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वृद्धाश्रम बनाने वाला,धनवान इन्सान,
कभी नहीं जानता अपना भविष्य और परिणाम।
इतना दयालु ,कृपालु ,सहन नहीं कर पाता दूसरों के दुख दर्द।
प्यार करता जीवन में,बच्चों का बनता हमदर्द।
मुट्ठी में पैसा है तब तक संसार में पाता इज्जत।
कभी घाटा नफा हो जाए तो होता रहता लज्जित।
जो परिवार जन बड़े प्यार से मिलने आते।
आज नजरों से कन्नी काट कर निकल जाते।
एक दिन अचानक मुझे,वृद्धाश्रम जाने का अवसर मिल गया।
मान सम्मान पाकर खुश हो,वहाँ रहने वालों से मैं घुलमिल गया।
कुछ देर इधर-उधर की बातें,फिर वही जीवन की कहानियाँ।
याद कर रहे थे सब अपना बचपन, जवानी,दादी-नानी की कहानियाँ।
सार तथ्य जो मुझे समझ आया, वृद्धाश्रम को क्यों बनाया जाता।
मानव को जीने का सहारा मिलता, सन्तान को छुटकारा मिल जाता।
ईमान धर्म बेच बस माँ-बाप से छुटकारा पाना चाहते।
भविष्य की कोख में छुपा अपना भविष्य पढ़ वह नहीं पाते।
माता पिता पूरी दुनिया से,संतान खातिर लड़ जाते हैं।
खुद जमीन पर सोते, बच्चों के लिए पलँग बनवाते हैं।
फटे जूते,पुरानी कमीज में टाँका लगवाते हैं।
धिक्कार है ऐसी सन्तान पर,जो माँ-बाप का दर्द नहीं समझ पाते हैं।
अगर कमाई है कम,आधा पेट भर सो जाते।
कमी नहीं हो बच्चों को,इसी चिन्ता में जीवन गँवाते।
सोचतें है आज,कुछ जीवन में ऐसा कर जायें,
आधुनिकता को रोक,भूतकाल काल में चले जायें।
नाती -पोते पाकर,खुश होता है इँसान,
नयी फसल देख जैसे खुश होता है किसान।
फसल अच्छी हो,लहलहाते खेतों से हर्षित होता है किसान,
दादा-दादी खुश होते हैं,पाकर सन्तान की सन्तान।
वृद्धाश्रम में माना बराबरी के लोग मिल जाते।
अपने जीवन की कथा-व्यथा,एक दूजे को बता पाते।
पर याद पुरानी बातें कर,मन ही मन पछताते।
काश इँसान को भूल,भगवान पर भरोसा कर पाते।
अब तन रूपी वृक्ष की जड़ें,कमजोर हो गई।
बारी-बारी एक दूजे से,रुसवाई की वक्त हो गई।
किस किस के लिए आँसू बहे,अश्रु धारा सूख गई।
कल तू गया आज मेरी बारी, देखते-देखते आ गई।
पिछले जीवन की यादें,आँखों में नमी दे जाती है।
भूले बिसरे गीतों की तरह,कुछ गीत गुनगुनाती है।
काश !संसार की मोह माया में इतना नहीं उलझते।
पैसा कमाने की चाह में,इतना नहीं जूझते।
शायद पैसा कम होता,तो प्यार होता ज्यादा।
परिवार में रहते घुल मिलकर,बन के शहजादा।
बड़े बुजुर्ग बोझ नहीं,नींव होते परिवार की।
बड़े हैं तो संसार में ,छाया मिलती प्यार की।
जिस पुत्र को अनाथाश्रम से लाये,वृद्धाश्रम भेज रहा है।
जिस माँ ने नौ महीने कोख में पाला,खून से सींचा,दर्द सहा,वह भी वृद्धाश्रम भेज रहा है।
सन्तान के स्वास्थ्य के लिए सारी पूँजी खर्च कर दी,उसके बदले माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेज रहा है।
जिसके लिए रातों जागी,मन्नत माँगी पूजा अर्चना की,वह भी वृद्धाश्रम भेज रहा है।
नब्बे साल का एक दम्पति बड़ी शिद्दत से देख रहा था,
अपने मन में खुशी के नहीं,अतीत के ताने बुन रहा था।
देखा जिसने उन्हें वृद्धाश्रम भेजा, "जैसे को तैसा"उनकी सन्तान अपना फर्ज निभा रही है।
दादा दादी को वृद्धाश्रम रोते हुए जाता देखा, माँ-बाप को भी याद दिला रही है।
सबको परिवार प्यारा लगता,चाहे जैसा भी हो।
अपना खून अपना होता,चाहे कैसा भी हो।
प्रार्थना है ईश से,संसार से वृद्धाश्रम हट जाये।
मात-पिता के दर्द को,काश!सन्तान समझ पाये।
ईश्वर रूपी मात पिता को भूल जाता इन्सान हैं।
उम्मीद क्यों रखता है संतान से,वह नहीं भगवान है।
अपने घरों से दूर जब पक्षी खुश नहीं रह सकते।
मात-पिता के दिल के टुकड़े यह बात क्यों न समझ सकते।
पश्चिमी सभ्यता की नकल ना,जाने क्या-क्या करवाएगी?
अनाथाश्रम से वृद्धाश्रम तक,इन्सान को कितना रुलाएगी?
वृद्धाश्रम वह अवैध घर है,जहाँ मजबूर माँ- बाप को रखा जाता है।
उम्र ढलने के कगार पर,अपनो से क्यों वंचित किया जाता है ?
अवैध घरों को जैसे,बुलडोजर से तोड़ा जाता है।
क्यों नहीं ऐसा बुलडोजर,सन्तान मन पर चलाया जाता है?
तिनका-तिनका जोड़,परिवार रूपी घोंसला बनाया था।
कभ नहीं सोचा कि ये मेरा नहीं,घर पराया था।
अतीत के पन्नों में उलझा वृद्धाश्रम में इंसान हैं।
आज सोच रहा है,क्यों ? क्यों भूला भगवान है?