मात-पिता गुरुदेव के चरण में सृष्टि की है सृष्टि।
इज्जत प्यार करें हम इनका, होगी प्रेम की वृष्टि।
लाड प्यार करें जन-जन से, रखे हम समदृष्टि।
अच्छे विचार -खयालों की, जीवन में हो पुष्टि।।
मित्र मिलन आतुर प्रभु , राजसभा से दौड़े आए।
सुदामा की दीन दशा देख, अँसुवन से चरण धुलाए।
तीन मुट्ठी तन्दुल के बदले, त्रिलोकी देना चाए।
प्रत्यक्ष में दिया नहीं कुछ , अप्रत्यक्ष महल बनवाए ।।
काठ की नाव बन जाए न नारी, डर गया केवट भाई।
चरण धोकर लिया चरणोंदक,गंगा पार कराई।
सीता माता ने दी अंगूठी,ले लो केवट उतराई।
पार किया यहाँ प्रभु मैंने, भवसागर पार कराई।।
लक्ष्मी विष्णु के चरण दबाती ,
धन वृद्धि की अभिलाषा।
विष्णुपद में दानव गुरु बिराजे ,लक्ष्मी कर में देव गुरु वासा।
देव- दानव के मिलन योग से, धन की होती वृद्धि।
अलक्ष्मी की छाया पड़े ना, लक्ष्मी करती पांव की शुद्धि।।
हरि चरण से निकली सुरसरि, शिव जटा-जूट में समाई ।
भागीरथ के अथक प्रयास से, धरा पर गंगा आई ।
विश्वास अटल भारतवासी का, गंगा- स्नान मुक्ति दिलाई ।
गंगोत्री से गंगासागर तक फैली गंगा माई।।

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