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मैं देवनदी गंगा
विष्णु चरण से प्रकट हुई,
विष्णुपदी कहलाती हूँ।
कमण्डल में धारण की ब्रह्मा ने
शिव जटा-जूट में समा भू पर आती हूँ।
मैं सुरसरि गंगा
धरती,पाताल,स्वर्ग में बहकर,
त्रिपथगा कहलाती हूँ।
ऋषि जन्हु घर जन्म लियो,
जान्हवी नाम भी पाती हूँ।
मैं मोक्षदायिनी गंगा
सगर पुत्रों के तारण हेतु
पृथ्वी पर अवतरण हुआ मेरा।
भागीरथ के अथक प्रयास से,
भागीरथी हुआ नाम मेरा।
मैं सुरध्वनि गंगा
गंगोत्री उद्गम स्थान मेरा,
गोमुख से निकलती हूँ।
पाचों प्रयाग से अठखेलिया करती,
उत्तरकाशी में अलकनंदा से मिलती हूँ।
मैं देव पगा गंगा
पतित पावनी गंगा नाम मेरा,
ऋषिकेश,हरिद्वार में बहती हूँ।
अस्थि कलश प्रवाहित करते भारतवासी,
जीव उद्धारिणी कहलाती हूँ।
मैं देवसरी गंगा
मेरा जल दूषित नहीं होता,
वनस्पतियों से मिल आती हूँ।
ग्रीष्म-उण स्रोत धाराएँ मेरी,
जन-जन के दर्द मिटाती हूँ।
मैं ध्रुव नंदा गंगा
गढ़मुक्तेश्वर,कानपुर होकर मैं,
प्रयागराज में पहुँचती हूँ।
संगम स्थल यह मेरा ,
जमुना-सरस्वती से जा मिलती हूँ।
मैं नदीश्वरी गंगा
जीव तारिणी नगरी वाराणसी में,
मैं वक्र एक लेती हूँ।
कईं नदियों से होता संगम मेरा,
उत्तरवाहिनी कहलाती हूँ।
मैं महानदी गंगा
पश्चिम बंगाल में हुगली नदी से,
मिलन मेरा हो जाता है,
कल कारखानों की गंदगी से,
नाता मेरा जुड़ जाता है।
मैं विश्रुपगा गंगा
मैं निर्मल शुद्ध स्वच्छता की मूरत,
कल-कल कर बहती आयी,
सागर मिलन वक्त जब आया,
मैं"गंगा मैली" कहलायी।
मैं मंदाकिनी गंगा
गंगोत्री से गंगासागर तक,
मनभावन सफर में पाती हूँ।
जीवन सौंप सागर के हाथों,
सुहागन मैं बन जाती हूँ।
मैं सुर सरिता गंगा
मैं भारत की राष्ट्रीय नदी,
माँ रूप में पूजी जाती हूँ।
भक्तजन करते उपासना,
पवित्रता की पदवी पाती हूँ।
मैं भवतारिणी गंगा
सुबह शाम हर तट पर मेरे,
भक्तजन करते आरती।
स्नान,तर्पण कर भक्तों के,
मन को मिलती शान्ति।
मैं अमर तरंगिणी गंगा
प्रदीप प्रज्वलित करते भक्तजन,
अटल मुझ पर विश्वास है ।
स्वर्ग का रास्ता दिखाऊँगी मैं,
भक्तजनों को यह आस है।
मैं जीवन दायिनी गंगा
मेरा शुद्ध निर्मल जल
जनजन की प्यास बुझाता है
मेरी लायी उपजाऊ माटी से
कृषक अन्न उपजाता है।
मैं आस्था की प्रतीक गंगा
मुझे प्रदूषित न करो
मेरी स्वच्छता का रखो ध्यान।
शुद्ध-पवित्र मैं रहूँगी
जन-जन का होगा कल्याण।

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