किसी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री को विधान सभा का चुनाव जरूर लड़ना चाहिए और जीतने के बाद ही इस पद को प्राप्त करना चाहिए. आपको बता दें कि लोकतंत्र में चुनाव सबसे अहम पहलू होती है. आप पूछेंगे कि आखिर चुनाव है क्या, इसे क्यों लड़ना चाहिए? तो आपको बता दें कि यह एक नेता के काम का जनता के द्वारा दिया गया रिफलेक्शन है. अगर नीतीश अच्छा काम कर रहे हैं तो उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए और फिर जीतकर सीएम बनना चाहिए. नीतीश रिकॉर्ड सात बार मुख्यमंत्री बने हैं. लेकिन वे 16 सालों से खुद क्यों नहीं लड़ते विधानसभा चुनाव? इसको लेकर उनपर सवाल भी उठते है. सुशासन बाबू कहलाने वाले नीतीश को आखिर चुनाव लड़ने में डर क्यों लगता है? 

बतौर राजनीतिक पत्रकार मुझे इसमें उनकी चतुरता नज़र आती है. नेता अपने लिए हमेशा एक सेफ जोन की फिराक में रहते हैं. अगर चुनाव लड़ेंगे तो इसके लिए एक्स्ट्रा वक्त देना पड़ेगा. इससे अन्य सीटों पर फोकस करने के लिए कम समय मिलेगा. जिससे उनका नुकसान हो सकता है. शायद इसलिए नीतीश जैसे नेता चुनाव नहीं लड़ना चाहते. खैर ये सेफ जोन की चाहत रखने वाले नेता की सोच हो सकती है, लेकिन मैं इसे ठीक नहीं मानता.

1985 में हरनौत विधानसभा सीट जीतने से पहले नीतीश दो बार हार का कड़वा घूंट पी चुके थे. 1985 की जीत के बाद नीतीश राजनीती में तेजी से आगे बढ़े. 1989 में नीतीश कुमार को जनता दल का सचिव चुना गया. फिर 1989 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बाढ़ सीट से किस्मत अजमाया. इसमें उन्हें सफलता मिली. इस जीत के बाद नीतीश का इंट्रेस्ट केंद्र की राजनीति में रहा. नीतीश को 1991, 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी जीत मिली. नीतीश अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री और फिर 1999 में कुछ समय के लिए रेल मंत्री भी रहे. फिर 1999 में ट्रेन हादसा हुआ जिसमें 300 लोग मारे गए. आपको बता दें कि ये हादसा पश्चिम बंगाल के घैसाल में हुआ था. हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेकर उन्होंने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

2000 में नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन सिर्फ 7 दिनों के लिए. फिर उसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. नीतीश ने आखिरी चुनाव 2004 में लड़ा था. 2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने दो जगह नालंदा और बाढ़ से चुनाव लड़ा था. वह लगातार बाढ़ से जीतते रहे थे लेकिन 2004 के चुनाव में उन्हें बाढ़ से अपनी पोजीशन कमजोर पड़ती नजर आ रही थी. इसलिए उन्होंने अपने गृह जिला नालंदा से लड़ेने का भी फैसला किया. नीतीश की आशंका सच साबित हुई और बाढ़ से नीतीश को राजद के विजय कृष्ण से बड़ी हार का सामना करना पड़ा. बहरहाल वे नालंदा सीट से जीत गए. लेकिन बाढ़ की हार ने उन्हें तगड़ा झटका दिया.

उसके बाद नीतीश ने अपना फोकस फिर से राज्य की राजनीति की ओर कर लिया. तब बिहार में राजद सत्ता में थी और प्रदेश में क्राइम, भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी के मौर्चे पर सरकार विपक्ष के निशाने पर थी. लालू- राबड़ी की लोकप्रियता तेजी से घट रही थी. ऐसे में बिहार की जनता एक अच्छे नेता को प्रदेश की कमान सौंपने की बाट जोह रहा था. इसका सबसे ज्यादा फायदा नीतीश कुमार ने उठाया. बिहार में राबड़ी राज के खिलाफ अभियान छेड़ दिया. उनकी मेहनत रंग लाई और 2005 के विधान सभा चुनाव में जेडीयू-भाजपा गठबंधन की जीत हुई. फिर वे 2005 में बिहार का सीएम बनते है और सांसदी से इस्तीफा देकर 2006 में विधान परिषद का सदस्य बनते हैं. तब से अबतक विधान परिषद के ही सदस्य हैं.

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