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भारत कोविड वैक्सीन खरीदने की दौड़ में पीछे छूट गया. ऐसा टॉप वायरोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग का कहना है. जहां एक ओर दुनिया के अधिकतर देश जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका ने देशवासियों को कोविड वैक्सीन लगवाने के लिए ऑपरेशन वार्प स्पीड (Operation Warp Speed) की शुरुआत बीते साल यानी 2020 के मार्च महीने में कर दिया था. उस समय तक कोई वैक्सीन भी विकसित नहीं हुई थी. लेकिन भारत ने कभी वैक्सीन (Covid Vaccine) के क्लीनिकल ट्रायल के लिए नहीं कोई पेमेंट किया और नहीं निवेश. यहां तक सरकार की ओर से वैक्सीन के ऑर्डर पाने के लिए कोई एडवांस पेमेंट भी नहीं किया गया.

भारत ने इंटरनेशनल मार्केट से बड़े पैमाने पर कोविड वैक्सीन खरीदने की दौड़ में देरी कर दी और अब उसके पास बेहद सीमित विकल्प बचे हैं. कांग ने कहा कि बाकी दुनिया पिछले एक साल से जोखिम लेकर वैक्सीन खरीदने में जुटी हुई थी, लेकिन अब बाजार में हमारे लिए क्या सप्लाई बची है कि हम यह कहें कि अब वैक्सीन खरीदना चाहते हैं. 

डॉ. कांग का बयान ऐसे वक्त आया है, जब कई राज्यों ने वैक्सीन पाने के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किए हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों ने ये कदम उठाया है. ये राज्य कोरोना की तीसरी लहर से बचाने के लिए कदम उठाने में जुट गए हैं. कई राज्यों में वैक्सीन की कम आपूर्ति के कारण सेंटर बंद हो गए हैं.

पूरे स्थिति का आंकलन करें तो हम पायेंगे कि सरकार सिर्फ दो टीका निर्माता कंपनियों सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटैक पर ही डिपेंड रहा. बल्कि उसे महामारी के जानलेवा नेचर को देखते हुए सारे देशवासी को जल्द से जल्द टीके उपलब्ध करने चाहिए. हालांकि मोदी सरकार हमेशा दावा करती रही कि उसके पास प्रर्याप्त इंतजाम है और साल के अंत तक देश की बड़ी आबादी वैक्सीनेट हो जाएंगी. 

ये दावा हवा-हवाई ज्यादा था जमीनी कम. तभी तो राज्यों को वैक्सीनेशन सेंटर बंद करने पड़ रहे हैं? जबकि होना यह चाहिए था कि महामारी की दस्तक के बाद ही सरकार और कंपनियों को टीके तैयार करने की मुहिम में लगाती. भले इनमें कितना ही निवेश या खर्च क्यों न आता.

आपको बता दें कि कांग सुप्रीम कोर्ट द्वारा मेडिकल ऑक्सीजन पर गठित समिति की सदस्य भी हैं. कांग रॉयल सोसायटी की फेलो बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं. कांग ने ट्रायल मोड में ही वैक्सीन को लेकर इनवेस्टमेंट के रिस्क से जुड़े मुद्दे पर कहा कि मैं निश्चित तौर पर कहना चाहती हूं कि जोखिम को लेकर हमें ऐसा करना चाहिए. हम इससे पैमाना साबित करेंगे और बताएंगे कि हम शोध एवं इनोवेशन में भी निवेश करने को भी तैयार है. 

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