Special story on Swami Vivekananda 158th birth anniversary

यूथ आइकॉन स्वामी विवेकानंद जी को उनके जयंति पर सादर नमन. आज 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जन्मतिथि है. आज ही के दिन 1863 में स्वामी जी का जन्म हुआ था. स्वामी जी के जीवन दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और आदर्शों को यदि हमने आत्मसात कर लिया तो हमारा जीवन सफलता की नई ऊंचाइयों को छुने में समर्थ होगा. स्वामी जी के जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. आपको बता दें कि भारत सरकार ने वर्ष 1985 में इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी. उस समय भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे.

आज भी भारत ही नहीं विश्व के किसी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी चले जाइए, वहां उनके विचारों का प्रभाव देखने को मिल जाएगा. स्वामी जी ने जिस तरह से युवाओं के दिलों-दिमाग को झकझोरा, सफल जीवन के मायने समझाए और सबसे ऊपर उठकर राष्ट्रसेवा व जन सेवा को जीवन के ध्यय बनाने का रास्ता दिखलाया. वो राष्ट्रप्रेम, सद्भाव, शांति एवं विकास बुनियाद है. यदि हम उस बुनियाद को अपने जीवन में उतार पाये तो निश्चित रूप से समाज, देश एवं विश्व को सार्थक दिशा दे पायेगे. जहां घृणा नहीं प्रेम होगा. विनाश के बादल नहीं विकास की बारिश होगी.

श्री रामकृष्ण परमहंस जी के अनन्य शिष्य विवेकानंद एक ऐसे महात्मा थे जिनका रोम-रोम दीन-हीनजनों की सेवा और राष्ट्रभक्ति में व्यतित हुआ. वे नर सेवा को ही नारायण सेवा मानते थे. वे इस बात पर हमेशा जोर देकर कहते थे कि गरीब, शोषितों एवं वंचितों की सेवा ही सच्ची ईश्वर की पूजा हैं.

स्वामी जी ने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं माना, बल्कि मानवता के उत्थान को ही अपना जीवन-लक्ष्य माना और आजीवन उस रास्ते पर चलते रहें. "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत" उन्होंने इस उद्घोष से संपूर्ण मानव जाति को मोटिवेट किया और सफलता का गुरुमंत्र दिया. इसका हिंदी में अर्थ होता है उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक कि लक्ष्य न प्राप्त हो जाए. वहीं अंग्रेजी में "Arise awake and do not stop until the goal is reached".

स्वामी जी ने सर्वधर्म समभाव के लिए लोगों को इस विचार से अवगत कराया कि भारतीय परंपरा न केवल सहिष्णुता बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करने में विश्वास रखती है. यदि कोई इंसान केवल अपने धर्म के अस्तित्व और दूसरों के धर्म के विनाश का सपना रखता है तो मैं मन की अनंत गहराइयों से उसे दया भाव से देखता हूँ और उसे इंगित करता हूँ कि विरोध के बावजूद प्रत्येक धर्म के झंडे पर जल्द ही संघर्ष के बदले सहयोग, विनाश के बदले सम्मिलन और मतभेद के बजाय सद्भाव व शांति का संदेश लिखा होगा.

यदि विवेकानंद के विचारों को सही मायने में हम आत्मसात कर सके तो मानवता, सर्वधर्म समभाव, असमानता, गरीबी, गैर-बराबरी, अस्पृश्यता आदि से बिना किसी बल प्रयोग के लोगों के दिलों में नफरत नहीं मोहब्बत का फूल खिला कर एक आदर्श समाज और सफल जीवन की संकल्पना को साकार कर सकते हैं.

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