न्यूजीलैंड में नवनिर्वाचित युवा सांसदों में से एक डॉक्टर गौरव शर्मा ने वहां की संसद में संस्कृत में शपथ लेकर देश का मान बढ़ाया है. उनका संस्कृत में लिया गया शपथ इंटरनेट पर वायरल हो गया. आपको बता दें कि गौरव भारतीय मूल के है. उनका संबंध हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से है. उन्होंने हाल ही में न्यूजीलैंड के हैमिल्टन वेस्ट से लेबर पार्टी के सांसद प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की है. वे 1996 में न्यूजीलैंड में बस गए थे. गौरव ने ऑकलैंड से एमबीबीएस करने के साथ-साथ वाशिंगटन से एमबीए की डिग्री भी हासिल की है.
वह इससे पहले 2017 में भी चुनाव लड़े थे, लेकिन हेमिल्टन से उन्हें हार मिली थी. इस साल उन्होंने नेशनल पार्टी के टिम मसिन्डो को पराजित किया. वे वहां छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं. गौरव की शुरुआती पढ़ाई लखाई हिमाचल के हमीरपुर, धर्मशाला और शिमला में हुई है. गौरव के पिता प्रदेश बिजली विभाग में इंजीनियर थे. उन्होंने वीआरएस लिया था. इसके बाद वे परिवार के साथ न्यूजीलैंड चले गए.
गौरव हैमिल्टन के नॉटन में जनरल प्रैक्टिशनर के तौर पर काम करते हैं. उन्हें न्यूजीलैंड, स्पेन, अमेरिका, नेपाल, वियतनाम, मंगोलिया, स्विट्जरलैंड और भारत में लोक स्वास्थ्य एवं नीति निर्धारण के क्षेत्र में काम करने का अनुभव है. गौरव ने संस्कृत के साथ स्थानीय भाषा मौरी में भी शपथ ली. न्यूजीलैंड और समोआ में भारत के उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी ने इस संबंध में ट्वीट करते हुए लिखा कि शर्मा ने भारत और न्यूजीलैंड की सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त करते हुए पहले न्यूजीलैंड की भाषा माओरी में शपथ ली और उसके बाद उन्होंने भारत की भाषा संस्कृत में शपथ ली.
संस्कृत ही वो भाषा है जो पूरे भारत को एकसूत्र में जोड़ती है. संस्कृत न केवल संस्कृति की धूरी है अपितु विश्व के प्राचीन भाषाओं में से एक है जो सभी भारतीय भाषाओं की जननी है. इसलिए तो गौरव खुद पहाड़ी एवं पंजाबी भाषी होते हुए भी संस्कृत में शपथ लेने का निश्चय किया. बकायदा जब ट्विटर पर एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि उन्होंने हिंदी में शपथ क्यों नहीं ली?
गौरव ने इस सवाल का बड़ा तार्किक उत्तर देते हुए कहा कि सभी को खुश नहीं किया जा सकता, इसलिए उन्होंने संस्कृत में शपथ लेना उचित समझा जिससे सभी भारतीय भाषाओं को सम्मान मिल सके. उन्होंने ट्वीटर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ईमानदारी से कहूं तो मैंने इसपर विचार किया था लेकिन मेरी पहली भाषा पहाड़ी या पंजाबी में शपथ लेने से संबंधित सवाल उत्पन्न हुआ. सभी को खुश रखना कठिन है. संस्कृत से सभी भाषाओं का आदर होता है, इसलिए मैंने इसमें शपथ लेना उचित समझा.