आज शनिवार 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ देने के साथ ही चार लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व पूरा हो गया. सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि देश एवं दुनिया भर में मनाये जाने वाला ये त्योहार प्रकृति पूजा का महापर्व भी है. आपको बता दें कि लोक संस्कृति के बहुरंगी कैनवास को उकरेती छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है.

ये पर्व जन भागीदारी, सामाजिक एकता और सामुदायिक विकास की भावना को बढ़ावा देने का काम करता है. वहीं छठ पूजा की परंपरा और उसके सांस्कृतिक महत्व को पौराणिक व लोक कथाओं के जरिये जानें तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना साकार हो सके इसके लिए कार्तिक शुक्ल षष्ठी को निर्जला उपवास करके सूर्यदेव की पूजा की थी. ठीक उसके अगले दिन यानी सप्तमी को सूर्योदय के समय उन्होंने फिर से पूजा अर्चना करके सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था. तभी से छठ पूजा लोक प्रचलन में आया.

वहीं एक अन्य मत के मुताबिक इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. कर्ण जो सूर्य के बेटे थे लेकिन ये रहस्य उन्हें बाद में पता चला था. पर, कर्ण बचपन से ही सूर्य देव की पूजा शुरू कर दी थी. वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे. और उस समय यदि कोई याचक उनसे जो कुछ मांगता वे उसकी मांग पूरी करते थे.

ये तो हैं इसकी पौराणिक आधार पर, इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष. भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न कोई मंदिर की जरूरत पड़ती है, न मंत्र की, न पुजारी की, न जाप की न ही किसी कर्मकांड की. जरूरत पड़ती है तो सिर्फ पूर्ण समर्पण की, जहां छठ वही धाम और हर व्रत करने वाली महिला छठी मईया का रूप होती है. शुद्धता, स्वच्छता और श्रद्धा का इस पर्व में खास महत्व है. यह स्वच्छता निजी लेवल पर भी दिखती है और सार्वजनिक लेवल पर भी. इसमें घर से लेकर घाट तक की सफाई का ध्यान रखा जाता है.

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