भगवान विष्णु के भक्तों को पूरे साल जिस एकादशी व्रत का इंतजार होता है, वह होती है देव उठनी एकादशी. इसी अवसर पर तुलसी विवाह का भी विधान है. पर, ऐसा क्यों और किस कारण से भगवान विष्णु को तुलसी से विवाह करना पड़ा. तो हम आपको बता दें कि इसके पीछे पौराणिक किस्सा है. यह किस्सा कुछ इस प्रकार है-

शंखचूड़ नाम के दैत्य का आतंक दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था. जब त्रिलोक में त्राहिमाम, त्राहिमाम मचना शुरू हो गया तो सभी देव भगवान शिव के पास गए क्योंकि केवल शिव ही शंखचूड़ का संहार कर सकते थे. बहुत दिनों के भीषण संग्राम के बाद भी जब शंखचूड़ परास्त नहीं हुआ. तब सभी देवतागण मिलकर उस कारण का पता लगाने का प्रयत्न किया. देवताओं को ये तथ्य ज्ञात हुआ कि इस दैत्य की पत्नी वृंदा एक पतिव्रता व सती महिला है और बिना उसके सतीत्व को भंग किए उसे परास्त कर पाना असंभव है.

वृंदा विष्णु की अनन्य भक्त भी थी और उसी के पुण्य प्रताप से शंखचूड़ का वध करना उतना आसान नहीं था. ये काम तभी हो सकता था जब उसका सतीत्व भंग किया जाये. तब श्री हरि विष्णु ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और तब जाकर शिव शंखचूड़ का वध कर पाये. सच्चाई जानकर वृंदा क्रोधित हो उठी और भगवान विष्णु को पाषाण बनने का श्राप दिया. इससे समस्त देव विलाप करने लगे और माता लक्ष्मी के साथ मिलकर वृंदा की मनुहार करने में जुट गये. तब जाकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त किया. और भगवान विष्णु वृंदा को तुलसी बनने का वरदान देते है और कहते है कि बिना तुलसी दल के कभी उनकी पूजा पूर्ण नहीं होगी.

ऐसी मान्यता है कि तभी से तुलसी-शालिग्राम के विवाह की परंपरा प्रचलित हुई. माता तुलसी वृंदा का ही रूप हैं और शालिग्राम विष्णु का वही पाषाण रूप. जैसे भगवान शिव के विग्रह के रूप में शिवलिंग की पूजा की जाती है. वैसे ही भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है. आपको बता दें कि शालिग्राम एक गोल काले रंग का पत्थर है जो नेपाल के गण्डकी नदी के तल में पाया जाता है. इसमें एक छिद्र होता है और पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं.


क्या है शालिग्राम पूजा का महत्व?

श्रीमद भागवत के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करता है, उसे 10,000 गायों के दान का फल निश्चित रूप से प्राप्त होता है. वैसे भी नित्य शालिग्राम का पूजन भाग्य और जीवन बदल देता है. शालिग्राम का विधि पूर्वक पूजन करने से किसी भी प्रकार की व्याधि और ग्रह बाधा परेशान नहीं करती हैं. शालिग्राम जिस भी घर में तुलसीदल,शंख और शिवलिंग के साथ विराजते हैं, वहां पर सम्पन्नता रहती है.

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