जैसे प्रसिद्ध राजाओं का जिक्र सुनते हैं वो सब यहुदी धर्म और इसराइल से ताल्लुक रखते थे. 931 ईसा पूर्व में सोलोमन के बाद इस राज्य का धीरे-धीरे पतन होने लगा और महान संयुक्त इसराइल दो हिस्सों इसराइल और यूदा में बंट गया. अब एक तो पहले से ही काफी कमजोरी की हालत में आ चुके इस राज्य के बंटने से साम्राज्य विस्तार की इरादा रखने वाले असीरियाई साम्राज्य ने 700 ईसा पूर्व में येरूशलम पर आक्रमण कर दिया. इस हमले के बाद यहूदियों के 10 कबीले तितर-बितर हो गए.

पतन की कगार पर खड़े यहूदियों के बचे-खुचे हिस्से पर रोमन साम्राज्य ने 72 ईसा पूर्व में हमला कर तहस-नहस कर दिया. इस हमले के बाद सारे यहूदी दुनियाभर में इधर-उधर जाने को मजबूर हो गए. आपको बता दें कि इसी हमले में यहूदी धर्म के पवित्र मंदिर किंग डेविड को भी तोड़ दिया गया. इतिहास में इस घटना को एक्जोडस कहते है. अटैक इतना विध्वंसक था कि अवशेष के रुप में मंदिर की एक केवल एक दीवार बची, जिसे आज भी यहूदी पवित्र तीर्थ मानकर उसे पूजते हैं. यहां मंदिर के अंदर यहूदियों की सबसे पवित्रतम जगह 'होली ऑफ होलीज़' है. यहूदी मानते हैं यहीं पर सबसे पहले उस शिला की नींव रखी गई थी, जिस पर दुनिया का निर्माण हुआ और जहां अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की कुरबानी दी थी. इसे वेस्टर्न वॉल भी कहा जाता है. इसी वेस्टर्न वॉल के साथ मुस्लिमों की पवित्र अल अक्सा मस्जिद व हरम अस शरीफ के साथ ईसाइयों की पवित्र जगह जहां ईसा मसीह को सूली पर टांगा गया था, मौजूद है.

एक्जोडस की घटना से यहुदियों के दुर्दिन शुरू हो गये और एंटी सेमिटिज्म के नाम पर उन्हें घोर यातनाएं दी जाने लगीं. ये सिलसिला थियोडोर हर्जल के समय तक यूं ही बदस्तूर चलता रहा. चूंकि एंटी सेमिटिज्म के चलते हर्जल को अपना जन्म स्थान वियना छोड़ना पड़ा. फिर वे फ्रांस गए. वहां पत्रकारिता करने लगे. लेकिन जब वहां भी रूस के हाथों हारी फ्रांस और में इस हार की जिम्मेदारी एक यहूदी अफसर एल्फर्ड ड्रेफस पर डाल दी गई. हर्जल ने यह स्टोरी कवर की. एंटी सेमिटिज्म के नाम पर हो रहे अन्याय ने हर्जल को झकझोर कर रख दिया. इस घटना के बाद उन्होंने ये तय किया कि वो सारे यहूदियों को एकजूट करेंगे और इसराइल का पुनर्निर्माण करेंगे.

इसके लिए उन्होंने 1897 में स्विटजरलैंड में वर्ल्ड जायनिस्ट कांग्रेस नामक एक संस्था बनाई. जायनिस्ट नाम भी काफी सोच-विचार कर रखा गया क्योंकि इस नाम के पिछे भी यहुदी धर्म का दर्शन प्रतिक के तौर पर जुड़ा हुआ है. जायनिस्ट हिब्रू भाषा में स्वर्ग को कहा जाता है. इस संस्था के बैनर तले यहूदी एकजूट होने लगे. धीरे-धीरे जायनिस्ट कांग्रेस का प्रभाव दुनियाभर के यहूदियों के बीच होता चला गया. इसी बीच हर्जल की हर्ट अटैक से 1904 में मौत हो गई. लेकिन तब तक जायनिस्ट संस्था ने पूरे दुनिया में अपनी पहचान कायम कर लिया था. इधर यहुदियों के मूल स्थान जो कभी इसराइल राज्य था. वहां फ़लस्तीन नाम से नया जगह अस्तित्व में आ चुका था, जो प्रथम विश्व युद्ध के पहले ऑटोमन साम्राज्य का एक ज़िला था. इस इलाक़े में अरबी रहते थे. वहीं लंबे समय से यहूदी ऐतिहासिक आधार पर इस इलाके पर अपना दावा करते थे और यहां बसना चाहते थे.

फिर 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ गया, जो 1914 से 1918 तक चला. इसी विश्वयुद्ध के दौरान 2 नवंबर 1917 को ब्रिटेन और यहूदियों के बीच बालफोर समझौता हुआ. तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बल्फौर ने ‘बल्फौर घोषणा’ (Balfour Declaration) के तहत फिलिस्तीन में एक यहूदी ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) के निर्माण के लिए ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया. इस समझौते के मुताबिक अगर ब्रिटेन युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य को हरा देगा तो फलीस्तीन के इलाके में यहूदियों के लिए एक स्वतंत्र देश दिया जाएगा. इसके बाद तेजी से यहूदियों का दूसरे देशों से येरूशलम की तरफ पलायन होने लगा.

जायनिस्ट कांग्रेस को लगा कि अगर ब्रिटेन अपना वादा पूरा करेगा तो फिलीस्तीन में उस समय यहूदियों की एक बड़ी आबादी होनी चाहिए. दुनियाभर के यहूदी अपने देशों को छोड़कर फलीस्तीनी इलाकों में बसने लगे. यहुदी अब ये मान कर चल रहे थें कि उन्हें उनका वतन मिल जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ब्रिटिश सरकार ने अपना वादा पूरा करने की जगह ताल-मटोल करके बालफोर समझौते को लागू करने से बचते रहे. 

प्रथम विश्वयुद्ध खत्म होने के अगले 20 साल तक बालफोर समझौता लागू ही नहीं हो सका और तब तक द्वितीय विश्वयुद्ध आ धमका. और इस दौरान जो कुछ हुआ वो यहुदियों के लिए काली स्याह रातों से कम नहीं थीं. तब जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने एंटी सेमिटिज्म का सबसे क्रूर रूप दिखाया था और योजनाबद्ध तरीके से करीब 60 लाख यहूदियों की हत्या करवा दी थीं. जर्मनी और आस पास के देशों में कैंप लगाकर यहूदियों को मारा गया.

जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ 8 मई 1945 को द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद ब्रिटेन ने फ़ैसला किया कि अब फ़लस्तीनी इलाक़े पर संयुक्त राष्ट्र निर्णय करे कि क्या करना है. अब तक यहूदी जोर-शोर से इस इलाके को उनका राष्ट्र बनाने की मांग करने लगे थे. 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने यहूदियों की वर्षों पुरानी मांग को मान लिया. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि फलीस्तीन के दो हिस्से किए जाएं. एक हिस्सा यहूदियों को दिया जाए. दूसरा हिस्सा मुस्लिमों को दे दिया जाए. येरूशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर रखा जाए क्योंकि यहां यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों धर्मों के धर्मस्थल हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बावजूद इस्लामिक देश इसके लिए तैयार नहीं हुए. इस असंतोष के पिछे भी जियो-रिलीजियस कारण है. इसराइल जो कि एक यहुदी राष्ट्र के रुप में अस्तित्व में आया, जिसकी स्थिति पूर्वी भूमध्य सागर के आख़िरी छोर पर है और इसका दक्षिणी छोर लाल सागर, उत्तरी छोर लेबनान, पश्चिम छोर मिस्र, पूर्वी छोर जॉर्डन व उत्तर-पूर्वी छोर सीरिया से लगता है. ये सभी-सभी के इस्लाम धर्म को मानने वाले देश हैं. 

इन देशों ने इस बंटवारे को फलीस्तीनी मुस्लिमों के साथ अन्याय बताया. इन देशों ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि मुस्लिमों ने यहूदियों पर कभी अत्याचार नहीं किए. यहूदियों पर हुए अत्याचारों के लिए यूरोपीय देश और ईसाई जिम्मेदार हैं. फिर फलीस्तीन को बांटकर अलग इजरायल देश क्यों बनाया जाये? अगर यहूदियों के लिए अलग देश बनाना ही है तो यूरोप में बनना चाहिए.

बहरहाल, फलीस्तीन को बांटकर 14 मई 1948 को पहला यहूदी देश इसराइल अस्तित्व में आया. इसी बंटवारे के साथ शुरू हुआ इसराइल फलीस्तीन विवाद जो आज तक जारी है. तब पड़ोसी अरब देशों ने इसराइल के अस्तित्व को स्वीकर नहीं किया और दूसरे ही दिन पांच देशों इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया की की संयुक्त सेनाओं ने नए बने देश पर हमला कर दिया था. लेकिन इस युद्ध में अरब देश हार गए और उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा. युद्ध के अंत में इसराइल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के प्रस्तावित जमीन से भी अधिक भूमि पर अपना कब्जा जमा लिया. यहां तक आधा यरूशलम शहर इसराइल के नियंत्रण में आ गया.

इसके बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष और बढ़ने लगा, जिसकी परिणति साल 1967 में हुये एक और युद्ध के रुप में हुआ. इसे प्रसिद्ध ‘सिक्स डे वॉर’ (Six-Day War) के नाम से भी जाना जाता है. 5 जून से 11 जून 1967 तक चले इस युद्ध ने मध्य-पूर्व का नक्शा बदल दिया. 5 जून 1967 को इसराइली विमानों ने सुबह- सुबह मिस्र पर हमला करके मिस्र के वायुक्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया. क्योंकि वहां के नेता ने यहूदी देश को मिटा देने की धमकी दी थी. 

इसराइल ने उसके बाद जॉर्डन और सीरिया पर जीत हासिल करने के साथ-साथ सिनाई प्रायद्वीप, ग़ज़ा, पूर्वी यरूशलम, पश्चिमी तट और गोलान पहाड़ी को अपने नियंत्रण में ले लिया. इस जीत ने वैश्विक स्तर पर इजरायल के कद को बढ़ाने का काम किया.  आज वो ना केवल पूरी तरह आत्मनिर्भर है बल्कि विश्व में एक सुपरपॉवर की हैसियत रखता है.


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