गंगा पूर्णिमा के दिन पताही प्रखंड क्षेत्र के देवापुर गांव में भक्ति भाव से महावीर हनुमान जी का प्रतीक झंडा खेल की परंपरा को सादगी के साथ मनाया गया. सदियों से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार पहले गांव के हर टोले में झंडा को घुमाया गया फिर शाम के समय एक तय स्थान पर इसे रखा गया. आपको बता दें कि जिस स्थान पर झंडे को रखा जाता है वो गांव का सार्वजनिक स्थान होता है जहां पर गांव के सभी लोग इकट्ठे होते है. चूंकि इस दिन गंगा पूर्णिमा भी होती है और ये गांव बागमती नदी के किनारे स्थित है. आपको बता दें कि ये नदी इस गांव और सुदूर आस-पास के इलाके में गंगा नदी जैसी पहचान रखती है.

गंगा पूर्णिमा के अवसर पर दूर-दूर से लोग स्नान करने आते है. इस अवसर पर यहां मेला भी लगता है. इस दौरान पारंपरिक खेल का भी प्रदर्शन किया जाता है. इस खेल में आपको लाठी भाजने के अद्वितीय कालाबाजी का आनंद भी देखने को मिलता है. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर देवापुर के दुर्गा स्थान पर लगने वाले मेले में हर साल लोग अपनी इस अनूठी संस्कृति को मनाने के लिएर गाजे बाजे के साथ लाठियां भांजते हुए झंडा खेल में शामिल होते हैं. परंपरागत जुलूस मेले का मुख्य आकर्षण होता है. 

जब हमने इस बाबात गांव वालों की राय ली तो एक ग्रामीण पुरुषोत्तम झा कहते है कि यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है. वहीं कंचन कुमार झा नाम के अन्य ग्रामीण ने बताया कि परंपरा के मुताबिक पहले महावीरी झंडे का पूजा किया जाता हैं. उसके बाद इस झंडे को गांव में घुमाकर गांव में स्थित दुर्गा मंदिर में झंडा खड़ा किया जाता है. इसमें समाहित है एक ऐतिहासिक-सांस्कृतिक परंपरा, जो देवापुर में पनपी और इस मिट्टी की पहचान बनी. यह महावीरी झंडा प्रतीक है सनातन धर्म का, जिसमें भारत की बहुरंगी संस्कृति की झलकियां देखने को मिल जाएगी.

हांलाकि इस बार कोरोना वायरस का प्रकोप है फिर भी लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं देखने को मिला. गांव के श्यामल चाचा और मृगेन्द्र गुरुजी कहते हैं कि हमारे गांव में कोरोना का एक भी मामला सुनने को नहीं मिला. ये गांव की भूमि है जहां हम प्रकृति के महत्व को समझते है. उनकी पूजा करते है और पर्यावरण को जीवन का आधार मानते हुए जीवन जीते है. यहां शहरों की तरह प्रदुषण नहीं है और नहीं भागमभाग भरी ज़िंदगी. लोग सादगी से अपना जीवन जीते है. हम अपनी संस्कृति और परंपरा से बहुत लगाव रखते है. परिस्थितियां कैसी भी हो हम उसे निभाना नहीं भूलते. सब ईश्वर की कृपा है. हमसब तो कठपूतरी है होगा वहीं जो भगवान की मर्जी होगी. बिना उनके मर्जी के एक तिनका भी नहीं हिल सकता.

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