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भारतीय रिजर्व बैंक(RBI) सरकार को अपनी सरप्लस रकम से 99,122 करोड़ रुपये ट्रांसफर करेगा. इससे पहले भी आरबीआई ने साल 2019 में मोदी सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये रकम ट्रांसफर किया था. तब आरबीआई के इस फैसले की आर्थिक विशेषज्ञ सहित विपक्ष ने काफी आलोचना की थी. चिंता इस बात पर भी जताया जा रहा है कि क्या सरकार रिज़र्व बैंक से बहुत ज़्यादा पैसा निकाल रही है. अभी तक सरकार के पैसे नहीं होते थे तो कभी एलआईसी से जुगाड़ करके, पब्लिक सेक्टर कंपनियों को बेचकर या विनिवेश(Disinvestment) करके काम चलता था. अब आजकल आरबीआई से पैसे लिये जा रहे है.

क्या होता है सरप्लस फंड?

रिजर्व बैंक साल के दौरान जो आमदनी करता है, पूरे खर्च आदि निकालने के बाद जो रकम बचती है वह उसका सरप्लस फंड होता है. रिजर्व बैंक सरकार को इस मुनाफे का एक हिस्सा लाभांश के तैर पर देता है और एक हिस्सा जोखिम प्रबंधन के तहत अपने पास रखता है. 

वहीं एक्सपर्ट्स का मानना हैं कि हर चीज़ में एक बैलेंस होना चाहिए. सरकार इतनी ज़्यादा आक्रामक तरीक़े से रिजर्व बैंक से पैसे निकाल रही है वो शायद ठीक नहीं है. उनका तर्क है कि जब अर्थव्यवस्था बाहरी झंझावात में फंसती है, तब रिजर्व बैंक इस सरप्लस मनी से डॉलर, या अन्य विदेशी मुद्राएं खरीदता है. आपको अपनी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थिर रखना है तो आपके पास जितना ज्यादा सरप्लस है, आपकी इकॉनमी उतनी ज्यादा स्थिर है. और उस स्थिति में ये और महत्वपूर्ण हो जाता है जब रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता है.

क्या है रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता?

रूपये को अन्य प्रमुख मुद्राओं और अन्य प्रमुख मुद्राओं को रूपये में मुक्त रूप में परिवर्तित करने देने की अनुमति देना. मोटे तौर पर इसका मतलब होता है देसी-विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश लाने और यहां से पैसे बाहर ले जाने पर कोई पाबंदी न होना. यानी विदेशी निवेशक अपनी मर्जी से निवेश कर सकेंगे और साथ ही यहां से अपनी कमाई बाहर भी ले जा सकेंगे.

इस स्थिति में आरबीआई का स्ट्रांग रहना बहुत जरूरी है क्योंकि परिवर्तनीयता का बढ़ा दायरा रुपये में ऊंचे उतार-चढ़ाव लाता है. इससे निपटने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार जरूरी होता है. और आरबीआई अपने सरप्लस मनी से ही तो डॉलर, या अन्य विदेशी मुद्राएं खरीदेगा. रुपये के पूर्ण परिवर्तनीय होने के बाद आरबीआई के लिए यह रोजमर्रा का काम है. इस पूरे स्थिति को ऐसे समझे कि मानव शरीर रिजर्व ब्लड के बल पर ही जिंदा रहता है. और इंसानी शरीर में रिजर्व ब्लड स्टोर करने का काम स्प्लीन नाम का आर्गेन करता है.

स्प्लीन पेट के ऊपर, रिब्स के पास स्थित होता है और यह ब्लड से जुड़े काम करता है. आप यूं समझ ले कि स्प्लीन एक स्पंज की तरह रह जाता है जो ब्लड सोखने व रिलीज करने का काम करता है. याने स्वस्थ शरीर में जो पांच लीटर खून रहता है, इसका 15 से 20 फीसदी स्प्लीन में स्टोर रहता है. ये सरप्लस ब्लड है. जब आप दौड़ते, भागते, बीमार या बुखार में होते है, पहाड़ या ऊंचाई पर होते है, खून की जरूरत बढ़ जाती है. तब स्प्लीन सिकुड़ती है. सरप्लस ब्लड, धमनियों में चला जाता है. नॉर्मल अवस्था मे स्प्लीन इस ब्लड को वापस लेती है. सरप्लस उसके पास रहता है, अगली इवेंचुलिटी के लिए. और ये इवेंचुअलिटी दिन में दस बार आ सकती है.

ठीक उसी तरह आरबीई हमारे देश की इकोनॉमी का स्प्लीन है. अब जरा सोचिए कि स्प्लीन का सारा ब्लड आप निकाल कर उपभोग(Consume) कर लेंगे तो इमरजेंसी स्थिति में जिंदा कैसे रहेंगे? बहरहाल जिस किस्म के इकोनॉमिक स्लोडाउन से गुजर रहे हैं, मुझे तो नहीं लगता कि ये जल्दी ख़त्म होने वाला है. अगले साल अगर ऐसी ही कुछ हालत रही और टैक्स कलेक्शन भी धीमा ही रहे. जैसा कि अभी है तो फिर पैसा कहां से आएगा. उस हिसाब से ये आरबीआई से इतनी बड़ी अमाउंट लेना बुरा है. 

ये ठीक वैसे ही है जैसे कोई अक्षम व्यक्ति कमा पाने में असमर्थ है और वो अपने खजाने के सरप्लस मनी से जीवन जीना चाहता है. लेकिन जब ये खत्म हो जाएगा फिर वो लाचार होकर औंधे मूंह गिर पड़ेंगा. क्योकि उसने तो स्प्लीन को निचोड़ के पी लिया. 

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