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मुंबई की सड़कों और चौराहों पर कबूतरों को दाना डालना एक आम दृश्य है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है नहीं बल्कि वर्षों से चली आ रही परंपरा का हिस्सा रहा है। लेकिन अब यही परंपरा एक बड़े विवाद का कारण अब बन गई है। कबूतरखानों से फैलने वाली गंदगी और उससे होने वाली बीमारियों ने स्वास्थ्य संकट का नया रूप ले लिया है, जिसके चलते बॉम्बे हाई कोर्ट ने 51 कबूतरखानों को तत्कालबंद करने का आदेश दिया है। इस फैसले ने एक ओर जहाँ प्रशासन को मजबूर कर दिया है वहीं दूसरी ओर धार्मिक संगठनों और पक्षी प्रेमियों में एक दुखद खबर मानी जा रही है। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या धार्मिक आस्था के नाम पर स्वास्थ्य को खतरे में डाला जा सकता है, या फिर दोनों के बीच कोई रास्ता निकाला जा सकता है?
इस कार्रवाई का जैन समुदाय और पक्षी प्रेमियों ने विरोध किया है। जैन समाज का कहना है कि यह धार्मिक भावना से जुड़ा मामला है और कबूतरों को दाना डालना उनका नैतिक और उनका धार्मिक कर्तव्य है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर 10 अगस्त तक कबूतरखाने नहीं खोले गए, तो वो अनशन करेंगे। इस विवाद के बीच महाराष्ट्र सरकार और बीएमसी समाधान खोजने में जुटी है। सरकार पर लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है। जिसके बाद एक बैठक में यह सुझाव दिया है कि शहर में विशेष फीडिंग ज़ोन बनाए जाएँ, जहाँ कबूतरों को सुरक्षित रूप से दाना खिलाया जा सके, जैसे कि आरे कॉलोनी, BKC और राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र। इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि धार्मिक आस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। जहां एक ओर लोगों की धार्मिक भावनाएँ हैं, वहीं दूसरी ओर शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा को भी प्राथमिकता देना ज़रूरी है।
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देश में इन दिनों कई नई तरह की बीमारियां नया रूप ले रही है और नए परेशानियों का सामना कर रही है। इस उत्पन्न होने वाली सभी जगहों पर सरकार ने यह रोक की है। यह फैसला अचानक नहीं लिया गया, बल्कि कबूतरों की बढ़ती आबादी और उनसे होने वाले स्वास्थ्य खतरों के बारे में कई वर्षों से शिकायतें मिल रही थीं। हाई कोर्ट के निर्देश के बाद ही सरकार और BMC ने इस दिशा में सख्त कदम उठाए। हालाँकि, इस फैसले का कुछ धार्मिक समुदायों और पशु प्रेमियों ने विरोध किया है। इस विरोध के बाद, सरकार ने आंशिक रूप से सीमित क्षेत्रों में दाना डालने की अनुमति देने पर विचार किया है।
बढ़ती बीमारी के कारण सरकार का ये फैसला कई हद्द तक सही माना जा रहा है तो कई हद तक बढ़ते विवाद को जन्म दे रहा है। लेकिन कबूतर खाने का यह निर्णय देश का भविष्य बदल सकता है।