लोक आस्था का महापर्व छठ जिसमें ढलते यानी अस्ताचलगामी सूर्य एवं उगते अर्थात् उदयीमान सूर्य को अर्घ दिया जाता है. आम से लेकर खास लोग तक इस महान पर्व को पूरे उत्साह से मना रहे हैं. इस पर्व की दिव्यता, शक्ति एवं महास्था की झलक मिलती है छठ व्रती से है. ऐसी ही एक दादी जो 100 साल की है, उनके उत्साह के आगे उम्र बाधा नहीं बन पाया. दादी मोतिहारी जिले स्थित अजगरवा गांव की निवासी है. उनके घरवालों ने बताया कि दादी कहती है कि वो अपने साथ ही छठी मैया को ले जाएंगी.

दादी के अजगरवा गांव में स्थित तालाब में छठ मनाया गया. उनके घर पर छठ पूजा को लेकर जबरदस्त उत्साह है. बीते कई दशकों से वे छठ व्रत का अनुष्ठान करती आ रही हैं. महापर्व को लेकर इनके घर का माहौल काफी भक्तिमय है. छठी मैया पर उनका अटूट निष्ठा है. वे कहती है कि इस पूजा से उन्हें काफी खुशी मिलती है. वे इस त्योहार को घर-परिवार की सुख-समृद्धि के लिए करती हैं. सूर्य उपासना का महापर्व छठ व्रत के प्रति दादी के मन में आस्था कुट-कुट कर भरा है.

आस्था ती डोर इतनी पक्की है कि जिस परिवार में छठ पूजा होती है, उसका प्रत्येक सदस्य किसी भी कीमत पर घर पहुंचने की जुगत में रहता. आपको बता दें कि खासतौर पर इस त्योहार को मनाने वाले बिहार, झारखंड और पूर्वी उतर प्रदेश के लोग जहां भी गए, छठ पर्व को छोड़ा नहीं, उसे वो अपने साथ संजोए रखा और वहीं छठ मनाना शुरू कर दिया. चाहे वो अपने ही देश के अन्य राज्य हो या फिर विदेश का कोई स्थान.



इसी घाट पर रिफ्लेक्शन मीडिया की टीम ने पेशे से शिक्षक पिंटु गिरि से छठ पर्व के पौराणिक उल्लेख एवं सांस्कृति महत्व के बारे में भी बातचीत किया. पिंटु गिरि जी कहते हैं कि छठ पूजा का प्रमाण रामायण एवं महाभारत के समय में भी मिलता है. पांडव ने छठ पूजा किया था, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा. इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया. उन्होंने आगे बताया कि रामायण में राम व सीता जी ने भी छठ पूजा किया था. यहां तक वेदों में भी इस पर्व के साक्ष्य मिलते है.

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