File Photo: PM Narendra Modi

इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल 'द लैंसेट' (The Lancet ) ने 8 मई शनिवार को अपने प्रकाशित एक संपादकीय में कहा है कि पीएम मोदी ने संकट के दौरान आलोचना और खुली चर्चा का गला घोंटने का प्रयास किया है जो कि माफी योग्य नहीं है. जर्नल ने कहा है कि भारत को कोविड-19 (COVID-19) को नियंत्रित करने में अपनी शुरुआती सफलताओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने आत्म-उकसावे वाली राष्ट्रीय तबाही की. 

अब संकट पर काबू पाने की दशा और दिशा सरकार के उस प्रयास पर निर्भर करेगी कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार करके एक जिम्मेदार नेतृत्व और पारदर्शिता कैसे अपनाती है और एक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया को किस तरह लागू करती है.

लैंसेट के संपादकीय में कहा गया है कि भारत ने कोविड-19 को नियंत्रित करने में अपनी शुरुआती सफलताओं पर पानी फेर दिया. अप्रैल तक कई महीने गुजरने पर भी सरकार की कोविड-19 टास्क फोर्स पूरी नहीं हुई थी. उस निर्णय के परिणाम आज हमारे सामने हैं. भारत को अब जब संकट बढ़ रहा है, अपने प्रतिक्रिया बल का पुनर्गठन करना चाहिए.

जर्नल ने सरकार की उस धारणा को हवा-हवाई करार दिया है, जिसमें यह जताया जा रहा था कि भारत ने कोविड-19 को कई महीनों तक कम मामलों के बाद हरा दिया था. जबकि दूसरी लहर के खतरों की बार-बार चेतावनी दी जाती रही और कोरोना नए स्ट्रेन भी उभरते गए. लेकिन सरकार ने इन चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया. 

जर्नल ने लिखा है कि मार्च के शुरू में कोविड-19 के मामलों की दूसरी लहर शुरू होने से पहले, भारतीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने घोषणा की थी कि भारत महामारी के 'एंडगेम' में था. जबकि व्यापक-संक्रमण के जोखिमों के बारे में चेतावनी के बावजूद, सरकार ने धार्मिक आयोजनों की अनुमति दी. देश भर के लाखों लोगों को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक रैलियों का आयोजन किया गया. इनमें कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के उपायों में कमी थी.

केंद्रीय स्तर पर भारत की टीकाकरण नीति को 'पाखण्ड' और 'अलग-थलग' बताते हुए, ने कहा कि सरकार ने राज्यों के साथ नीति में बदलाव पर चर्चा किए बिना अचानक बदलाव किया और दो प्रतिशत से कम जनसंख्या का टीकाकरण कर सकी. वहीं कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश करने के बजाय ट्विटर पर क्रिटिसिजम को हटाने पर अधिक फोकस किया है. 

जर्नल ने लिखा है कि "इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन का अनुमान है कि भारत में एक अगस्त तक कोरोना से 10 लाख लोगों की मौत हो जाएगी. यदि ऐसा होने वाला है तो मोदी सरकार इस आत्मघाती राष्ट्रीय आपदा की जिम्मेदार होगी."

वहीं लैंसेट के इस खुलासे के बाद विपक्ष सहित तमाम आलोचक कह रहे हैं कि अक्खड़पन और अक्षम सरकार ने ऐसा महासंकट पैदा किया, जिसमें नागरिक तो घुट रहे हैं, लेकिन भीड़ से प्यार करने वाले देश के पीएम मगन हैं. आपको बता दें कि भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर की परेशान कर देने वाली परिस्थितियां दुनिया भर के मीडिया और सोशल मीडिया फीड पर छाई हुई हैं और इस हालात के लिए पीएम मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है.

वैसे तो पीएम मोदी ने अपने आप को एक क़ाबिल प्रशासक के तौर पर पेश किया है, जो छोटी-छोटी बातों पर भी नजर रखते हैं. लेकिन अब जब देश में कोरोना के नए मामले रिकॉर्ड बना रहे हैं. अस्पताल में बिस्तर और ऑक्सीजन का इंतज़ार कर रहे लोगों की सांसे टूट रही हैं. परेशान परिवार इलाज कराने के लिए हर तरकीब और संसाधन झोंक रहे हैं. लोगों को अस्पताल के बेड से लेकर ऑक्सीजन सिलिंडर तक के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है. यहां तक सुप्रीम कोर्ट सरकार को फटकार लगाती है कि कोरोना की वजह से स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है. मोदी बुरी तरह नाकाम हो रहे हैं.

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