Raghuvansh Prasad Singh

समाजवाद के सशक्त और अमिट हस्ताक्षर, जनसंघर्षों का अनथक योद्धा स्मृति शेष बाबू रधुवंश प्रसाद सिंह के जन्म जंयती पर हृदय की अतल गहराईओं से भावपूर्ण श्रद्धाजंलि. रधुवंश बाबू जयप्रकाश स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स से निकले हुए वो सियासी सूरमा थे, जिन्होंने ताउम्र समाज के निचले तबके के उन्नयन के लिए हमेशा एक बुलंद आवाज बनकर मजबूती के साथ उनके हक़ और हक़ूक़ की लडा़ई लड़ते रहे. 

ऐसी बुलंद आवाज़ पिछले वर्ष हमेशा-हमेशा के लिए मौन हो गई. लेकिन आपको मानने वालों के लिए आप की जीवंत स्मृतियों हमेशा वैचारिकी संबल देती रहेगी. मैजूदा समय में जब बड़े-बड़े राजनेता अपने आप को एक सियासी खाचें में फीट और पार्टी लाइन में बाधें रखना चाहते हैं. वहीं आपके जैसा जनप्रिय नेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाया. क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष, जब तक जिंदा रहे सबके आखों के नूर बने रहे रघुवंश बाबू!!!

आप जहां कहीं भी जिस किसी भी भूमिका में रहे हो, वहां आपने अपनी एक अलग पहचान बनाई. यूपीए-1 सरकार में बतौर केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रहते मनरेगा जैसी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आपके दिमाग की उपज थी. इस योजना के तहत न सिर्फ ग्रामीण लोगों के रोजगार के अवसर सृजित हुए बल्कि यूपीए-2 सरकार बनने की बुनियाद भी रखी. लेकिन अफसोस कि बात यह हैं कि उसी मनरेगा को देश के प्रधानसेवक की ओर से संसद में विफलताओं के स्मारक की संज्ञा दी गई. और ना जाने क्या-क्या उलूल-जुलूल बातें की गईं. 

लेकिन वहीं मनरेगा इस वैश्विक महामारी में मजदूर, बंधुआ कामगर, श्रर्मिकों के लिए वरदान जैसा रहा. एक नई उम्मीद और आशा की किरण लेकर आया. जब शहर से मजदूरों ने गांव कि तरफ पलायन शुरु किया तो उसके सामने रोजगार एक बड़ी समस्या थी. तब इसी योजना ने मजदूरों और गरीबों के लिए आर्थिक अवलंबन दिया. रधुवंश बाबू के जन्म जंयती के दिन मुझे भी राजनीति से प्रेरित होकर बात करना कदापि अच्छा नहीं लगता. लेकिन देश के सामने इस संकट काल में कुछ मौजूँ सवाल हैं. जिनका जवाब तख़्त पर बैठे हुक्मरानों को देना ही पड़ेगा. 

आपकी सादगी तो ऐसी थी कि बतौर केन्द्रीय मंत्री रहते सुबह के नास्ते के बाद अपने मंत्रालय कृषि भवन पैदल टहलते हुए पहुंच जाते थे. और देर रात तक मंत्रालयी कार्यों का निपटारा करना विभागीय अधिकारियों से तमाम बैठकें और समीक्षा करना. उसके बाद पत्रकारों से तमाम बातों को साझा करना उस समय आपके दिनचर्या का अटूट हिस्सा था. जिसके वजह से आप की गिनती उस समय के तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार में नीतियों को बनाने और उसका सफलता पूर्वक क्रियान्वयन करने के रुप में रही.


आज के सियासी परिदृश्य में जब राजनेताओं को तमाम तरह के सुख-सुविधा लुभाती हैं. वहीं आपके जैसे नेता न जाने कितने बड़े-बड़े ओहदेदार पदों पर रहने के बावजूद अपना वेशभूषा, अपना देशी खाटीपन, अपना गवई अंदाज को कभी नहीं बदला. जिसके हम लोग हमेशा से कायल और दिवाने रहे हैं.

आप आजीवन उसी गांव के खपड़ैल और खांट में अपना पूरा जीवन गुजारे जहां की मीट्टी ने आपके जैसा देश को समाजवाद का टिमटिमाता हुआ सितारा दिया. जिसपे आने वाली पीढियां नाज करेगीं. आपके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि जब यूपीए-2 की सरकार बनने की रुपरेखा तैयार हो रही थी तो सोनिया गांधी आपको ग्रामीण विकास मंत्री का प्रभार देना चाहती थी. 

लेकिन राजद सुप्रीमो लालू यादव के हठधर्मिता के आगे यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की एक नहीं चली.इसके बावजूद भी सोनिया गांधी ने मंत्रियों के शपथ लेने वाली सूची जो राष्ट्रपति भवन में भेजी थी. उनमें ग्रामीण विकास मंत्रालय के शपथ लेने का स्थान खाली रखा था. और अंतिम समय तक आरजेडी को सरकार में शामिल होने के लिए गुजारिश करती रही. लेकिन लालू नहीं माने और इस प्रकार रधुवंश बाबू फिर से मंत्री बनते-बनते रह गए.

स्पष्टवादिता आपके शख्सियत में चार चांद लगाने का काम करते थे, जिसका आज कल के नेताओं में अभाव हैं. एक बार किसी पत्रकार ने उनसे आपसी बाचतीत में सवाल पूछा कि आप लालू यादव के शासनकाल में शासन चलाने के तौर तरीकों और सामाजिक समीकरण को कितना नम्बर देना चाहेंगे तो स्पष्टवादी रधुवंश बाबू ने बेबाक तरीके से जबाब दिया कि पाँलिसी गवर्नेंस के मुद्दे पर 10 में 0 और समाजीक समीकरण को साधने के मुद्दे पर 10 में 10. 

इतनी स्पष्टवादिता और कुव्वत सिर्फ और सिर्फ राजद में रधुवंश बाबू के अंदर ही थी. और केवल रधुवंश बाबू के लिए ही थी. आपके व्यक्तित्व के बारे में यादों का जखीरा हैं जिसको लिखने के लिए शायद कलम की स्याही कम पड़ जाएं!!!!

आजकल जाति और धर्म के नाम पर अपनी सीयासी दुकान लगाने वालों के लिए रधुवंश बाबू का जीवन अपने आप में एक नज़ीर पेश करता हैं. उन्होंने कभी भी जाति की नहीं जमात की बात की, सरोकार की बात की, सहकार की बात की. आप हमेशा कहा करते थे कि "राजनीति में रानी के पेट से नहीं बैलेट के बक्से से राजा पैदा होता हैं". 

उनके इसी विचार वाक्य में समता मूलक समाज की झलक देखने को मिलती है. सघर्षों की गर्भ से निकला हुआ आपका समाज समर्पित जीवन हम लोग को हमेशा यह सीख देता रहा हैं कि "जुल्म चाहें जितना हो!! आवाजें कभी मरा नहीं करती! देश की भावी राजनीति में रधुवंश बाबू जैसी शख्सियत अब शायद विरले ही पैदा हो!समाजवाद के साथ-साथ सामाजिक न्याय के प्रबल पैरोकार और झंडाबरदार रधुवंश बाबू को कोटिशः सादर नमन वंदन!!!

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