Left-right Political Spectrum

पश्चिम की दो विफल विचारधाराएं हैं एक वामपंथ और दूसरा दक्षिणपंथ। ध्रुवीकरण के इस दौर में जब पूरा विश्व इन दो विचारधाराओं में बंटता जा रहा है तो ये पहले ये समझना चाहिए क्या ये सफल विचारधाराएं हैं और क्या ये पूरा विश्व इन्हीं दो विचारधाराओं में समहित हो जाता है।

गहनता से विचार करें तो देखेंगे कि नहीं ऐसा नहीं हैं। ये दो विचारधाराएं एक समय में सफल थीं लेकिन अपने ही विनाशक तत्त्वों ने इनका पतन सुनिश्चित कर दिया। आज पश्चिम में भी इनको कोई इतना महत्त्व नहीं देता है रूढ़िवादियों के अलावा। आपको शायद रूढ़िवाद से कंफ्यूजन होगा पर ये परम सत्य है वामपंथ और दक्षिणपंथ दोनों ही अपने अपने विचारों को लेकर जबरदस्त रूढ़िवादी है तथा घोर संप्रदायवादी हैं।

पर भारत वो जगह है जहां पश्चिम की रिजेक्टेड चीज़े बड़े महंगे दामों पे बिकती हैं । इसलिए ये दो विचारधाराएं भी भारत में आजकल खूब बिक रहीं हैं। वामपंथ धर्म को जाने बिना उसका विरोध करता है और दक्षिणपंथ बिना जाने समर्थन (धर्म केवल उदाहरण के लिए लिया है अन्य भी विषय ऐसे ही समझे जावे) दोनों ही स्थितियां अच्छी नहीं कही जा सकती हैं। न तो अंधविरोधी अच्छा है न ही अंध समर्थक। क्योंकि अंततोगत्त्वा दोनों ही अंधे हैं । इसलिए जैनियों के स्यादवाद की भांति जब प्रमाता ही अंधा हो तो प्रमेय का ज्ञान क्या घंटा होगा।

इन दोनों से अलग जो विचारधारा है वो है पूर्वपंथ जो सही मायने में भारत के ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है । हम जब किसी चीज का समर्थन करना चाहते हैं तो इसलिए नहीं क्योंकि वो हमारी है बल्कि इसलिए क्योंकि इसे हमारे पूर्वजों ने अपने ज्ञान नेत्रों से परखा है फिर भी हम उसका पुन: परीक्षण करके ही उसे स्वीकार करना चाहते हैं । हम अपने श्रेष्ठतम ज्ञान ग्रंथ पर तर्क करते हैं और उसको दूसरों के साथ तर्क के लिए सदा तैयार रहते हैं ।

हम अपने धर्मग्रंथ को अपशब्द कहने वाले का वध नहीं करते बल्कि उसके आक्षेपों का समुचित उत्तर देते हैं। और अधिक क्या कहें। हमारी राजनीति वो है जिसमें प्रजा के सुख में ही राजा का सुख निहित है। हमारी विजय का साधन केवल ज्ञान है और जीतने का क्षेत्र है, शत्रु का दिल। हम पूर्वपंथी हैं कृपया हमें वाम या दक्षिण में बांटकर हमारा अपमान न करें।

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