भारतीय रिजर्व बैंक के इंटरनल वर्किंग ग्रुप ने कॉर्पोरेट घरानों को भारत में बैंक खोलने की इजाजत देने का प्रोपोजल दिया है. वो बेहद जोखिम भरा कदम है. हाल के वर्षों में जिस तरह से आरबीआई का कंट्रोल एंड रेगुलेशन के मामले में कमजोर परफॉर्मेंस रहा है उसे देखते हुए ये भरोसा करना मुश्किल है कि केंद्रीय बैंक औधोगिक समूहों के बैंकों की ओर से दिए जाने वाले कर्जों, खासकर सहयोगी कंपनियों को दिए जाने वाले लोन पर निगरानी करने में सक्षम हो जाएंगी! एक बात मैं साफतौर पर कह दूं कि फेल हुए बैंकों के वित्तीय बोझ को अक्सर सरकारी बैंकों के द्वारा किए गए सौदों पर डाल दिया जाता है. और इसके लिए कैपिटल के रूप में टैक्शपेयर्स के पैसे का इस्तेमाल किया जाता है.

पिछले दो वर्षों में आइएल ऐंड एफएस, डीएचएफएल, यस बैंक, और पंजाब तथा महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक अपनी कमजोर वित्तीय स्थिति के कारण भारी संकट में पड़े हुए हैं. इस लिस्ट में एक और नाम लक्ष्मी विलास बैंक का जुड़ गया है. आपको बता दें कि इस बैंक पर हाल ही में प्रतिबंध लगाया गया. फिर बाद में डीबीएस बैंक में उसका विलय कर दिया गया जो 27 नवंबर 2020 से लागू भी हो चुका है. लक्ष्‍मी विलास बैंक से पहले रिजर्व बैंक ने यस बैंक (YES Bank) और पीएमसी बैंक (PMC Bank) पर भी कई तरह की रोक लगाई थीं. लेकिन, यह पहली बार है कि केंद्रीय बैंक ने किसी भारतीय बैंक (Indian Bank) को संकट से उबारने के लिए विदेशी बैंक में विलय का फैसला लिया हो.

विलय के बाद डीबीएस इंडिया को लक्ष्‍मी विलास बैंक की 563 शाखाओं, 974 एटीएम और रिटेल बिजनेस में 1.6 अरब डॉलर की फ्रेंचाइजी मिलेगी. वहीं, 94 साल पुराने लक्ष्मी विलास बैंक की इक्विटी पूरी तरह खत्म हो जाएगी. बैंक का पूरा डिपॉजिट डीबीएस इंडिया के पास चला जाएगा. ऐसे में बैंक के शेयर होल्डर्स को पैसा नहीं मिलेगा. बता दें कि आरबीआई ने लक्ष्मी विलास बैंक पर इसी महीने 1 महीने का मोरेटोरियम लागू किया था. उसने बैंक के ग्राहकों के लिए पैसे निकालने की सीमा भी तय कर दी. बैंक के ग्राहक अपने खाते से 25,000 रुपये से ज्यादा रकम नहीं निकाल सकेंगे.

आरबीआई ने बयान में बताया कि बैंक के हालात पिछले 3 साल से खराब चल रहे थे. इस दौरान बैंक को लगातार घाटा हुआ है. बैंक को 30 सितंबर को समाप्त तिमाही में 396.99 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ था. वहीं इसकी ग्रॉस एनपीए अनुपात 24.45 प्रतिशत था. बैंक काफी समय से पूंजी संकट से जूझ रहा था और इसके लिए अच्छे निवेशकों की तलाश की जा रही थी. आरबीआई ने डीबीएस बैंक इंडिया के साथ लक्ष्मी विलास बैंक की विलय की प्लानिंग का मन पहले से बना चुकी थी. इसका लक्ष्य प्रतिबंध अवधि समाप्त होने से पहले इसे विलय करना का था. आपको बता दें कि इसी तरह की स्थिति पिछले साल सितंबर में पीएमसी बैंक और इस साल मार्च में यस बैंक में सामने आई थी.

रिजर्व बैंक की इसी कमजोरियों की वजह से ये आशांका जाहिर की जा रही है कि कॉर्पोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में एंट्री मिलने से आर्थिक सत्ता का केन्द्रीकरण होगा. सबसे बड़ा जोखिम तो इस बात में है कि इससे बैड लोन का खतरा बढ़ेगा जिससे एनपीए की स्थिति और भयावह हो सकती है. आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि बैंकों में पैसे जमा करने वालों का पैसा बड़े कॉर्पोरेट घरानों के संगठनों के खाते में पहुंचाने की छूट मिल जाएगी. इससे बुरी तरह कर्ज में डूबे और ऊंची राजनीतिक पहुंच वाले औधोगिक समूह बैंक लाइसेन्स हासिल करने के लिए सारी तिकड़म अपनाएंगे. वे इस प्रयास में कामयाब भी हो जाएंगे क्योंकि भ्रष्टाचार की स्थिति भी तो किसी से छुपी कहां है? 

फिर बाद में ऐसे बैंकों का फेल होना एक आम बात हो जाएगा. लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान में रहेंगी सरकारी बैंक. इससे उनके खजाने पर भारी बोझ पड़ेगी क्योंकि फेल हुए बैंकों के वित्तीय बोझ को अक्सर सरकारी बैंकों द्वारा किए गए सौदों पर डाल दिया जाता है. और इसके लिए कैपिटल के रूप में टैक्शपेयर्स के पैसे का इस्तेमाल किया जाता है. अब मुद्दे की बात ये है कि करदाताओं का पैसा जो देश की उन्नति में कन्स्ट्रक्टिव कामों में लगता वो बैड लोन के कारण औधोगिक घरानों के बैंकों की बिगड़ी स्थिति सुधारने में लगा दिया जाएगा. इससे देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर में जो काम होते और उससे रोजगार के अवसर बनते वो बनने से पहले ही बिगड़ जाएगा.

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