मुनि विश्वामित्र संग, अवधेश आए जनक के द्वार।
सीता स्वयंवर की शुभ बेला,सुहागन गाये मंगलाचार।।
मिथिलापति का प्रण भारी,शिव धनु भंग कर,वरे सुकुमारी।।
राम लखन की शोभा निरखत,जनक राज मुदित मन हरषत।।
राम नगर वासी मन भाए,सीता राम को वरमाला पहनाए।
हे!विधि करो ऐसी विधना,धनुष भंग करे राम ललना।।
उद्यान,उपवन,वाटिका माई,कमलनयनी कुसुम चुनने आई।।
रघुवर लक्ष्मण सहित पधारे,नव कुसुमन की शोभा निहारे।।
सखी सीता को दी सूचना,राम लखन है दशरथ नन्दना।।
झुरमुट आड राम छवि देखी,उर अनुराग,अथाह विशेषी।।
चित्र लिखित सी चित्तवत,ह्रदय धरे ना धीर।
हे माँ अम्बे! विनती सुनो,धनुष तोड़े रघुवीर।।
पायल की झँकार सुन,रघुवर मन हर्षाए।
वैदेही को देखकर,उर अनुराग ना समाए।।
एक श्याम एक गोर शरीरा, राम मिलन को मन अधीरा।।
नयन मूँद राम छवि निरखत,सखियन मन ही मन हरखत।
विश्वामित्र गुरू आज्ञा दीन्हा,राम प्रणाम गुरुवर को कीन्हा।।
पलक झपकते शिव धनु तोड़ा,राम सीया का बन गया जोड़ा।।
सशक्त वृक्ष जैसे बढा, राम सीता का अनुराग।
त्रिवेणी के मिलन सम,मानो अयोध्या बना प्रयाग।।

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