बिहार में 15 साल शासन करने के बाद इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के लिए बेहद चुनौतिपूर्ण रहा. नीतीश की चमक फीकी पड़ गई. भाजपा के बेहतर प्रदर्शन की बूते एनडीए लाज बचाने में सफल रही. कांटे की टक्कर में जीत दर्ज करने वाली एनडीए को 125 सीटें मिली हैं. भाजपा को 74 सीटों पर जीत मिली हैं, जबकि जेडयू को महज 43 सीटों पर जीत हासिल हुई हैं. आपको बता दें कि पिछले चुनाव में जेडयू को 71 सीटें मिली थीं. लेकिन अब सीटों की संख्या घटकर सिर्फ 43 रह गयी हैं.

चुनावी विश्लेषक इस बात को मानते है कि अबकी बार के चुनाव में बीजेपी ने जदयू को काफी कंट्रोल तरीके से नुकसान पहुंचाया. भाजपा ने जदयू के खिलाफ न सिर्फ चिराग पासवान की पार्टी लोजपा को आगे बढ़ाया बल्कि उसके कोर वोटरों ने भी जदयू के उम्मीदवारों को वोट नहीं दिये. इसी वजह से बीजेपी की अपनी 21 सीटें तो बढ़ी, मगर जदयू की 28 सीटें घट गयीं.

नीतीश की पार्टी जेडयू के कमजोर प्रदर्शन करने के बावजूद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से ये तय किया गया है कि बिहार में एनडीए के मुखिया नीतीश ही रहेंगे और वही सीएम बनेंगे. परंतु सबसे बड़ा सवाल अब ये उठ रहे हैं कि बीजेपी से 31 सीटें कम रह जाने के बावजूद क्या नीतीश अब भी वैसे खुल कर राज कर पायेंगे, जैसे वे अब तक करते आये हैं. कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि बिहार में ताज तो नीतीश कुमार के सिर पर रहेगा और राज बीजेपी करेगी.

अबकी बार के चुनाव के नतीजों ने ये तय कर दिया है कि एनडीए में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का अपर हैंड खत्म हो गया है. उनकी पार्टी की लचर प्रदर्शन के कारण और भाजपा के बेहतर प्रदर्शन की वजह से, एनडीए के भीतर का पावर सेंटर भी बदलेगा. आज के तारीख़ में भले भाजपा नीतीश को सीएम बनाने के लिए तैयार है, परंतु जैसे ही कुछ वक्त बीतेगा वो नीतीश पर दबाव बनाना शुरू कर देंगे.

भाजपा अपने एजेंडे लागू करने के लिए नीतीश पर दबाव बनायेगी. यह भाजपा के लिए भी सहुलियित भरा रहेगा कि उसके एजेंडे को किसी गैर भाजपाई लागू करे, जिससे उसे विरोध न झेलना पड़े. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि करप्शन, कम्यूनलिज्म और क्राइम से समझौता नहीं करने वाले नीतीश आने वाले दिन में सत्ता की भागदौर कितनी सहजता से संभाल पाते हैं.


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