Maharana Pratap-The Lion of Mewar

भारत की भूमि तेज, ओज, जप-तप, धर्म-कर्म की वो मिट्टी है जिसमें कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लिया है. उन वीरों ने मातृभूमि की मान-सम्मान की खातिर खुद का सर कटा लिया, लेकिन देश का सर झुकने नहीं दिया. महाराणा प्रताप(Maharana Pratap) उन्हीं चुनिंदा वीर शासकों में से एक थे जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हरेक देशवासी का सर गर्व से ऊंचा उठ जाता हैं. देश के इतिहास में महान योद्धा, मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप का नाम अमिट है.

महाराणा प्रताप वो अमर राष्ट्रनायक थे जिन्होंने स्वाधीनता के लिए जीवन भर मुगलों से मुकाबला किया. उन्हें जंगल-जंगल भटक कर घास की रोटी खाना मंजूर था, लेकिन किसी भी परिस्थिति व प्रलोभन में अकबर की अधीनता को स्वीकार करना कतई मंजूर नहीं था.

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ईस्वी ज्येष्ठ शुक्त तृतीया तिथि को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था. वे महाराजा राणा सांगा के पोते और उदयसिंह के बेटे थे. प्रताप की माता का नाम राणी जीवत कंवर था. उन्हें बचपन में लोग प्यार से ‘कीका’ बुलाते थे. आप यूं समझ लीजिए कि महाराणा प्रताप का निक नेम कीका था.

मेवाड़ मुकुट-मणि महाराणा प्रताप शस्त्र व शास्त्र दोनों में पारंगत एवं छापामार युद्ध कला में निपुण व उसके जनक थे. वे कभी निहत्थे पर वार नहीं करते थे. निडरता, अनुशासन-प्रियता और निष्ठा उनकी खास पहचान थीं. उनकी लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था तथा वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे.

16वीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे. जब वे हल्दीघाटी का युद्ध लड़ रहे थे तो ये सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं थी. अकबर की आंखों में लंबे समय से किरकिरी बने मेवाड़ की तरफ प्रताप एक नैतिक जंग भी लड़ रहे थे. उनके पास उस समय का सर्वश्रेष्ठ घोड़ा 'चेतक' था, जिसने अंतिम समय में जब महाराणा प्रताप के पीछे मुगल सेना पड़ी थी तब अपनी पीठ पर लांघकर 26 फीट ऊंची छलांग लगाकर नाला पार कराया और वीरगति को प्राप्त हुआ. जबकि इस नाले को मुगल घुड़सवार पार नहीं कर सकें.

आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है. हालांकि हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना और जयपुर के राजा मानसिंह की जीत हुई. लेकिन ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे. मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी.

आपको बता दें कि हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था. जहां एक ओर प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे. वहीं अकबर के पास 85000 सैनिक. इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे. कहते हैं कि अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि राजपूत योद्धा यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता.

हल्दी घाटी की लड़ाई को मुगलों की स्पष्ट जीत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह जीत अकबर के लिए कुछ खास साबित नहीं हुई, क्योंकि महाराणा प्रताप उसके हाथ नहीं आए. इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप पूरी जिंदगी ताकतवर मुगल साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे. अकबर इस युद्ध के परिणाम से भी नाराज था. इस युद्ध के जनरलों मान सिंह, आसफ़ ख़ाँ और काज़ी ख़ाँ को अपने दरबार में पेश होने की इजाज़त नहीं दी.

इस युद्ध से संबंधित एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि मुगल फ़ौज का नेतृत्व हिंदू जनरल मान सिंह कर रहे थे, तो महाराणा प्रताप की ओर से मुस्लिम सिपहसालार हाकिम ख़ाँ सूर लड़ रहे थे. इसलिए इस युद्ध को हिंदू-मुस्लिम नजरिये से देखना भी ग़लत होगा. इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना के ख़िलाफ़ अपनी रणनीति बदल दी. वे छापामार युद्ध करने लगे. वे मुग़लों पर घात लगा कर हमला करते और फिर जंगलों में ग़ायब हो जाते.

सन 1596 में शिकार खेलते हुए महाराणा प्रताप को चोट लगी जिससे वो कभी उबर नहीं पाए. 19 जनवरी, 1598 को मात्र 57 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया. कहते हैं महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आंखों में भी प्रताप की अटल देशभक्ति को देखकर आंसू छलक आए, सिर झुक गए और अपने दांतो तले अपनी ज़ुबान को लेकर बोले, "तुम जीत गए प्रताप."

मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, "इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है. धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे." आज भी महाराणा प्रताप की शौर्य के किस्से पढ़ी और सुनाई जाती हैं. रिफ्लेक्शन लाइव की ओर से भारत माता के महान सपूत महाराणा प्रताप को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन. देशप्रेम, स्वाभिमान और पराक्रम से भरी उनकी गाथा देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बनी रहेगी.

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