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हृदय मण्डल पर चेतना के,
दीप प्रज्वलित कर रही थी।
जागृत,सुसुप्त अवस्था का,
मैं अवलोकन कर रही थी।
तन्द्रा टूटी,भोर हो गई,
नव चेतना जीवन में भर रही थी।
आकाश में उड़ते पक्षियों का,
जोश देख प्रसन्न हो रही थी।
पेड़ों पर चिड़ियों की कलरव से,
नव चेतना जागृत कर रही थी।
माँ गंगा के दर्शन कर ,
जीवन में आगे बढ़ रही थी।
मंदिर में बज रही घंटियाँ सुन,
प्रभु का ध्यान धर रही थी।
प्रकृति का नव ताण्डव देख,
मन ही मन डर रही थी।
कोरोना काल जैसा काल न आए,
याद कर,आहें भर रही थी।
मानव मन में जोश,उत्साह जगा,
ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी।
बड़े-बड़े राजा चले गए ,
चलने की तैयारी कर रही थी।
अब तो जागो,आँखें खोलो,
मनवा को समझा रही थी।
नित्य नियम से सूरज की किरणें,
चेतना जगाती है।
सजग,तेजस उजाला लिए,
रोज भोर हो जाती है।
कलकल बहती नदियाँ,
उत्साह मन में भर जाती है।
ना रुकना,डरना जीवन में ,
पथ प्रदर्शिका बन जाती है।
जाग मानव आँखें खोल,
प्रकृति हमको समझाती है।
जागरूक हो कर वृक्ष लगाने से,
धरा स्वर्ग बन जाती है।

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