दीपावली से पहले मनाये जाने वाले त्यौहार के रूप में विख्यात धनतेरस का हिंदू सनातन धर्म में धनतेरस पर्व का विशेष महत्व है. इसे धनत्रयोदशी, धन्‍वंतरि त्रियोदशी या धन्‍वंतरि जयंती भी कहा जाता है. धनतेरस का नाम सुनते ही लोग केवल इतना जानते हैं कि यह पर्व दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाता है और इस दिन नए बर्तन खरीदे जाते हैं. लेकिन क्यों मनाया जाता हैं ये पर्व? क्या है इससे जुड़े पौराणिक किस्से.

सबसे पहले आपको बता दें कि इस बार धनतेरस दो दिन मनाया जा रहा है. ज्योतिष विशेषज्ञों के मतानुसार तिथि में घटने और बढ़ने के कारण ऐसा संयोग बना है. दरअसल धनतेरस की पूजा और खरीददारी प्रदोष काल में उचित मानी जाती है. अधिकांश ज्योतिष के जानकारों की राय में धनतेरस का त्योहार 13 नवंबर को ही मनाया जाना चाहिए. लेकिन कुछ स्थानों पर रात्रिव्यापिनी त्रयोदशी के कारण धनतेरस का पर्व 12 नवंबर गुरुवार को भी मनाया गया. 

अधिकांश विद्वानों का कहना है कि त्र्योदशी 12 नवंबर को रात साढ़े नौ बजे लगेगी और 13 नवंबर को शाम 5.59 मिनट तक जारी रहेगी. उदयकाल के कारण शुक्रवार को त्र्योदशी रहने और संध्याकाल में उपस्थित रहने से धनतेरस का पर्व शुक्रवार को ही मनाना सही और विधि सम्मत है. ज्योतिषियों के अनुसार धन तेरस के दोनों ही बहुत शुभ हैं. दोनों ही दिन खरीददारी की जा सकती है. अब आपको बताते हैं धनतेरस पर्व से संबंधित धार्मिक किस्से, जो कुछ यूं है:-

जब समुद्र मंथन हो रहा था तो उसमें से धन्वंतरि प्रकट हुते है और उनके हाथों में अमृत से भरा कलश भी साथ में निकलता है. जिस दिन ये अद्भुत घटना घटी उस दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी. कहते हैं कि तभी से धनतेरस मनाया जाने लगा. चूंकि धन्वंतरि अपने साथ बर्तन लिए प्रकट हुए थे. इसलिए उनके प्राकत्य उत्सव के दिन धनतेरस पर्व और इस दिन बर्तन खरीदने का रिवाज बना.

ऐसी मान्यता है कि ये सब करने से सौभाग्य, वैभव और स्वास्थ्य लाभ होता है. भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. आपको एक और बात बता दें कि इस दिन धन्वंतरि के अलावा, देवी मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है. धन के देवता कुबेर की विधि-विधान से पूजा भी की जाती है. आचार्य श्री नरेंद्र शर्मा ने बताया कि इस वर्ष धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 32 मिनट से शुरु होकर 5 बजकर 59 मिनट तक रहेगा. इस साल पूजा के शुभ मुहूर्त की अवधि 27 मिनट की है. पंडित जी के मतानुसार इसी अवधि में दीपदान करना भी शुभ रहेगा.

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