क्या भारत के इतिहास की परिभाषा ही बदल गई है? पूरे विश्व में भारत की सभ्यता-संस्कृति का जहाँ डँका बजता था, आज निम्नता की श्रेणी में प्रथम शिरोमणि की पदवी पाएगा हमारा भारत !!!
हमारा भारत देश, जिस पर मर मिटने को तैयार रहते हैं, सीमा पर सैनिक और अस्पतालों में चिकित्सक! सीमा पर सैनिक हमारी रक्षा के लिए जान जान गँवाते हैं वहीं, अस्पताल में डॉक्टर, नर्स एक पाँव पर खड़े होकर मरीज का इलाज करते हैं, ना रात देखते हैं ना दिन।
माता-पिता अपने सन्तान के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। अरे! रक्षाबन्धन पर बहन की रक्षा का भार अपने कंधों पर उठाने वाले भाई के देश में बहन-बेटी की इज्जत लूटी जा रही है। क्या यही परिभाषा रह गई हमारे देश की?
इतिहास में जहाँ झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, छत्रपति वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, सरोजिनी नायडू, गाँधी जी आदि देश प्रेमियों का नाम लिया जाता है। आज निर्भया काण्ड, अयोध्या बलात्कार काण्ड, संदेश खाली काण्ड, मणिपुर काण्ड, और अब अभया काण्ड। क्या इसकी रामायण लिखी जा रही है?
राम-कृष्ण की पावन भूमि में जहाँ दूध-दही की नदियाँ बहती, उस जगह बालाओ के खून की नदियाँ बहने लगी है।
जहाँ गंगा,यमुना, गौ को माता कहकर, नदियों व पशुओं की गाथा गायी जाती, वहाँ मानव को जन्म देने वाली माँ को नोच-नोच कर गिद्ध-कौवे जैसे खाने लग गए हैं?
क्या यही हमारा भारत देश है? जिसका नाम ऊँचा उठाने मे हम थकते नहीं थे। आज की पीढ़ी की हैवानीयता ने भारत की छवि को गर्त में डुबो दिया है।
माना पश्चिमी सभ्यता हम सीख गए हैं पर उस सभ्यता में भी रेपिस्ट को इज्जत नहीं मिलती। बलात्कार को जगह नहीं मिलती। हम तो दुनियाँ में मुँह दिखाने वाले देश की परिभाषा का पद भी खो चुके हैं।
मोदी जी देश को ऊँचे स्तर पर लाने के लिए दिन-रात एक किए हुए, पर चन्द कुत्तों की दुष्कर्माता हमारे देश को कहाँ नीचे गड्ढे में ले जा रही है कि हाथ पकड़ कर ऊपर लाने वाला भी कोई नहीं बच पाएगा।
अभी भी सम्भल जा मानव!! क्या फिर से लड़की को जन्म देते ही मार देने वाला जमाना आ जाएगा? मानव जन्म कैसे पाएगा ?
जरा सोच अपनी करणी पर! अफसोस कर निर्दयी!
समाज को ऊँचा उठा!
कर्मों के फल के डंडे में आवाज नहीं होती पर भुगतान करते तूँ सहम जायेगा अधम!
क्या यह हमारा भारत है? "जहां यत्र नारिस्य पूज्यते रमंते तत्र देवता" का पाठ पढ़ाया जाता था।
माता-पिता बच्चों के जन्म से लेकर शादी तक कितने सपने संजोते हैं।एक पल मे उनका सपना काँच टूटने जैसे चकनाचूर कर देते हैं कुछ भेडिय, इंसान के भेष में छिपे दरिन्दे! क्या उनके अत्याचार की गूंज भगवान तक नहीं पहुंचती? उस पीड़ित बालिका की चीखों की आवाज इंसानियत की रूह को नहीं कँपा देती?
कैसे ?मैं पूछ रही हूं कैसे? यह सब होता जा रहा है। ऐसी घटनाओं को राजनीति तक घसीटा जाता है ।क्या राजनीति की आड़ में कुकर्मों को करने का लाइसेंस मिल जाता है?
ऊँची पदवी प्राप्त कर इंसान मानवता का दामन छोड़ देते हैं। एक-एक वोट की भीख मांगने वाले भिखारी जब पद पर चुने जाते हैं तो अपने वादों को कूड़ा दान मे फेंक कर जिंदगी का कूड़ा उठा लेते हैं, जो उन्हें कुकर्मों की दलदल में धकेलता ही जाता है।
हम लोग माने या ना माने, पर मोबाइल का जमाना हमें गंदगी की गर्त में डुबोता जा रहा है। साधारण से साधारण विज्ञापन के संग इतनी गंदी और बेहूदी वीडियो प्रस्तुत की जाती है जो मनचले का मन मचलाती है, अज्ञान बच्चों की जिज्ञासा बढ़ाती है। उत्तेजना के जोश में इंसान वह हरकत कर जाता है जो शायद स्वप्न में सोचना भी गुनाह है। दो वर्ष की बालिका हो या जवान लड़की, बहन हो या रिश्तेदार, मदहोश मानव आँखो का अंधा हो जाता है।परिणाम पता है, गलत होगा पर उस परिणाम की सोच पर जोश की कालिख हावी हो जाती है। वह दुष्कर्म करने के लिए मजबूर हो जाता है।
मेरी सबसे प्रार्थना है कि हम सबको कम से कम मोबाइल पर आने वाले इन रील्स व वीडियो का खण्डन करना चाहिए।
हर छोटे-छोटे मासूम बच्चों के हाथ में माँ-बाप मोबाइल पकड़ा कर अपनी जिंदगी में अलमस्त हो जाते हैं। ऐसे दृश्यों का उनके मन परिवेश पर क्या प्रभाव होगा? उसका अता- पता ही नहीं है।
आज के वैज्ञानिक युग को हम पाषाण युग तो नहीं बना सकते, पर मानव को मर्यादा का पाठ सीखने का काम इसी मोबाइल द्वारा कर सकते हैं। जहाँ बुरी बातों का असर होता है, वहाँ अच्छी बातों का असर भी जरूर होगा। हाँ! एक आदमी को राम बनने में बरसों लग जाते हैं पर रावण बनने में कुछ मिनट ही लगते हैं।
खुशी का छलावा बड़ा शानदार होता है,वह मन मस्तिष्क को ऐसा झँझोड़ता है कि इंसान अपना आपा ही खो देता है।
दूरदर्शन पर बुरी खबरों का दौर खत्म ही नहीं होता, खुशी की खबरें चंद होती है। कभी ट्रेन दुर्घटना तो कभी बस गड्ढे में गिर गई कभी लापरवाही से हवाई जहाज का एक्सीडेंट हो गया। हर मनुष्य अपने कर्तव्यों को भूल कर, मात्र पैसे का पुजारी बन गया है।
ऊँचे-ऊँचे पद पर आसीन व्यक्ति, तनख्वाह प्राप्त कर, धनवान बन जाते हैं, पर जिस घर में एक कमाने वाला व्यक्ति दुर्घटना से ग्रस्त हो जाता है या मर जाता है, उस घर आँसूओं की आद्रता जीवन भर नहीं सूख पाती। लापरवाही से जो दुर्घटनाएँ होती है। उसको रोकना हर उस इंसान का कर्तव्य है जो उस पद पर विराजमान है। हर महीने बड़ी-बड़ी तनख्वाह पाता है तो क्या उसको अपने काम से विमुख होना शोभा देता है ।
हाल फिलहाल की बात है कि अयोध्या में बलात्कार करने वाला कोई राजनेता था। दिल्ली में दिल दहलाने वाला निर्भया काण्ड आज भी याद है ।हम सोचते हैं कि चलो कहीं तो मानवता जगी होगी, तभी एक न एक ऐसी खबर आही जाती है, जो सामाजिकता को डुबा देती है। मन को झँकझोर देती है।
आज इंसान की हैवानियत इतनी बढ़ गई है कि जीवन दाता डॉक्टर, जो सारी रात अपनी ड्यूटी में व्यस्त, सुबह की समय थोड़ा आराम करने, अपने कमरे में आती है, उसे दबोच लिया जाता है। अरे! भगवान द्वारा पैदा किए गए हो या राक्षस द्वारा!
राक्षस भी अपने ऊसूल के पक्के होते हैं।हम तो अब जिंदा भूत, राक्षस ,चांडाल सब बनते जा रहे हैं।
कैसे?कैसे? उसे अबला बनाकर अत्याचार किए हो? वह माँ काली, शक्ति दुर्गा नहीं बन सकी कारण वह शीतल गौरी का स्वरूप धारण कर मरीजों की सेवा में व्यस्त थी। भगवान से ना डरने वाले निशर्मों! अपनी माँ की कोख लजाने वाले बेशर्मों! उस अबला पर अत्याचार करने से अच्छा था किसी वैश्या के कोठे पर चले जाते। तुम्हारी भूख बुझाने बेचारी इंतजार में खड़ी रहती है।
क्या उस अबला से तुम्हारी पुरानी दुश्मनी थी? आज उसके माँ-बाप जिंदे जी मर चुके हैं।क्या उनके साथ इन्साफ हो पाएगा ?क्या उन्हें अपनी लाडली बेटी फिर से मिल पाएगी ?
ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण इस भारत भूमि में नित्य प्रति होने लग गए हैं। कुछ उजागर होते हैं,कुछ छुप जाते हैं। किसी पर झूठ का आवरण चढ़ा दिया जाता है। तो कहीं रिश्वत लेकर दबा दिया जाता है।
न्याय की तराजू का भी एक पलड़ा ही भारी हो गया है। वह है सोने- चाँदी और पैसों का पलड़ा! जहाँ घूस मिली वहीं चित्त!
पुलिस कर्मचारियों को सुरक्षा के लिए नियुक्त किया जाता है वह भी जेब गर्म कर, हर केस को रफा-दफा कर देते हैं।
कालाकोट पहनने वाले वकील, रिश्वत खाकर सत्य पर ऐसा झूठ का आवरण कर, बातों को प्रस्तुत करते हैं कि सच्चाई का अनावरण हो ही नहीं सकता।
कहीं गिनेचुने ऐसे वकील एवं सिपाही है, जो रिश्वतखोर नहीं है। उन्हें धमकी दे दे कर परेशान किया जाता है ।कहीं-कहीं उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है।
पहले फिल्में मनोरंजन के लिए बनाई जाती थी पर आज फिल्मों में हर बुराई के तरीकों को इतना दर्शाया जाता है कि शैतान बुद्धिजीवी ज्यादा शैतानियाँ करने का मौका सीख जाता है। मनोरंजन के लिए चोरी करने के तरीकों का बढ़ावा कहाँ की समझदारी है? बलात्कार करने के तरीके कहाँ की होशियारी है ?
लिखने को तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है।समझना इतना ही है कि इंसान मूर्ख मत बन!आँखें खोल!
आज हर क्षेत्र में नारी का योगदान पुरुषों के समान है। खेल का मैदान हो या चंद्रयान, अंतरिक्ष की यात्रा हो या घर को सजाना।किस किस क्षेत्र की बात करे?
नारी सुकोमल, शांत, ममता की मूरत, भगवान की बनाई कुदरत का करिश्मा है।
जिसका इतना अपमान!!!
जिसके साथ ऐसे कुकृत्य !!!
लगता है हर युग में नारी को ही क्यों सहना पड़ता है। द्रोपदी के पाँचो पति मौन, क्यों?
कृष्ण ने पुकार सुनी, दौड़े दौड़े आए। आज हर नारी को सांसारिकता छोड़ कृष्ण भक्ति में लीन हो जाना चाहिए, जो संभवत: संभव नहीं हो सकता।
आज सोचने को मजबूर हो रहे हैं कि क्या नारी की सीमा घर ही ठीक था? क्या पूर्ण संरक्षण वह घर में ही पा सकती है ?
आज कदम कदम पर नारी का सहयोग है। पुरुष व नारी दो पहिए हैं, जिससे जीवन की गाड़ी सरलता से चलती है ।फिर नारी पर इतने अत्याचार क्यों?
क्या भगवान ने पुरुष को मर्दानगी का प्रमाण पत्र इसलिए दिया है कि वह नारी की कोमल भावनाओं को कुचल दे?
क्या नारी बिना संसार आगे बढ़ पाएगा? क्या अकेला पुरुष संसार आगे बढ़ा पाएगा?
आज इंसान पशुओं से भी बदतर होता जा रहा है। पशु भी अपने पालनहार की भावनाओं का स्वागत करते है। वह अपने कार्य-कलापों द्वारा अपने भावों को प्रस्तुत कर देते है ।पर वाह रे इंसान !!!
तुम तो पशुओं से भी ज्यादा गये गुजरे हो गए !!!
आज की परिस्थितियाँ देख हम सोचने को मजबूर हो रहे हैं कि क्या इसी का नाम आजादी है ?क्या ये दिन देखने हमारे पूर्वजो ने अपनी जाने गँवायी।
गुलामी की दास्तान से जकङे मंदबुद्धि इंसान! जब परदेसियों के पैरो की जूती चाटते, उनकी जी हजूरी करते, क्या वही हमारी शान थी?
अरे!आजादी दिलाने वाले देश के वीर भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे साहसी वीरों के रक्त की लालिमा पर कालिमा चढ़ाने वाले कायरो को फाँसी की नहीं, जिम्मेदारी देने की जरूरत है।
मुफ्त का अनाज खाकर चमड़ी मोटी होती जा रही है। "खाली दिमाग शैतान का घर"। "जब मुफ्त का मिले खाने को तो क्यों जाए कमाने को"
हाँ! जो लाचार है, वृद्ध है,जिन्हें संभालने वाला कोई नहीं है, उनकी सेवा में तत्पर रहकर अनाज दो, वस्त्र दो, समझ में आता है।
आज हर परिवार को मुफ्त का अनाज मिलने लगा है।नेताओं का क्या जाता है? कर भुगतान करते-करते मध्यमवर्ग कमजोर होता जा रहा है।
निम्न वर्ग को मुफ्त का अनाज नहीं, अच्छी तनख्वाह देकर काम दो ताकि देश की उन्नति हो ना की अवन्नति।
किसानों को हर सुविधा देना नितान्त आवश्यक है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है, जहाँ की उपजाऊ भूमि में दिन-रात कृषक काम करते हैं। उनकी मेहनत रंग लाये उसके लिए खाद मिलावट वाली ना हो। आज उर्वरा के नाम पर मिलावट के बीज बोए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए कतई ठीक नहीं है।
गायों को इंजेक्शन दे देकर दूध निकालते हैं। धड़कते दिल से दूध देती गाय का दूध भी शरीर में धड़कन ही तेज करता है। फलों को जल्दी पकाने के लिए दवाइयाँ छिड़की जाती है जो बेहद नुकसानदायक है।
इंसान को काम दो! निकम्मा बनाने से रोको!
"सोने की चिड़िया देश हमारा"नाम सार्थक करने, फिर से पुरानी संस्कृति के झंडे फहराए"
आगे बढ़ना बुरी बात नहीं है पर टूटी हुई सीढ़ी पर चढ आसमान छुओगे तो एक न एक दिन नीचे गर्त में गिरोगे जरूर! जहाँ से ऊपर उठना आसान नहीं है। भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करते है।
आज मुझे मेरी लिखी "भारत की पहचान" कविता याद आ रही है। क्या ऐसा पावन पवित्र मेरा भारत! जहाँ दूध-दही की नदियाँ बहती। मेहमानों की आवभगत होती। नारियों की पूजा होती।क्या भारत की संस्कृति के नजारे बदलते जा रहे हैं? हम स्वयं, स्वयं की पहचान भुला रहे हैं !!
जय हिंद!