Source: aajtak.in

दिल्ली के चुनावी इतिहास में 28 दिसंबर की तारीख एक बड़े उलटफेर की गवाह बनी, जब आज से ठीक सात वर्ष पहले आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सियासत में अपनी जगह बनाई. भले ही आज अरविंद केजरीवाल को देश में बहुत लोग जानते हैं, लेकिन उस समय उनका दिल्ली का मुख्यमंत्री बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था. अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छोड़कर राजनीति में आए केजरीवाल के नेतृत्व में 2013 में चुनावी समर में उतरी आप ने दिल्ली विधानसभा में अपनी किस्मत आजमाई और 28 सीटें जीतकर सारे राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को गलत साबित कर दिया. इस चुनाव में 8 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए आप को बिना शर्त समर्थन देकर उसकी सरकार बनाने का रास्ता साफ कर दिया.

28 दिसम्बर 2013 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर केजरीवाल दिल्ली के राजनीतिक इतिहास के एक बड़े उलटफेर के गवाह बने. दिल्ली राजनीति का एक नया अध्याय शुरू हुआ. पहली बार चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे केजरीवाल ने 'आम आदमी' की आवाज बनकर काम करने का ऐलान किया. शपथ लेने के बाद अरविंद केजरीवाल ने जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि देश के लोग निराश हो चुके थे. लेकिन इस बार दिल्‍ली के विधानसभा चुनाव में हमने दिखा दिया कि ईमानदारी से भी राजनीति की जा सकती है. उन्होंने आगे कहा कि इसी रामलीला मैदान से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. आम लोगों ने मिलकर सियासत की तस्‍वीर बदलने की ठानी थी. अगर सारे लोग साथ आ जाए तो देश की तस्वीर बदल जाएगी.

आपको बता दें कि केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभआ सीट से तीन बार मुख्यमंत्री रहीं कांग्रेस की शीला दीक्षित को शिकस्त दी वो भी 25,864 वोट से और सभी को हैरत में डाल दिया. लेकिन सिर्फ 49 दिन के बाद ही उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से 14 फरवरी 2014 को इस्तिफा देकर दिल्ली का हाथ छोड़ दिया. फिर फरवरी 2015 के चुनावों में उनकी पार्टी ने 70 में से रिकॉर्ड 67 सीटें जीत कर भारी बहुमत हासिल किया और 14 फरवरी 2015 को केजरीवाल दोबारा दिल्ली के सीएम बने.

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