How much temperature can human body tolerate

बढ़ते तापमान से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है. जून का आखिरी हफ्ता और जुलाई की शुरुआत खासी गर्मी के नाम है. भारत में ही कई स्थानों पर तापमान 46-47 डिग्री-सेलसियस तक पहुंच जाता है. मध्य आस्ट्रेलिया का तापमान तो कई बार 50 डिग्री से. से भी अधिक हो जाता है. 

धरती पर सब से अधिक तापमान 55 डिग्री से. भी ज्यादा अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित ‘मौत की घाटी’ में होता है. पर, सबसे बड़ी सवाल ये है कि किस हद तक मानव शरीर गर्मी की तपिश झेल सकता है. प्रचंड गर्मी की वो हद क्या है, जिसे हम बर्दाश्त कर सकते हैं? बढ़ते तापनाम का हमारे शरीर पर क्या असर पड़ता है?

एक्सपर्ट्स के मुताबिक मानव शरीर किस हद तक गर्मी बर्दाश्त कर सकता है, इसका सटीक जवाब नहीं दिया जा सकता. ये सब भूगौलिक स्थिति के साथ-साथ कई और बातों पर निर्भर करता है. मसलन कितनी देर आदमी उस तापमान में एक्सपोज़ है, मौसम में आर्द्रता कितनी है, शरीर पसीना/पानी को कैसे निकाल रहा है, शारीरिक गतिविधि का स्तर कैसा है, इंसान ने कैसे कपड़े पहने है, अनुकूलन की स्थिति क्या है आदि...ये तमाम बातें भी शरीर को बढ़ते तापमान के साथ एडजस्ट करने में मदद करती हैं.

हमारी धरती पर अलग-अलग तरह के क्लाइमेट यानी वातावरण हैं और अलग-अलग क्षमताओं वाले शरीर भी. लेकिन 42 से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान के बाद सामान्य परिस्थिति वाले हर व्यक्ति को सतर्क और सावधान रहने की ज़रूरत है. क्योंकि इंसानी शरीर की एक क्षमता है कि वह अधिकतम तापमान कितना बर्दाश्त कर सकता है. उस लिमिट को पार करने का मतलब है मौत. 

बढ़ते तापमान के चलते अगर शरीर में पानी की कमी होने लगती है और ये स्थिति अगर देर तक बनी रहे तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं जैसे हीट स्ट्रोक, हार्ट स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज तक. तो आइए पहले ये जान लेते है कि मानव शरीर और गर्मी के बीच की केमिस्ट्री क्या है? शरीर का सामान्य तापमान 98.4 डिग्री फारेनहाइट या 37 डिग्री सेल्सियस होता है. 

यानी इंसानी शरीर 37 डिग्री सेल्सियस में काम करने के लिए बना है. लेकिन उससे दो-चार डिग्री ऊपर और दो-चार डिग्री नीचे तक के तापमान को एडजस्ट करने में शरीर को दिक़्क़त नहीं आती. लेकिन जैसे ही तापमान का स्तर इससे अधिक या कम होने लगता है शरीर में दिक्कतें आनी शुरू हो जाती हैं.

लंबे समय तक अत्याधिक गर्मी झेलने पर इस तरह दिक़्क़त बढ़ जाती है. उम्रदराज़ लोग, छोटे बच्चे और पहले से दूसरी बीमारी (जैसे किडनी, हार्ट, डायबिटीज़) झेल रहे लोगों में ये दिक़्क़त कई बार जानलेवा हो सकती हैं और कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. मानव शरीर का तापमान जब 38 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा पहुंचता है, तो उस कंडीशन को हाइपरथर्मिया कहते हैं. 

इसमें फीवर के कारण शरीर के तापमान के बढ़ने को शामिल नहीं किया जाता. एक व्यक्ति को हाइपरथर्मिया हो सकती है, हाइपोथैलेमस में खराबी के कारण, एपिलेप्टिक सीजर के कारण, बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत करने से या बहुत ज्यादा गर्म वातावरण में रहने से.

हाइपोथैलेमस क्या होता है?

शरीर का तापमान कितना ज्यादा करना है और कितना कम यह तय करता है हाइपोथैलेमस. यह हमारे दिमाग़ के पीछे का हिस्सा होता है, जो शरीर के अंदर तापमान को रेग्यूलेट करने के लिए ज़िम्मेदार होता है. लेकिन कभी-कभी शारीरिक और वातावरनीय कारणों से शरीर के तापमान में उतार-चढ़ाव आने लगता है, जो कि शरीर को नुकसान पहुंचाता है. जब शरीर का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस से ऊपर या 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे जाता है तब हमारे शरीर के फंक्शन में गड़बड़ी आने लगती है.

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