File Photo: Thikana Rajputana

भारतीय इतिहास में सिर्फ चित्तौड़गढ़ ही ऐसी जगह है, जहां नारी स्वाभिमान की रक्षा, संस्कृति-संस्कार, सभ्यता एवं परंपरा को मलिन होने से बचाने के लिए तीन बार जौहर हुए. चितौड़ का गौरवशाली इतिहास तीन वीरांगनाओं के जौहर का साक्षी रहा है. रानी पद्मावती के पद्चिन्हों पर चलते हुए दो अन्य रानियों सहित हजारों वीरांगनाओं ने अपनी आन-बान की रक्षा के लिए धधकती ज्वाला में कूदकर प्राणों की आहुतियां दी थीं.

इन तीनों जौहर की स्मृति में वहां एक मंदिर भी स्थापित किया गया है. मंदिर का नाम जौहर ज्योत मंदिर है. इसमें इन जौहर की अगुवाई करने वाली महारानी पदमिनी, राजमाता कर्णावती तथा रानी फूलकुंवर मेड़तणी की मूर्तियां स्थापित है. ठीक आज से 453 वर्ष पूर्व चित्तौड़ का तीसरा जौहर 23 फरवरी की अर्द्धरात्रि में 1568 ई. को हुआ था.

फूलकंवर की अगुवाई में 23 फरवरी 1568 को हुए जौहर में केवल राजपूत महिलाएं ही नहीं बल्कि जन साधारण की स्त्रियां भी थीं. इसीलिए इसे जन जौहर कहते हैं. अकबर से यह पूरी लड़ाई भी यहां जन साधारण और सैनिकों ने ही लड़ी थी. इस जौहर के दिन चैत्र कृष्णा एकादशी थी. इसलिए हर साल इसी दिन यहां जौहर मेले की परंपरा शुरू हुई. चितौड़ की मर्यादा की परंपरा कायम रखने वाली रानी फूलकंवर महाराणा प्रताप की पत्नी और मारवाड़ के शासक मालदेव राठौर की पोती थीं. ये जौहर दुर्ग में 3 अलग-अलग स्थानों पर हुआ -

1) रावत पत्ता चुण्डावत के महल में

2) साहिब खान जी के महल में

3) ईसरदास जी के महल में

(फोटो में रावत पत्ताजी का महल दिखाया गया है, जो अब तक काला है)

अबुल फजल लिखता है "हमारी फौज 2 दिन से भूखी-प्यासी होने के बावजूद सुरंगों को तैयार करने में लगी रही। इसी दिन रात को अचानक किले से धुंआ उठता नजर आया। सभी सिपहसालार अंदाजा लगाने लगे कि अंदर क्या हुआ होगा, तभी आमेर के राजा भगवानदास ने शहंशाह को बताया कि किले में जो आग जल रही है, वो जौहर की आग है और राजपूत लोग केसरिया के लिए तैयार हैं, सो हमको भी तैयार हो जाना चाहिए"

रावत पत्ता चुण्डावत की आंखों के सामने उनकी माता सज्जन कंवर, 9 पत्नियों, 5 पुत्रियों व 2 छोटे पुत्रों ने जौहर किया।

दुर्ग में जौहर करने वाली कुछ प्रमुख राजपूत वीरांगनाओं के नाम इस तरह हैं -

> रानी फूल कंवर :- इन्होंने चित्तौड़ के तीसरे जौहर का नेतृत्व किया।

> सज्जन बाई सोनगरी :- रावत पत्ता चुण्डावत की माता

> रानी मदालसा बाई कछवाही :- सहसमल जी की पुत्री

> जीवा बाई सोलंकिनी :- सामन्तसी की पुत्री व रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी

> रानी सारदा बाई राठौड़

> रानी भगवती बाई :- ईसरदास जी की पुत्री

> रानी पद्मावती बाई झाली

> रानी बगदी बाई चौहान

> रानी रतन बाई राठौड़

> रानी बलेसा बाई चौहान

> रानी बागड़ेची आशा बाई :- प्रभार डूंगरसी की पुत्री

* चित्तौड़ के तीसरे जौहर के प्रमाण स्वरुप भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने समिद्धेश्वर मन्दिर के पास सफाई करवाई तो राख और हड्डियां बड़ी मात्रा में मिलीं.

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