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आया बसन्त का मौसम सुहाना,
तन, मन संग धरा बसन्ती हो जाती है।
नई कोंपले, नए फूलों की सुगंध से, धरा चहूँ ओर महकाती है।
नव उमंग, नव तरंग, नये गीतों के सुर सजाती है।
धरा धाम पर धूम से, माँ सरस्वती आती है।
विद्या, बुद्धि, सुरों की देवी की,धूमधाम से पूजा की जाती है।
बालक, -युवक संग वृद्धों की, हृदय कली खिल जाती है।
प्राकृतिक मनोरम दृश्य देख,आँखों में चमक आ जाती है।
पीली पीली सरसों से, खेती लहलहा जाती है।
बसन्ती चोले पहन फौजियों में,उमंग भर जाती है।
ऐसी पवन वेला की वायु भी, मन को बङी मदकाती है।
समीर के झोंकों से, खिलखिलाते पौधों से, बगिया मुस्कुराती है।
खिलते हुए फूलों से, उड़ती हुई पतंगो से, नई छटा छा जाती है।
बसन्त बहार होली को, न्यौता दे बुलाती है।
राधा-कृष्ण, सखा-सखियों संग, फाग की फुहार बिखराती है।
डफ,झाँझ,सारंगी की ध्वनि, मन को बहुत लुभाती है।
परमानन्द की परम बेला,परमपिता परमेश्वर की याद दिलाती है।
प्रकृति की गोद में नवयौवना, मतवाली हो जाती है।
प्रिय दूर है अगर तो, प्रियतमा पास बुलाती है।
खिलती चाँद की चाँदनी, नई छटा बिखराती है।
सूर्य की नव किरणों की आभा, मन्द-मन्द मुस्कुराती है।
सर्द मौसम की सुहानी समीर, दस्तक देने लग जाती है।
मानव मन लग गया धरा पर, धरा बहुती हरषाती है।
देख बसन्त बहार की शोभा, मानव पृथ्वी पर बस गया।
हर मौसम का निराला स्वाद, मानव मन चख गया।
मृत्यु लोक की लीला निराली, जो आए जाना ना चाहे।
आकर्षण विकर्षण की लीला में, मानव मन धँसता जाए।