Save Lakshadweep movement In Lakshadweep

लक्षद्वीप भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित एक द्वीपसमूह है। अभी हाल ही में मुहिम चलाई गई 'save Lakshadweep' के नाम से। केरला उच्च न्यायालय के अधिकार में लक्षद्वीप आता है। उसी अधिकार क्षेत्र के चलते कुछ दिन पहले केरल विधानसभा ने लक्षद्वीप के एडमिनिस्ट्रेटर प्रफुल पटेल को वापस बुलाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने प्रफुल पटेल द्वारा लक्षद्वीप में जारी हुए नए अधिनियमो को वहां की जनता के हित के विरुद्ध बताया और केंद्र से दखल देने की मांग कर डाली। प्रफुल पटेल इससे पहले दमन और दीव के एडमिनिस्ट्रेटर रहे थे।

इस मुद्दे को पर्यावरण संरक्षण से ज्यादा राजनीतिक दलो के बीच हो रही रस्सा कशी ने उलझा दिया है। अपना वर्चस्व गवा चुकी कांग्रेस और मुस्लिम समुदाय का रूढ़िवादी संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का राजनीतिक दल SDPI (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) ख़ास मशक्कत कर रहे है मामले को तूल देने में। इसके पीछे की वजह है लक्षद्वीप कि आबदी जिसका 95 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिम है। प्रफुल पटेल द्वारा लक्षद्वीप के अंदर प्रस्तावित तीन अधीनियम विवाद में है। लक्षद्वीप विकास विनियमन प्राधिकरण, बीफ बैन, Lakshadweep Prevention of Anti-Social Activities Regulation जिसे गुंडा एक्ट कहा जा रहा है।

लक्षद्वीप द्वीपसमूह में 36 द्वीप हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल केवल 32 वर्ग किलोमीटर है। हालाँकि, द्वीपों का भौगोलिक विस्तार भारत को लगभग 20,000 किमी और लगभग 400,000 किमी का एक विशेष आर्थिक क्षेत्र देता है।

इस साल कि शुरुआत में ही भारतीय कोस्ट गार्ड द्वारा 5100 करोड़ के ड्रग्स लक्षद्वीप द्वीपसमूह की सीमा पर जब्त करे जा चुके है। साथ ही यह द्वीपसमूह पाकिस्तान की आईएसआई और चीन द्वारा नकली नोटों को भारत के अंदर ले जाने का अड्डा बना हुआ है। लक्षद्वीप को अपराध मुक्त ,राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के हवाले से प्रचार तंत्र ज़ोर पकड़ रहा है पर, वास्तविकता यह है की 65000 की आबादी वाले इस क्षेत्र में मात्र 349 पुलिस बल है 9 थानों में। अपराध मुक्त नहीं अपराध दर्ज ही नही होते है। पुलिस बल के अभाव से द्वीपसमूह में कई सारे अपराधिक गिरोह अपनी जड़े जमा चुके है। लुटेरा मंडली हथियारों से लैस रहती है और द्वीप निवासियों से वक्त दर वक्त वसूली करती है उनकी सुरक्षा के लिए। असामाजिक तत्वों से निपटने के लिए गुंडा एक्ट का अस्तित्व में आना एक विवशता है सरकार द्वारा।

आदिवासीयो का किस तर्ज पर शोषण हुआ है पूंजीपतियो और कोंग्रेस काल में उसका उदहारण है बंगाराम रिजॉर्ट। बंगाराम रिसॉर्ट सहित द्वीपों में पर्यटन को बढ़ावा देने और विकास, SPORTS (सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ नेचर टूरिज्म एंड स्पोर्ट्स) नामक एक संगठन द्वारा नियंत्रित किया गया था, जिसे 1982 में स्थापित किया गया था। अंत में, SPORTS संस्था एक संरक्षक की भूमिका में आई जब वो अनुसूचित जनजाति कि ज़मीन लीज पर देने लगी। 1988 में, पांच साल की अवधि के लिए बंगाराम द्वीप रिज़ॉर्ट के संचालन के लिए लीज़ डीड के माध्यम से कैसीनो ग्रुप ऑफ़ होटल्स, कोचीन और स्पोर्ट्स के बीच एक व्यवस्था की गई । इसका उद्देश्य था पर्यटन , ख़ासकर विदेशों से ।

बंगाराम रिजॉर्ट के कसीनो होटल का मुनाफा करोड़ों में पहुंचा । पर कुल आय का केवल एक अंश ही भू-स्वामियों तक पहुँचा था, जो भारत के सबसे गरीब और हाशिए पर रहने वाले अनुसूचित जनजाति के लोग थे । द्वीपवासियों द्वारा आरोप लगाए गए थे जिन्होंने दावा किया था कि स्पोर्ट्स के भ्रष्ट अधिकारियों ने ज़मीन के लीज में बड़ी हेरा फेरी करी थी। और आलम यह है की अभी तक तमाम न्यायिक उथल पुथल के बावजूद द्वीपवासियों को उनका हक नहीं मिला है। ज़ाहिर है कि इस तरह का आर्थिक उत्पीड़न ना हो उसके लिए विकास विनियम प्राधिकरण को होना जरूरी है।

भारत सरकार सिर्फ अनुसूचित जातियों को प्रबल बनाने में ही नही पर सारे द्वीप का विकास करने में तत्पर है। माल्डिव्स भी एक इस्लामिक राष्ट्र है पर वहा पर आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए बाहरी मुल्कों से आने वाले पर्यटकों की सुविधा का ध्यान रखा जाता है। इसी तर्ज पर सरकार ने भी कुछ कदम उठाए हैं । शराब पर से प्रतिबंध हटाना, दूरसंचार यंत्र को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए कोच्चि और लक्षद्वीप द्वीप समूह के बीच समुद्री ऑप्टिकल फाइबर केबल कनेक्टिविटी स्थापित करना उन में से एक है।

यह स्वाभाविक है की लक्षद्वीप बचाओ आंदोलन एक नकली प्रोपोगंडा है जिससे सरकार द्वारा उठाए हुए माकूल कदमों को भ्रमित और गलत साबित करा जा सके।

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