जैसे विधान सभा चुनाव में पूरे राज्य की सरकार चुनी जाती है. ठीक वैसे ही पंचायत चुनाव में गांव की सरकार का चुनाव होता है, इसलिए ये चुनाव भी बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. स्थानीय स्तर पर होने वाले इन चुनावों और इनमें हावी रहने वाले स्थानीय मुद्दों के बावजूद, इनके परिणाम एक बड़ा राजनीतिक संदेश दे रहे हैं. बता दें कि लोगों की निगाहें 3052 ज़िला पंचायत सदस्यों के निर्वाचन पर लगी थीं, जो बाद में अपने-अपने ज़िलों में ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते हैं.

राज्य के सभी 75 ज़िलों के परिणामों के आकलन से पता चलता है कि पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने सत्ताधारी बीजेपी (BJP) को शिकस्त दे दी है. इस चुनाव की सबसे खास बात यह रही कि जीते हुए सदस्यों में सबसे ज्यादा निर्दलीय हैं. निर्दलीय उम्मीदवारों ने सबसे ज्यादा 951 सीटें जीती हैं. सपा-आरएलडी गठबंधन को सबसे ज्यादा 828 सीटें मिली हैं. अकेले सपा को 760 सीटें मिली हैं. इस चुनाव में सपा समर्थित 747 उम्मीदवारों को जीत मिली है, जबकि बीजेपी समर्थित 750 प्रत्याशी ही जीत पाए हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने भी 381, कांग्रेस पार्टी ने 76, राष्ट्रीय लोकदल ने 68 सीटें और पहली बार क़िस्मत आज़मा रही आम आदमी पार्टी ने भी 64 सीटों पर जीत दर्ज की है.

क्षेत्रवार नतीजे देखें तो उसमें भी बीजेपी को बहुत नुकसान हुआ है. बीजेपी अपने गढ़ में भी हार गई है. बड़ी बात ये है कि अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर और मथुरा में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को पटखनी देने मे कामयाब रही. ये वो जिले हैं, जहां बीजेपी का काफी दबदबा माना जाता है और प्रधानमंत्री खुद वाराणसी से सांसद हैं लेकिन बीजेपी यहां हार गई. इन इलाकों के अलावा बीजेपी का प्रदर्शन पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश, अवध और बुंदेलखंड इलाक़ों में भी काफ़ी कमज़ोर रहा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे राष्ट्रीय लोकदल और बीएसपी से कड़ी टक्कर मिली तो बाक़ी जगहों पर वह समाजवादी पार्टी से पिछड़ी नज़र आई. जबकि तैयारियों के मामले में वो अन्य किसी भी राजनीतिक दल से ज़्यादा मज़बूती से लड़ रही थी.

पंचायत चुनाव से पहले देश भर में और विशेषरूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में किसान आंदोलन चल रहा था और इस दौरान राज्य में कोरोना संक्रमण और उसकी वजह से आम लोगों को हो रही असुविधाओं की चर्चा जोरों पर थीं. ऐसा माना जा रहा था कि ये दोनों मुद्दें चुनाव में ख़ासा असर डालेंगे. किसान आंदोलन का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिखा भी जब राष्ट्रीय लोकदल ने कई ज़िलों में बेहतरनी प्रदर्शन किया.

आपको बताते चले कि पंचायत चुनाव को अगले साल 2022 विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में भी देखा जा रहा है. और चुनाव परिणाम ये संकेत करते हैं कि विधानसभा चुनाव में टक्कर कांटे की होने वाली है. यानी अगले साल विधान सभा चुनाव में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी पार्टी अखिलेश यादव की होगी. मतलब मुकाबला योगी आदित्यनाथ Vs अखिलेश यादव हो सकता है और फिलहाल इसमें बीजेपी पिछड़ती हुई दिख रही है. ऐसा हम पंचायत चुनाव के आधार पर कह रहे हैं. 

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