बिहार में बाहुबली बनने का रास्ता राज्य के प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविधालय से होकर गुजराता है. क्या है बिहार के बाहुबलियों की अनकही दास्तान? कैसे शुरू हुआ अपराध का ये सफर? इसे जानने के लिए आपको देश की राजनीति, चुनाव एवं अपराधियों के गठजोड़ को समझना होगा. इसकी दास्तान इतनी लंबी है कि आप एक बार में सारा किस्सा नहीं पढ़ सकते. इसलिए इसकी इनसाइड स्टोरी मैं 10 किस्तों में बताऊंगा. आज पहली किस्त...

बिहार के बड़े शहरों में से एक मुजफ्फरपुर, जो उतर बिहार की राजधानी का दर्जा रखती है. ये शहर न केवल शैक्षणिक गढ़ है बल्कि आर्थिक केन्द्र भी. यहां दो बड़े कॉलेज लंगट सिंह कॉलेज और रामदयालू सिंह कॉलेज के अलावा यहां बिहार यूनिवर्सिटी भी है. इसीके वजह से आसपास के हजारों स्टूडेंट्स यहां पढ़ाई करने आते थे. इन स्टूडेंट्स के बीच क्षेत्रवाद और जातिवाद बुरी तरह हावी था. इसके कारण यहां पढ़ने वाले छात्र कई गुटों में बंटे हुए थे. हजारों एकड़ में फैले लंगट सिंह कॉलेज कैंपस में शुरुआती समय में तीन हॉस्टल थे. जिसमें ड्यूक हॉस्टल का अपना वर्चस्व था. हॉस्टल में 60 के दशक से वर्चस्व की जंग शुरू हुई. जंग शुरू करने वालों में शामिल थे बेगूसराय और मुंगेर क्षेत्र से आए स्टूडेंट्स. इनके बीच आपसी संघर्ष का कारण बनी मुजफ्फरपुर जिले के लोकल स्टूडेंट्स से वर्चस्व की लड़ाई में आगे निकलने की होड़ होना.

तब क्षेत्रवाद के साथ-साथ जातिवाद ने भी पैर पसारना शुरू कर दिया. भुमिहार और राजपुतों के बीच अदावत की लड़ाई शुरू हुई. वर्चस्व की इस जंग में कैंपस में पहली मौत हुई 1978 में. हालांकि इससे पहले साठ और सत्तर के दशक में भी कैंपस में मारपीट होती थी, पर किसी स्टूडेंट या दबंग की हत्या नहीं हुई थी. बेगुसराय के स्टूडेंट्स ने कॉलेज कैंपस में पहली बार बम और गोली भी चलाई. वो साल था 1971-72 का जब कॉलेज कैंपस में बेगुसराय निवासी कम्युनिस्ट नेता सुखदेव सिंह के बेटे वीरेंद्र सिंह ने अपनी दबंगई कायम करने के लिए पहली बार कैंपस में बम और गोली चलाई थी. ड्यूक हॉस्टल पर बम और गोलियों से हमला किया गया था. इस वारदात के बाद बम व गोली चलाने की घटना आम हो गई. ये सिलसिला लगातार चलता रहा. अब एलएस कॉलेज कैंपस में हर दूसरे महीने बम के धमाके सुने जाने लगे.

धीरे-धीरे वर्चस्व की लड़ाई तेज होती गई. और इसी वर्चस्व की जंग में साल 1978 में कॉलेज कैंपस में पहली मर्डर हुई मोछू नरेश की. यह वर्चस्व की जंग में पहली मर्डर थी. दबंग छात्र रहे मोछू नरेश की हत्या ने कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस को अपराध का अड्डा बना दिया. मोछू नरेश की हत्या में नाम आया बेगूसराय के कामरेड सुखदेव सिंह के बेटे वीरेंद्र सिंह का. आपको बता दें कि बेगूसराय के स्टूडेंट्स ने ही कैंपस में खुनी खेल की शुरुआत की थी. पर सबसे बड़ा तथ्य यह है कि सबसे अधिक हत्या भी बेगुसराय के छात्रों की ही हुई. मोछू नरेश के बाद कैंपस में दबंगई कायम की मिनी नरेश ने. मोछू नरेश की गद्दी संभालते ही मिनी नरेश कैंपस में अपनी दहशत कायम करने में जुट गया. इसमें उसे सफलता भी मिली. उसे राजनीतिक और बाहरी संरक्षण भी मिला. जिसके कारण विरेंद्र सिंह को शांत होना पड़ा. पर अंदरूनी अदावत जारी रही. दोनों का ठिकाना कॉलेज और यूनिवर्सिटी हॉस्टल ही रहा.

मोछू नरेश की गद्दी संभाल रहे मिनी नरेश ने कॉलेज कैंपस से ही अपना वर्चस्व कायम किया. उसे अशोक सम्राट जैसे अंडरवर्ल्ड डॉन का सपोर्ट हासिल था. यह वह दौर था जब बिहार यूनिवर्सिटी का कई सौ एकड़ में अपना कैंपस बन रहा था. एलएस कॉलेज कैंपस से सटे इस नए साम्राज्य का विस्तार हो रहा था. इस साम्राज्य पर भी अपने अधिकार का जंग शुरू हो गया था. मिनी नरेश ने कई हॉस्टल और डिपार्टमेंट का ठेका भी ले लिया था. जिससे उसे मोटी कमाई भी हो रही थी. अशोक सम्राट का अपने ऊपर हाथ होने के कारण मिनी नरेश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अगले अंक मे पढ़िये कि क्या मिनी नरेश का वर्चस्व कायम रहा या उसकी भी हत्या हो गई या फिर उसके वर्चस्व को किसने चुनौती दी?

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