प्रियंका गांधी ने कृषि बिल का विरेाध कर रहे किसानों पर बेरहमी से वाटर कैनन का इस्तेमाल करने वाली केन्द्र सरकार पर निशाना साधा है. प्रियंका ने बीजेपी को किसान विरोधी बताया है. प्रियंका ने इस मुद्दे को लेकर ट्वीट कर कहा कि- ‘‘किसानों से समर्थन मूल्य छीनने वाले कानून के विरोध में किसान की आवाज सुनने की बजाय भाजपा सरकार उन पर भारी ठंड में पानी की बौछार मार रही है. किसानों से सबकुछ छीना जा रहा है और पूंजीपतियों को थाल में सजा कर बैंक, कर्जमाफी, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन बांटे जा रहे हैं.’’

वहीं कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने केन्द्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर ‘दिल्ली दरबार’ के लिए किसान कब से खतरा हो गए? उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि भीषण ठंड के बीच अपनी जायज मांगों को लेकर गांधीवादी तरीके से दिल्ली आ रहे किसानों को जबरन रोकना और पानी की तेज बौछार मारना मोदी-खट्टर सरकार की तानाशाही का जीवंत प्रमाण है.

उन्होंने ट्वीट कर कहा कि आज देश का मजदूर हड़ताल पर है, आज देश के बैंक कर्मी हड़ताल पर हैं, आज देश का अन्नदाता किसान हड़ताल पर है, आज देश का बेरोजगार युवा हड़ताल पर है, पर..क्या मोदी सरकार को देशवासियों की परवाह है? क्या ये राष्ट्रसेवा है या राष्ट्र हितों का विरोध? देश फैसला करे!

वहीं इस मुद्दे को लेकर उतर प्रदेस कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा है कि अन्नदाताओं पर इतनी आत्याचार कि जो पूरे देश को अन्न खिलाते है उनकी आवाज दबाई जा रही है. लाठी गोली चलाने वाली बीजेपी सरकार मेहनतकश समुदाय का दर्द क्या जाने? कोरोना काल मे जहां अडानी अम्बानी की आय 150 गुना बढ़ी तो वहीं योगी सरकार में गन्ने के मूल्यों में कोई भी बढ़ोतरी नही हुई है जबकि उनकी उत्पादन लागत बिजली, उर्वरक, कीटनाशक, डीजल आदि की वजह से बढ़ी है.

किसानों को गन्ने का पिछला भुगतान अभी तक नहीं पाया है. इससे साफ होता है कि बीजेपी के एजेंडे में किसान मजदूर कभी था ही नहीं. किसानों का कर्ज माफ करने और बिजली मूल्य माफ करने का वादा किया था. नये कृषि कानून जो बनाये गये हैं वह सब किसानेां के हितों पर कुठाराघात है. इसी वजह से वे आन्दोलन करने के लिए मजबूर हुए हैं. ऐसा क्यों लग रहा है कि सरकार किसानों के साथ नहीं, कृषि व्यापार में उतरने वाले बड़े व्यवसायियों के साथ खड़ी है?

लल्लू ने कहा कि नए कृषि बिल में एमएसपी यानी मीनिमम सपोर्ट प्राइज खत्म किए जाने से बिचौलिये और कालाबाजारी करने वालों के पौ बारह हैं. आवश्यक खाद्य सामानों जैसे आलू, प्याज, तेल, तिलहन, दलहन का मंहगाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. सरकार बिजनेस मैन की सेवा में मस्त है. जबकि आम लोगों में हाहाकार मचा है. अन्नदाता किसानों के संदेह और उनकी मांग नाजायज़ नहीं है. यह वक़्त उनकी आवाज सुनने का है. उनके साथ खड़े होने का है. अगर किसी को लगता है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन राजनीति से प्रेरित है तो भी ऐसी राजनीति का स्वागत होना चाहिए.

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