अक्षय जिसका क्षय न हो, अक्षय तृतीया नाम से प्रसिद्धि पाता।
वैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया, आखातीज रूप में मनाया जाता।
दुर्भाग्य को सौभाग्य रूप में, परिवर्तित करने वाला यह दिन।
बिन मुहूर्त देखे शुभ मुहूर्त, माना जाने वाला यह दिन।
अक्षय तृतीया के शुभ दिन, श्री बद्रीनारायण के पट खुलते।
वृन्दावन में श्री बिहारी जी के, चरणों के दर्शन मिलते।
श्वेत पुष्पों द्वारा देव पूजन, इस दिन किया जाता।
स्वर्ण-रजत आभूषण, वस्त्र, वाहन का, क्रय शुभ माना जाता।
अक्षय तृतीया संग रोहिणी नक्षत्र, बड़ा ही शुभ माना जाता।
चन्द्रोदय के पहले रोहिणी नक्षत्र, अच्छी फसल लाता।
दान दक्षिणा देने का, विशेष महत्व माना जाता।
नदियों में स्नान करना, शरीर शुद्धता का दाता।
अक्षत, पुष्प, दीप जला, भगवान विष्णु की करें आराधना।
कृपा बनी रहेगी संतान पर, पुराणों का है यह कहना।
सतयुग के प्रादुर्भाव की तिथि, अक्षय तृतीया मानी जाती।
शुभ कर्म फलों का क्षय नहीं होता, "कृतयुगादि" तिथि कहलाती।
सतयुग, द्वापर, त्रेता युग का, प्रारंभ इसी दिन हुआ।
विष्णु चरण से माँ गंगा का, धरती पर अवतरण हुआ।
ब्रह्मापुत्र अक्षयकुमार नाम कारण, अक्षय तृतीया नाम हुआ।
भगवान के चौबीस अवतार में छठा, परशुराम का जन्म हुआ।
अन्नपूर्णा का आविर्भाव,धरा पर इस दिन हुआ।
कुबेर को अक्षय तृतीया दिन, खजाना प्राप्त हुआ।
पाण्डवों को अक्षय पात्र सूर्य ने, अक्षय तृतीया को दिया।
वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत, गणेश ने लिखना प्रारम्भ किया।
अक्षय तृतीया के दिन राव बीकाजी ने, बीकानेर शहर बसाया।
माँ करणी के आशीर्वाद से, बीकानेर लहलहाया।
बीकानेर में पतंगबाजी, अक्षय दिवस दिन मनाया जाता।
ताजे ज्वार बाजरा का खीचड़ा, घर-घर खाया जाता।

.    .    .

Discus