जहां एक ओर जानलेवा कोरोना वायरस महामारी से देश में हाहाकार मचा हुआ है. वहीं दूसरी ओर अन्य ख़तरनाक बीमारियों से भी लोगों को जूझना पड़ रहा है. ऐसा ही एक मामला येलो फंगल का सामने आया है. बता दें कि ब्लैक, व्हाइट के बाद फंगल इनफेक्शन का तीसरा वर्जन येलो फंगस के रुप में सामने आया है. बताया जा रहा है कि ये ब्लैक एवं व्हाइट फंगस से भी खतरनाक है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि शरीर के अंदर से फैलना शुरू होता है.
ये ऐसा रोग है जो जंगल की आग की तरह फैलता है. ये नाक से शुरू होकर गाल और ब्रेन तक को अपने चपेट में ले लेता है. इसलिए शुरुआत में ही इसका उपचारक और जीवन रक्षक दवा लेना आवश्यक हो जाता है. शरीर में येलो फंगस के फैलने की वजह से आपके पाचन को भी बिगाड़ सकता है. अचानक मरीज़ में भूख न लगने जैसे लक्षण दिखने लगते हैं.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक फंगस सिर्फ फंगस होता है. न तो वह यलो, सफेद होता व काला होता है. मेडिकल लिटरेचर में यलो, व्हाइट और ब्लैक फंगस कुछ नहीं है. यह अलग क्लास होती है. मोटे तौर पर लोगों को समझने के लिए इस तरह का नाम दिया जाता है. वहीं इस तरह के फंगल इनफेंक्शन पर दिल्ली एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया का कहना है कि फ़ंगल इंफ़ेक्शन को रंग के नाम से नहीं बल्कि उसके मेडिकल नाम से पुकारना चाहिए वरना इससे भ्रम फैल सकता है.
फ़ंगल इंफ़ेक्शन के लिए कई शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं ब्लैक फ़ंगस, व्हाइट फ़ंगस, येलो फ़ंगस. ये समझना ज़रूरी है कि कई शब्द भ्रामक हैं जिनसे उलझन हो जाती है. फ़ंगस अलग-अलग अंगों पर अलग रंग का हो सकता है लेकिन हम एक ही फ़ंगस को अलग-अलग नाम दे देते हैं.
इस फ़ंगल इंफ़ेक्शन को म्यूकरमाइकोसिस की श्रेणी का कह सकते हैं. म्यूकरमाइकोसिस में जो म्यूकोरेल्स (फ़ंगस) होते हैं वो कई बार इस तरह का रंग ले लेते हैं. जिनकी इम्यूनिटी कम होती है उनमें हम ज़्यादातर ये तीन इंफ़ेक्शन दिखते हैं. इन तीनों फ़ंगल इंफ़ेक्शन को लेकर लोगों में डर बना हुआ है. लेकिन डरने से बेहतर है कि आप इन फ़ंगल इंफ़ेक्शन के बारे में जाने और ख़ुद को उनसे बचाएं. इनके इलाज के लिए ज़रूरी है कि समय पर इनकी पहचान हो जाए. इसके लिए इनके लक्षणों के समझना ज़रूरी है.
यलो फंगस
मेडिकल साइंस के मुताबिक ये म्युकस सेप्टिकस होता है. इसके लक्षण हैं- नाक का बंद होना, अंगों का सुन्न होना, बदन दर्द, शरीर में बहुत ज्यादा कमजोरी, हार्ट रेट का बढ़ जाना, घावों से मवाद बहना, भूख न लगना और शरीर कुपोषित सा दिखने लगना. यलो फंगस होने का मुख्य कारण गंदगी है और जिस सरीसृप जीव की इम्युनिटी कमजोर होती है उसे यलो फंगस की बीमारी जल्दी होती है.
कोरोना में अब इंसानों की इम्युनिटी कम हो रही है तो इस कारण से भी यलो फंगस इंसानों को अपना शिकार बना रहा है. यह छिपकली जैसे रेपटाइल्स में होता था और यह जिस रेपटाइल जीव में होता है, वह जीवित नहीं बचता है. इसलिए इसे बेहद खतरनाक और जानलेवा माना जाता है. पहली बार ऐसा मामला किसी इंसान में देखने को मिला है.
ब्लैक फ़ंगस
म्यूकरमायकोसिस म्यूकर या रेसजोपस फ़ंगस के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है. ये फ़ंगस साइनस, दिमाग़, फेफड़ों एवं गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक, जिसमें पाचन तंत्र के सभी अंग शामिल होते हैं को प्रभावित कर सकती है. इसके लक्षण हैं- नाक बंद हो जाना, नाक से ख़ून या काला तरल पदार्थ निकलना, सिरदर्द, आंखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना और आख़िर में अंधापन होना. नाक के आसपास काले धब्बे हो सकते हैं और सेंसशन कम हो सकता है. जब फेफड़ों में इसका इंफ़ेक्शन होता है तो सीने में दर्द और सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण होते हैं.
व्हाइट फ़ंगस
व्हाइट फंगस कैडेंडियासिस (कैंडिडा) आंख, नांक, गला को कम प्रभावित करता है. यह सीधे फेफड़ो को प्रभावित करता है. इसमें सफ़ेद पैच आ जाते हैं. जीभ पर सफ़ेद दाग दिखने लगते हैं. किडनी और फेफड़ों में ये इंफ़ेक्शन हो सकता है. ये तब और ख़तरनाक हो जाता है जब इंफ़ेक्शन ख़ून में आ जाए.
इन फंगस का इलाज क्या है?
यलो, ब्लैक या वाइट फंगस कोई नए फंगस नहीं हैं. ये पहले से मौजूद हैं. मौजूदा समय में इस तरह के फंगस का इलाज एम्फोटेरिसिन बी(Amphotericin B) इंजेक्शन है. लेकिन इसमें भी एक गंभीर किस्म की समस्या है और वो ये कि अधिकांश रोगियों को 4-6 हफ्ते के लिए दवा की जरूरत होती है. ऐसे में एम्फोटेरिसिन का दीर्घकालिक उपयोग किडनी पर भारी पड़ सकता है. इसका एक लिपोसोमल फॉर्मूलेशन है, जो किडनी को नुकसान नहीं पहुंचाता है और इसके कम दुष्प्रभाव होते हैं. लेकिन ये काफी महंगा है और इसका मिलना भी कठिन है. इसकी बेहद सप्लाई कम है.
डॉक्टर्स का कहना है कि स्वस्थ और अच्छी इम्युनिटी वाले लोगों में फ़ंगल इंफ़ेक्शन नहीं होता. फ़ंगस वातावरण में ही मौजूद होती है लेकिन फ़ंगल इंफ़ेक्शन होने के बहुत ही कम मामले सामने आते हैं. घर की और आसपास की सफाई बहुत जरूरी है. बासी खाना न खाएं.