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मैं दीपक करता हूँ रोशनी,अँधेरा पथ प्रदर्शक मुझे बनाए,
कईं धातुओं से होती रचना मेरी,शुभ काम में मुझे जलाए,
कुम्हार रचे माटी दीपक,दिवाली में जलाये जाए,
अमीर-गरीब सबका साथी,सब ही ज्योति जलाए।
प्रेम घृत,संयम बाती, जीवन दीपक जलाएं,
ज्ञान रूपी फैले उजियारा,अज्ञान तम दूर भगाएं।
दीपक तले है अँधेरा,चहूँ ओर उजियारा हो जाए,
हृदय दीप में प्यार की ज्योति,अभिमान दूर भगाए।
मन्दिर और गंगा-यमुना तट,सुबह शाम आरती की जाए,
प्रज्ज्वलित ना हो दीपक तो,आरती अधूरी कहलाए।
दौने में जला,पावन नदियों में,मुझे बहाया जाए,
भक्त मन श्रद्धा अटल,मुक्ति मार्ग मुझ से पाए।
अमर प्रेम की शक्ति,मुझ से नापी जाए,
बुझ जाऊँ मैं कभी तो, विश्वास डगमगा जाए।
दीपक राग आग लगा दे,मल्हार राग शान्त कर पाए,
अकबर हठ से तानसेन गाये,प्राण बचा ना पाए।
कुलदीपक बिन वंश वृक्ष,पूरा ना हो पाए।
इसे पूर्ण करने वाली को,आओ गले लगाए।
रावण मार राम घर आए, खुशियों के दीप जलाए,
सत्रह लाख दीपों से सजी अयोध्या, भारतवासी हर्षाए।